आईसीसी विश्वकप 2011 में श्रीलंका के खिलाफ जीत दर्ज करना हर भारतीय क्रिकेट फैन के लिए एक खास पल रहा होगा। जहां पर एम एस धोनी और उनके साथी खिलाड़ियो ने विश्वकप पर दूसरी बार कब्जा किया था।
पहले बल्लेबाजी करने उतरी श्रीलंका की टीम ने 50 ओवर पूरे खेलते हुए 6 विकट खोकर 274 रन बनाए थे। श्रीलंका की ओर से सबसे ज्यादा (103) रन महेला जयवर्धने ने बनाए। जबाव में बल्लेबाजी करने उतरी भारतीय टीम नें शुरुआती विकेट के रुप में वीरेंद्र सहवाग और सचिन तेंदुलकर को जल्दी खो दिया।
उसके बाद विराट कोहली और गौतम गंभीर के बीच तीसरे विकेट के लिए साझेदारी हुई। कोहली के आउट होने के बाद धोनी ने युवराज सिंह को भेजने की जगह खुद का आना ठीक समझा और चौथे विकेट के लिए 109 रन की साझेदारी करके मैच को अपने नाम किया।
उस समय धोनी के इस फैसले ने कई क्रिकेट प्रेमियों को भ्रमित कर दिया था, क्योंकि उस दौरान युवराज सिंह भी पूरे टूर्नामेंट में बहुत अच्छी फार्म में नजर आए थे।
हाल ही एक ईवेंट में नजर आए धोनी ने इससे पर्दा हटाते हुए कहा कि श्रीलंका के कई खिलाड़ी उस वक्त चैन्नई सुपर किंग्स से खेल चुके थे और मैंने अपना आना इसलिए सही समझा क्योंकि मुरलीधरन उस वक्त गेंदबाजी कर रहे थे और मैनें चैन्नई के लिए अभ्यास करते वक्त मुरलीधरन को बहुत खेला हैं और मुझे आत्मविश्वास था कि मैं उनके खिलाफ आसानी से रन बना पाऊंगा, यही असली कारण है जिसकी वजह से मैनें अपना ऊपर आना सही समझा।
धोनी ने कहा कि कप्तान के रूप में इस बड़ी सफलता के कारण, भारतीय चयनकर्ताओं को विकेटकीपरों की ओर अपनी राय बदलने के लिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि वह सोचते थे कि विकेटकीपर अच्छे कप्तान नही बन सकते। धोनी ने कहा कि कीपर कप्तान बनने के लिए एक अच्छा विक्लप हो सकते है क्योंकि वह परिस्थितियों को बढ़ी करीबी से होते हुए देखते हैं।