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    बेरोजगारी और आर्थिक विकास

    रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने रविवार को आर्थिक विकास और रोजगार के मुद्दे पर बयान देकर सियासी माहौल को गरमा दिया है। राजन ने कहा कि भारत को और ज्यादा विकास की जरूरत हैं, यही नहीं रोजगार के अधिक अवसर उपलब्ध कराने होंगे। उन्होंने कहा कि रोजगार आरक्षण मुद्दे पर अल्पकालिक राजनीतिक समाधान देश के अार्थिक माहौल को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

    उन्होंने कहा, देश का विस्तृत आर्थिक विकास रोजगार आरक्षण मुद्दे का केवल एक मात्र समाधान है। हमें ऐसी समस्याओं में उलझने के बजाय इनके समाधान पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि रोजगार आरक्षण मुद्दे का अल्पकालिक राजनीतिक समाधान ढूंढ़ना काफी आसान है, लेकिन इससे देश का सिस्टम बिगड़ सकता है।

    राजन ने इस संबंध में लोकलुभाव राष्ट्रवाद का भी जिक्र किया। यही नहीं उन्होंने गुजरात में पाटीदार जैसे अन्य शक्तिशाली समुदायों के आंदोलन की चर्चा की जो कि भेदभाव से ग्रसित है और नौकरियों में आरक्षण की मांग कर रहा है।

    टाइम्स लिट फेस्ट-2017 के दौरान दिए एक साक्षात्कार में रिज़र्व बैंक के पूर्व गर्वनर रघुराम राजन ने कहा कि लोकलुभावन राष्ट्रवाद में भी नुकसान पहुंचाने की क्षमता है। राजन ने कहा, मैं इसे ब​हुत आसानी से परिभाषित कर सकता हूं, क्योंकि इसमें देश के बहुसंख्यक लोग यह महसूस करते हैं कि उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है। हांलाकि राष्ट्रवाद भारत के साथ दुनियाभर में मौजूद है।

    नौकरी के आभाव में भारत के कुछ मजबूत समुदायों ने आरक्षण के लिए प्रेस तक का विरोध करना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा, केवल आर्थिक विकास ही बेरोजगारी से निपटने का एक मात्र और महत्वपूर्ण उपाय है। ” अनुदारवादी लोकतंत्र” के मुद्दे पर उन्होंने कहा, यह चिंताजनक है और ऐसे सिस्टम से निपटने करने की जरूरत है।

    राजन ने कहा कि अुनदार लोकतंत्र के पीछे एक मजबूत नेता नहीं वरन एक सिस्टम कार्यरत होता है। जिसके पीछे प्रेस, बिजनेस ग्रुप और ऐसे सभी झुकने को तैयार होते हैं। उन्होंने कहा राजनीतिक और कार्पोरेट प्रतिष्ठानों के बीच मित्रवत रिश्ते बने हैं। देश के ज्यादातर प्रेस कार्पोरेट प्रतिष्ठानों के स्वामित्व में हैं, इसलिए जनता की स्वतंत्र आवाजें दबा दी जाती हैं।

    सेंसरशिप और बैन की बढ़ती घटनाओं पर पर नाराजगी व्यक्त करते हुए राजन ने केंद्र सरकार की ओर इशारा करते हुए कहा कि यह किसी विशेष सरकार की पहली विशेषता नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता के बाद से ऐसा बार-बार देखने को मिला है। उन्होंने कहा कि भारत जैसे सहिष्णु देश में भाषण की स्वतंत्रता का हनन करते हुए हिंसा का प्रचार करने से बचना चाहिए।