हरियाणा हिंसा पर पंजाब-हरियाणा कोर्ट ने हरियाणा सरकार को फटकार लगाते हुए कहा है कि अपने राजनितिक फायदे की लिए सरकार ने शहर जलने दिया। हरियाणा कोर्ट ने आदेश दिया था पुलिस को अगर बल प्रयोग करने की जरुरत हो तो बल का प्रयोग करे। इन सब के बावजूद हिंसा हुई जिनमे करीब 30 लोगों की मौत हुई और 200 से अधिक लोग घायल हो गए है।
इसके अलावा दिल्ली के एक ट्रेन की दो बोगियों में आग लगा दी, कई जगह बसे फूँक दी गयी। पंजाब में भी कई स्टेशन आग के हवाले कर दिए गए। सिरसा में भी एक की मौत हो गई। देशभर की लगभग 661 ट्रेने प्रभावित हुई है।
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डेरा के समर्थक तीन दिन से पंचकूला में थे। वहाँ किसी भी वक़्त हिंसा भड़कने की उम्मीद कोर्ट, प्रशाशन और आम नागरिक को थी। इसके बावजूद हरियाणा सरकार के पुख्ता प्रबंध नहीं होने से इतनी हिंसा भड़की। इस हिंसा का कारण सभी लोग खट्टर सरकार की नाकामयाबी को बता रहे है।
जाट आंदोलन के बाद ये खट्टर सरकार की दूसरी बड़ी नाकामयाबी है। दो दिन पहले जब धारा 144 लगाई थी, तो कोर्ट ने प्रशाशन को फटकार लगाते हुए कहा था अगर धारा 144 लगाई हुई है तो कैसे समर्थक जगह जगह पर बाबा के समर्थक डेरा डाले हुए है, उन्हें हटाया क्यों नहीं गया। इन्ही कारणों से ये खट्टर सरकार की नाकामी मानी जा रही है।
इससे पहले हुए फरवरी 2016 में जाट आंदोलन के वक़्त भी खट्टर सरकार नाकामयाब दिखी थी। उस वक़्त भी तकरीबन 30 लोग मारे गए थे। इस आंदोलन के वक़्त 1196 दुकाने जला दी गयी, 371 गाड़ियां फूँक दी गयी, 23 पेट्रोल पंप जला दिए गए, 29 थानों और चौकियों पर हमला हुआ था। इस आंदोलन से कोई सीख न लेते हुए जब खट्टर सरकार ने 25 अगस्त को ऐसी कमज़ोर सुरक्षा व्यवस्था की, जिससे ये ज़ाहिर होता है कि खट्टर सरकार पुराने किसी घटनाक्रम से कुछ सीख नहीं लेना चाहती है।
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खट्टर सरकार हर एक मामले पर कमज़ोर पड़ती नज़र आयी है चाहे वह राम रहीम सिंह का मामला हो, चाहे जाट आंदोलन का या चाहे बाबा रामपाल का मामला, हर वक़्त खट्टर सरकार बेबस और कमज़ोर पड़ती दिखाई दी है। सेना और पुलिस फोर्स लगाने के बाद इतनी हिंसा भड़क उठती है तो ये सिर्फ सरकार की नाकामयाबी है।