केंद्रीय मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने रविवार को कहा कि पश्चिमी पाकिस्तान के दो शरणार्थी, डॉ. मनमोहन सिंह और इंद्र कुमार गुजराल भारत देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं। लेकिन यह विरोधाभास भी रहा है कि इसी श्रेणी के अन्य शरणार्थी जिन्होंने जम्मू-कश्मीर में रहने का विकल्प चुना, उन्हें राज्य विधानसभा चुनाव में मतदान करने या राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं मिला। डॉ. सिंह जम्मू के निकट अंतर्राष्ट्रीय सीमा के नजदीक आयोजित पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थियों की एक विशाल रैली को संबोधित कर रहे थे।
"While two of them from W.Pakistan,Dr Manmohan Singh & Inder Kumar Gujral,went on to become PM,refugees who came to #JammuAndKashmir were not even granted right to contest Assembly election till PM @narendramodi corrected this anomaly in 2019":Rally near #InternationalBorder pic.twitter.com/wvZiG4VC03
— Dr Jitendra Singh (@DrJitendraSingh) August 14, 2022
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने 5 अगस्त 2019 को धारा 370 को निरस्त करने के साथ ही इन विसंगतियों को समाप्त कर दिया है। अब जम्मू और कश्मीर में रहने वाला कोई भी पाकिस्तानी शरणार्थी चुनाव लड़ सकता है और विधायक या मंत्री और यहां तक कि जम्मू-कश्मीर का मुख्यमंत्री बनने की आकांक्षा भी रख सकता है।
डॉ. सिंह जम्मू पश्चिम पाकिस्तान के शरणार्थियों की एक विशाल रैली को संबोधित करने से पहले वे ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह के पैतृक गांव बगोना गए जो 1947 में हुए पाकिस्तानी हमले में शहीद हो गए थे।
मंत्री ने कहा कि जिन शरणार्थियों को पाकिस्तान से निकाल दिया गया और जिन्हें विभाजन के बाद अल्पावधि नोटिस पर भारत में शरण लेने के लिए अपने घरों को छोड़ना पड़ा, उनके पास विभाजन की त्रादसी से गुजरने के बाद संघर्ष और पुनरुत्थान का प्रेरणादायक इतिहास रहा है और विभाजन के बाद हुए दंगों में इन्होंने अपने कई परिजनों और प्रियजनों को भी खोया है।
मंत्री ने कहा कि आजादी के बाद उन्होंने जीवन के हर क्षेत्र में अपना योगदान दिया है और राष्ट्र को गौरवान्वित किया है। उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं, भारत के दो पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह और इंद्र कुमार गुजराल पश्चिम पाकिस्तान के पूर्व निवासी हैं। वहीं पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी कराची के निवासी थे।
डॉ. जितेंद्र सिंह ने अफसोस व्यक्त किया कि दुर्भाग्यवश अनुच्छेद 370 के नाम पर कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले तत्वों और साजिशकर्ताओं ने अपनी राजनीतिक स्वार्थों के कारण, पाकिस्तानी शरणार्थियों, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर में रहने का विकल्प चुना,उन्हें नागरिकता के बुनियादी अधिकारों के साथ-साथ अपने समकक्षों के लिए उपलब्ध अन्य अवसरों से भी वंचित कर दिया, जिन्होंने 1947 में स्वतंत्रता मिलने के बाद भारत के अन्य स्थानों में रहने का विकल्प चुना था।
पिछले तीन वर्षों में, इस वर्ग के लोगों को न केवल दूसरे भारतीयों के लिए उपलब्ध सभी संवैधानिक अधिकार प्रदान किए गए हैं बल्कि वे भारत के नागरिक के रूप में आत्म-सम्मान और अपनापन की महसूस कर रहे है।