भाजपा और उसके सहयोगी शिवसेना के बीच बढ़ती तनातनी के बीच, रविवार ने कहा कि वह संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध करेगी। पार्टी नेता संजय राउत ने एक बयान में कहा कि असोम गण परिषद ने शिवसेना से कानून का विरोध करने की अपील करने के बाद यह फैसला किया है।
राउत ने कहा, “हम संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक 2016 का विरोध करने के लिए दृढ़ हैं। क्योंकि असम के लोग अपनी जाति, धर्म और पंथ के बावजूद, प्रस्तावित कानून का विरोध करते हैं।
इस विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से अवैध प्रवासियों को धर्म के आधार पर नागरिकता के योग्य बनाने के लिए नागरिकता अधिनियम में संशोधन करने का प्रयास किया गया है। बिल की जांच करने वाली संयुक्त संसदीय समिति 7 जनवरी को संसद में पेश करने के लिए तैयार है।
शिवसेना ने उल्लेख किया कि प्रस्तावित कानून असम समझौते के तहत असमिया लोगों की सांस्कृतिक, सामाजिक और भाषाई पहचान और विरासत की सुरक्षा के लिए किए गए प्रयासों को विफल करेगा। दूसरी बात, सुप्रीम कोर्ट द्वारा मॉनिटर किए गए नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिज़न्स की पूरी प्रक्रिया बिल पास होने पर निरर्थक होगी।
लोकसभा में शिवसेना ने भाजपा के खिलाफ आक्रामक रुख अपना लिया है। राफेल में घोटाले की जांच के लिए शिवसेना जेपीसी के गठन की मांग भी कर चुकी है।
नागरिकता क़ानून पर सिर्फ शिवसेना ही नहीं बल्कि भाजपा की अन्य सहयोगी पार्टियां असम गण परिषद् और जेडीयू भी सरकार के खिलाफ है।
नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016, नागरिकता अधिनियम 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है। इस संसोधन के अंतर्गत अफगानिस्तान, पाकिस्तान तथा बांग्लादेश के बौद्ध, जैन, हिन्दू, सिख, पारसी तथा ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदाय भारत में 6 वर्ष बिताने के बाद भरता की नागरिकता पाने के योग्य हो जाएंगे। पहले ये सीमा 11 साल थी। विपक्ष इस संसोधन बिल के आद्र्मिक होने का आरोप लगा रहा है।
जबकि असम गण परिषद् इस आधार पर विरोध कर रही है कि दुसरे देशों के हिन्दुओ को भारत की नागरिकता देने पर असम की मूल आबादी के पहचान पर संकट खड़ा हो जाएगा।