सरकार ने गुरूवार को तत्काल प्रभाव से दिवालिया कानून अध्यादेश को मंजूरी दे दी। सरकार ने इस नए अध्यादेश के जरिए ऐसे लोगों की गलफासें कस दी है, जो ऋण चुकाने में सक्षम होते हुए भी सरकार और बैंकों के साथ धोखाधड़ी करते आ रहे थे। इस नए संशोधन के जरिए डिफॉल्टर्स अब दिवालिया हो चुकी कंपनी पर अपना नियंत्रण हासिल नहीं कर सकेंगे और ना ही बैंक उन्हें कंपनी से जुड़ी किसी प्रकार की डील करने की छूट देंगे।
नए नियमों के मुताबिक अब उन भ्रष्ट प्रमोटर्स को कोई मौका नहीं दिया जाएगा जो दिवालियां हो चुकी कंपनियों की डीलिंग करते थे।
उस पुराने आदेश को पूरी तरह से बदल दिया गया है जिसमें डिफॉल्टर्स एक वर्ष या उससे अधिक वर्षों तक कर्ज ना चुकाने के बावजूद भी दूसरे बैंकों से लोन ले लेते थे। ऐसे लोगों का खेल पूरी तरह से खत्म किया जा चुका है।
दिवालिया कोड को तत्काल प्रभाव से लागू कर सरकार ने यह संकेत दिया है कि अब राजनीतिक रूप से शक्तिशाली लोगों को भी नहीं बख्शा जाएगा जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तरीके से डिफॉल्टर्स की सहायता करते थे। कर्ज में फंसे बैंक अब आसानी से दिवालिया घोषित हो चुकी कंपनियों की प्रॉपर्टी बेचकर अपना कर्ज चुकता कर सकेंगे। इसके लिए यह प्रॉपर्टी उन्हीं लोगों को बेची जाएगी जो सबसे ज्यादा कीमत की अदायगी करेंगे।
कुछ बैंकों पर यह आरोप लगा है कि उन्होंने व्यवसायिक घरानों से गठजोड़ कर गलत तरीके से लोन दिए, यहां तक कि ऋण वसूली के दौरान भी ढील देते रहे। संभवत: इसीलिए सरकार ने यह नया अध्यादेश लागू करते वक्त बैंकों से भी परामर्श नहीं लिया। जिन वित्तीय संस्थानों ने ऐसी गलतियां की है, उनके लिए सरकार ने कुछ कठोर नियम निर्धारित किए हैं, जिसकी उन्हें पालना करनी ही होगी।
सरकार द्वारा जारी नए दिवालिया कोड के अनुसार दिवालिया कंपनियों और परिसंपत्तियों को पाने के लिए प्रमोटर्स जिस दोराहे पर खड़े हैं, ऐसे में वे बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के जरिए किश्तों का इस्तेमाल कर सकते हैं। पुराने नियमों में ऐसे भ्रष्ट प्रमोटर्स या बकाएदार अधिकांश बैंकर्स के साथ ऋण में कटौती करवाते थे। अब ऐसा नहीं हो पाएगा, क्यों अब इन भ्रष्ट प्रमोटर्स की फोरेंसिक आॅडिट की जाएगी।
अब भारतीय बैंकों को इस बात के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र कर दिया गया है कि वे प्रमोटर्स को ‘विलुप्त बकाएदारों’ की सूची में शामिल नहीं करें। अब बैंक इन भ्रष्ट प्रमोटर्स को कंपनी या फिर प्रॉपर्टी की नीलामी लगाने वालों की सूची में शामिल नहीं कर सकते हैं।
इस नए अध्यादेश के जरिए अब बैंक एक सामान्य डिफॉल्टर और कॉरपोरेट डिफॉल्टर में कोई अंतर नहीं करेंगे और इन दोनों की पेशी समान रूप से होगी। हांलाकि कुछ लोग इस नए अध्यादेश की गलत तरीक से राजनीतिक व्याख्या कर सकते हैं, लेकिन सरकार ने संकेत दिया है कि देश मेेें मौजूद किसी भी भ्रष्टाचारी को बख्शा नहीं जाएगा। चाहे वो राजनीतिक रूप से एक शक्तिशाली व्यक्ति ही क्यों ना हो।