जापान ने सोमवार को कहा कि “वह दक्षिण कोरिया में निर्यात के नियमों को सख्त करेंगे और इसमें चिप में केमिकल का इस्तेमाल और स्मार्टफोन का उत्पादन है।” यह 4 जुलाई से लागू होगा। हाल ही दक्षिण कोरिया की अदालत ने जापानी कंपनियों को युद्धरत मजदूरों को मुआवजा देने का आदेश दिया था।
दक्षिण कोरिया में निर्यात की मुश्किलें बढ़ी
टोक्यों ने कहा कि जब दशकों पूर्व दोनों देशों के बीच कूटनीतिक समबन्धों की शुरुआत हुई थी इस समस्या को हल कर दिया गया था। जापान की अर्थव्यस्था, व्यापार और उद्योग मंत्रालय ने इसका ऐलान किया कि “निर्यात नियंत्रण प्रणाली को भरोसे के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की बुनियाद पर निर्माण किया जायेगा।”
मंत्रालय ने कहा कि “विविध मंत्रालयों की समीक्षा के बाद यह कहना पड़ रहा है कि जापान और दक्षिण कोरिया के बीच भरोसे के संबंधों में तल्खियां उत्पन्न हुई है। नयी पाबंदियां रासनायिकों को प्रभावित करेंगे, साथ ही मैन्युफैक्चरिंग तकनीकों के ट्रांसफर पर भी असर डालेंगे।”
स्थानीय मीडिया के मुताबिक, इसका मतलब निर्यातकों को दक्षिण कोरिया को निर्यात करने वाले बैच से पहले अनुमति के लिए आवेदन करना होगा और इस प्रक्रिया में 90 दिनों का समय लगेगा। दक्षिण कोरिया को “व्हाइट” देशों की सूचीं से हटाना होगा, जो राष्ट्रीय सुरक्षा कारणों से तकनीक के ट्रांसफर में कुछ पाबंदियां लगाते हैं।
जापान-दक्षिण कोरिया के तनावपूर्ण सम्बन्ध
जापान और दक्षिण कोरिया दोनों ही लोकतान्त्रिक देश है और अमेरिका के सहयोगी है। लेकिन दोनों देशों के समबन्ध दशकों से तनावग्रस्त है क्योंकि टोक्यो ने साल 1910-45 के उपनिवेश शासन में कोरियाई प्रायद्वीप पर बर्बरता का रुख अपनाया था।
दक्षिण कोरिया की अदालत के निर्णय मजीद बढ़ गए है। बीते महीने टोक्यों ने इस मामले को दोनों देशों के बीच साल 1965 में हस्ताक्षार किये एक समझौते के तहत मध्यस्थता के लिए कहा था।
दक्षिण कोरिया ने बुधवार को एक और प्रस्ताव की पेशकश की जो दक्षिण कोरियाई और जापानी फर्म पीड़ितों को मुआवजा देने के लिए एक स्वैच्छिक कोष स्थापित किया जाना था। जिसे जापान ने अस्वीकार कर दिया था। विश्लेषकों के मुताबिक यह कार्रवाई जापान के उत्पादकों के लिए नुकसानदायी है।
जब संबंधों को सामान्य हो गए थे तो टोक्यो एक पुनर्मूल्यांकन पैकेज पर सहमत हुआ था। जिसमें अनुदान और सस्ता कर्ज शुमार था। यह युद्धकालीन नीतियों के पीड़ितों के लिए मुआवजा था। जापान का तर्क है कि पैकेज को समस्या का स्थायी समाधान करना चाहिए था।