नवाज़ुद्दीन सिद्दीक़ी ने अपने करियर की शुरुआत छोटे मोटे किरदारों से की। हालांकि, उन्हें अपने करियर का सबसे बड़ा ब्रेक मिला अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ़ वासेपुर’ से और फिर क्या था, उनकी किस्मत बदल गयी और उन्होंने ‘बदलापुर’, ‘रमण राघव’, ‘रईस’, ‘ठाकरे’, ‘मंटो’ और ‘सेक्रेड गेम्स’ जैसी फिल्मो से खुद को बॉलीवुड का सबसे प्रतिभाशाली अभिनेताओं में से एक साबित कर दिया।
आज भले ही उनकी फैन फोल्लोइंग काफी बढ़ गयी हो, लेकिन फिर भी उन्हें खुद को ‘स्टार’ कहलवाना अच्छा नहीं लगता। उन्होंने IANS को कहा-“मैं खुद को स्टार कहना पसंद नहीं करता। मुझे ऐसे टैग पर विश्वास नहीं है। एक स्टार, सुपरस्टार या मेगास्टार के रूप में पहचाने जाने के बाद, इंडस्ट्री कलाकारों को रूढ़िबद्ध कर देती है और उन्हें वही काम करने को कहती है। वास्तविक अभिनेता वे होते हैं जो विभिन्न प्रकार की भूमिकाएँ करते हैं, लेकिन जब आप ‘स्टार’ श्रेणी में फंस जाते हैं, तो आप अक्सर रूढ़िवादिता का सामना करते हैं। ‘स्टार’ और ‘सुपरस्टार’ जैसी सभी चीजें सिर्फ मार्केटिंग रणनीति होती हैं। यही कारण है कि एक स्टार के रूप में बुलाया जाना मुझे पसंद नहीं है।”
नवाज़ुद्दीन को ये भी लगता है कि “स्टार” टैग एक अभिनेता के विकास को रोकता है। उनके मुताबिक, “मैं एक आराम क्षेत्र में फंस नहीं जाऊंगा। अभिनेता के लिए यह बहुत ज़रूरी है कि वह अपने आराम क्षेत्र से परे कुछ करे। मैं बहुमुखी बनना चाहता हूं। अगर मैं खुद को एक स्टार मानने लगूं तो मैं गर्व महसूस कर सकता हूं, और यह एक कलाकार के रूप में मेरे कौशल और विकास में बाधा है।”
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इतने गंभीर किरदार निभाने के बाद, वह आखिरकार कुछ हलकी फुलकी रोम-कॉम फिल्में कर रहे हैं जिसमे ‘मोतीचूर चकनाचूर’ और ‘बोले चूड़ियाँ’ जैसी फिल्में शामिल हैं।