शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान की अध्यक्षता में शुक्रवार को होने वाली बैठक में चालीस केंद्रीय विश्वविद्यालय अकादमिक क्रेडिट बैंक और बहु-विषयकता को प्रोत्साहित करने के लिए ग्लू ग्रांट जैसे नवीन उपायों के कार्यान्वयन को शुरू करेंगे।
हालांकि धर्मेंद्र प्रधान को एक अधिक बुनियादी मुद्दे पर ध्यान देने की आवश्यकता है। तथ्य यह है कि इन विश्वविद्यालयों के एक तिहाई से अधिक संकाय पद अभी भी खाली हैं।
उच्च शिक्षा सचिव अमित खरे ने गुरुवार को बताया कि कुल 18,000 शिक्षकों में से 6,000 से अधिक पद अभी भी खाली हैं और बैठक के एजेंडे में यह एक प्रमुख मुद्दा है। दिल्ली विश्वविद्यालय में निरपेक्ष रूप से सबसे खराब स्तिथि है जिसमें 846 पद यानि कि उसके 1,706 स्वीकृत पदों में से लगभग आधे खाली पड़े थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रिक्ति दर लगभग 70% है जहाँ 863 पदों में से केवल 263 ही भरे हुए हैं।
पर्याप्त संख्या में शिक्षकों के बिना राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत प्रस्तावित अन्य महत्वाकांक्षी पहल भी विफल हो जाएगी। अमित खरे ने कहा कि, “हमने कई संस्थानों में कुलपतियों की नियुक्ति करके पहला कदम उठाया है। साथ ही जहां पद खाली थे वहाँ अस्थायी कर्मियों द्वारा भरे गए थे। अब उन्हें एक साथ काम करना होगा।” यह देखते हुए कि डीयू और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में अभी भी स्थायी वी-सी नहीं हैं, विज्ञापन और चयन की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। डीयू वीसी पद के लिए साक्षात्कार प्रक्रिया पूरी हो चुकी है और यह पद जल्द ही भरे जाने की संभावना है। जबकि जेएनयू में साक्षात्कार की प्रक्रिया भी अभी तक शुरू नहीं हो पायी है।
इस साल के बजट में घोषित ग्लू ग्रांट के तहत उसी शहर के संस्थानों को संसाधनों, उपकरणों को साझा करने और यहां तक कि अपने छात्रों को एक-दूसरे से कक्षाएं लेने की अनुमति देने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। उच्च शिक्षा सचिव ने बताया कि, “यह बहुआयामीता के लिए पहला कदम है। हम इसे चालू शैक्षणिक वर्ष के दूसरे सेमेस्टर से शुरू करने का इरादा रखते हैं। अंततः, संकाय संयुक्त पाठ्यक्रम डिजाइन करने में सक्षम होंगे और आप डीयू के एक छात्र को आईआईटी-दिल्ली में कुछ कक्षाएं लेने में सक्षम देख सकते हैं या इसके विपरीत आईआईटी दिल्ली के छात्र को डीयू में।”