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    धारा 66ए के तहत लोगों पर मामला चलाए जाने की बात पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हैरानी प्रकट कि और कहा कि सूचना व प्रौद्योगिकी अधिनियम के अंतर्गम धारा 66 ए को 2015 में ही सुप्रीम कोर्ट ने खत्म कर दिया था। रद किए गए इस धारा के अंतर्गत आपत्तिजनक मैसेज करने वाले शख्स को तीन साल के लिए कैद की सजा दी जाती थी और जुर्माना भी लगाया जाता था। जस्टिस आरएफ नरीमन, के एम जोसफ और बी आर गवई ने पीयूसीएल नामक एनजीओ संस्था द्वारा दर्ज किए गए आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया।

    2019 में कोर्ट ने किया था अलर्ट

    सीनियर एडवोकेट संजय पारिख से बेंच ने कहा, ‘आपको यह हैरानी और आश्चर्यजनक नहीं लगता? 2015 का श्रेया सिंघल का फैसला है। यह वास्तव में हैरानी की बात है। जो हो रहा है वह भयावह है।’ एडवोकेट पारीख ने आगे बताया कि 2019 में कोर्ट द्वारा स्पष्ट निर्देश जारी हुआ सभी राज्य सरकारें 24 मार्च 2015 के फैसले के बारे में पुलिस कर्मियों को संवेदनशील बनायें, बावजूद इसके इस धारा के तहत हजारों मामले दर्ज कर लिए गए। बेंच ने कहा, ‘हां, हमने इससे जुड़े आंकड़े देखें हैं। चिंता न करें, हम कुछ करेंगे।’ उन्होंने यह भी कहा कि मामले से निपटने के लिए किसी तरह का तरीका होना चाहिए क्योंकि लोगों को परेशानी हो रही है।

    जस्टिस नरीमन ने पारीख से कहा कि उन्हें सबरीमला फैसले में उनके असहमति वाले निर्णय को पढ़ना चाहिए और यह वाकई चौंकाने वाला है। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कहा कि आईटी अधिनियम का अवलोकन करने पर देखा जा सकता है कि धारा 66ए उसका हिस्सा है और नीचे टिप्पणी है जहां लिखा है कि इस प्राविधान को रद कर दिया गया है।

    जवाबी हलफनामा के लिए दो हफ्ते का समय

    वेणुगोपाल ने कहा, ‘जब पुलिस अधिकारी को मामला दर्ज करना होता है तो वह धारा देखता है और नीचे लिखी टिप्पणी को देखे बिना मामला दर्ज कर लेता। अब हम यह कर सकते हैं कि धारा 66ए के साथ ब्रैकेट लगाकर उसमें लिख दिया जाए कि इस धारा को निरस्त कर दिया गया है। हम नीचे टिप्पणी में फैसले का पूरा उद्धरण लिख सकते हैं।’ जस्टिस नरीमन ने कहा, ‘आप कृपया दो हफ्तों में जवाबी हलफनामा दायर करें। हमने नोटिस जारी किया है। मामले को दो हफ्ते के बाद सूचीबद्ध कर दिया है।’

    केंद्र ने रखा अपना पक्ष, कहा- बेयर एक्ट में मौजूद

    अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने कहा कि भले ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रावधान को रद्द कर दिया गया हो, लेकिन अभी भी बेयर एक्ट में मौजूद है। केवल फुटनोट में उल्लेख किया गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने धारा-66ए को हटा दिया गया है। हालांकि पीठ ने कहा कि यह आश्चर्यजनक है। जो हो रहा है वह काफी भयानक, चिंताजनक और चौंकाने वाला है। पीठ ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का आदेश देते हुए दो हफ्ते बाद मामले पर विचार करने का निर्णय लिया है।

    शीर्ष अदालत ने 24 मार्च 2015 को कहा था कि धारा-66ए पूरी तरह से अनुच्छेद 19(1)(ए) (बोलने व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का उल्लंघन है। सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा-66 ए के तहत आपत्तिजनक टिप्पणियों को ऑनलाइन पोस्ट करने वालों के लिए तीन वर्ष की जेल की सजा का प्रावधान था।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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