Mon. Dec 23rd, 2024
    उत्तराखंड सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत

    चुनावों के समय में अक्सर राजनेता एक दूसरे पर आक्रमक हो जाते है। चुनावों में एक दूसरे दल पर आक्रमक होना कोई नयी और बड़ी बात नहीं है। चुनाव के दौरान राजनेताओं को एक दूसरे पर आक्रमक होना भी चाहिए। चुनाव में वो हर सवाल को पूछा जाना चाहिए जो जनता के मन में हो वो हर इल्जाम लगाया जाना चाहिए जिससे सत्ता में बैठे लोगों की पोल खुल सके।

    लोकतंत्र का मतलब यही है जिसमे किसी एक सरकार की नहीं चलती यहां पर सरकार को कोसने का, सवाल पूछने का और यहां तक की इल्जाम लगाने का हक़ भी लोगों को और राजनेताओ को है लेकिन एक दूसरे पर सवाल और इल्जाम लगाते वक्त इस बात का ख्याल जरूर रखा जाना चाहिए कि भाषा की अपनी एक मर्यादा होती है और पद की एक प्रतिष्ठा होती है।

    राजनेताओं को ऐसी कोई बात नहीं बोलनी चाहिए जिससे इन दोनों चीज़ो का हन्ना हो। नेता इस बात का ख्याल नहीं रख रहे है कि जिस भाषा का वो इस्तेमाल कर रहे है वह उनके पद को शोभा नहीं देती है। ताजा मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने राहुल के बारे में यह बयान देकर विवाद खड़ा कर दिया है कि राहुल कुछ भी कर ले लेकिन घोड़े नहीं हो सकते।

    त्रिवेंद्र के बयान के बाद चारो तरफ से उनकी निंदा होने लगी है। दरअसल त्रिवेंद्र राहुल के धर्म पर जवाब दे रहे थे। जब उनसे पूछा गया कि राहुल के जनेऊ धारी हिन्दू होने पर आप क्या कहेंगे? तो उन्होंने कहा कि “किसी को शेम्पू या साबुन से नहलाओगे तो वो घोडा नहीं हो जाता” स्पष्ट है कि उनके कहने का आशय क्या था और इशारा किस तरफ था।

    वैसे बयानवीरों को अनावश्यक बयानों को देने से मना करते हुए चुनाव आयोग ने यह पहले ही साफ कह दिया था कि कोई भी नेता चुनाव प्रचार प्रसार के दौरान भाषा की मर्यादा को ना भंग करे। चुनाव आयोग ने यह भी कहा था राहुल को छोटा भीम या पप्पू जैसे नामों से ना संबोधित किया जाए।