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    तेलंगाना विधानसभा चुनाव को लेकर किये एक ओपिनियन पोल में कांग्रेस-टीडीपी महागठबंधन को फायदा होता दिख रहा है। इस महागठबंधन में कांग्रेस और टीडीपी के अलावा तेलंगाना जन समिति और सीपीआई भी शामिल है।

    भारत के सबसे नए नवेले राज्य की सत्ता पर कब्जे की लड़ाई में सत्ताधारी तेलंगाना राष्ट्र समिति कमजोर पड़ती दिखाई दे रही है।

    विश्लेषकों के अनुसार टीआरएस के विधायकों को मुख्यमंत्री के चंद्रेशकार राव द्वारा 6 महीने पहले विधानसभा भंग करने का खामियाजा भुगतना पडेगा।

    जब विधानसभा भंग किया गया था तो टीआरएस को विश्वास था कि वो चुनाव में पूर्व बहुमत के साथ सत्ता में वापस आएगी। लेकिन किसी को उम्मीद नहीं थी कि कांग्रेस और टीडीपी गठबंधन कर लेंगे। कांग्रेस और चंद्रबाबू नायडू की पार्टी टीडीपी के गठबंधन ने सारा खेल बदल दिया। उसके बाद सीपीआई और तेलंगाना जन समिति ने इनके गठबंधन में शामिल हो कर महागठबंधन की शक्ल दे दी।

    विश्लेषकों के मुताबिक़ पिछले एक महीने में विपक्षी महागठबंध जो प्रजाकुट्टामी के नाम से मशहूर ने टीआरएस को मजबूती से चुनौती देने लगा और सुरुआत में जो बढ़त टीआरएस ने हासिल की थी वो उसके हाथों से निकलने लगा। हालत यहाँ तक बन रहे हैं कि अगर किसी को भी बहुमत नहीं मिला तो भाजपा और एआइएमआईएम के हाथों में सत्ता की चाभी हो सकती है।

    नजदीकी मुकाबले में एक एक सीट बड़ा अंतर पैदा कर देते हैं।

    2014 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने 25 फीसदी और टीडीपी ने 15 फीसदी वोट हासिल किये थे। दोनों ने मिलाकर करीब 40 फीसदी वोट हासिल किये थे। ये तब था जब कांग्रेस और टीडीपी अलग अलग थे। और टीआरएस ने 34 फीसदी वोट हासिल किये थे।

    बहुमत के आंकड़े 60 से बस 3 सीट ज्यादा (63) हासिल कर टीआरएस ने सरकार बनाई थी जबकि कांग्रेस ने 21 और टीडीपी ने 15 सीट हासिल किये थे।

    आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव 2014 लोकसभा चुनावों के साथ ही कराये गए थे और उस वक़्त टीडीपी का गठबंधन भाजपा के साथ था।

    चुनावों में ज्यादा वोट शेयर ज्यादा सीटों में बदल जाएँ ये जरूरी नहीं। गठबंधन की राजनीति में वोट शेयर सीट में तभी बदलते जब गठबंधन में शामिल दल एक दुसरे को अपना वोट ट्रांसफर करा पायें। बिहार विधानसभा चुनाव में जेडीयू और राजेडी ने एक दुसरे को अपने वोट ट्रांसफर कराये थे जिसका नतीज ये रहा वो जबरदस्त बहुमत से सत्ता में आये जबकि भाजपा के सहयोगी लोजपा, रालोसपा और हम अपने वोट एक दुसरे को ट्रांसफर कराने में नाकाम रहे।

    उत्तर प्रदेश में भी गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में बसपा ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को अपना समर्थन दिया था लिहाजा बसपा के वोटरों ने समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को वोट किया लेकिन क्या गठबंधन की सूरत में समाजवादी पार्टी के वोटर बसपा के उम्मीदवारों को वोट करेंगे इसकी परिक्षा होनी बाकी है।

    कांग्रेस और टीडीपी आंध्र प्रदेश में 35 सालों से एक दुसरे के विरोधी है। चन्द्रबाबू नायडू के ससुर एनटी रामा राव ने कांग्रेस को हटाने के लिए तेलुगु देशम पार्टी खाड़ी की थी। अब सब कुछ इस बात पर निर्भर करता है कि क्या तेलंगाना में कांग्रेस और टीडीपी के वोटर एक दुसरे के उम्मीदवारों को वोट करते हैं या नहीं।

    2014 में कांग्रेस-सीपीआई और तेलुगु देशन पार्टी के बीच 72 सीटों पर सीधा मुकाबला था। उस चुनाव के आधार पर महागठबंधन 53 सीटों पर असर डाल सकता है।

    अगर वोट ट्रांसफर सफल रहा तो प्रजाकुट्टामी को इन 72 सीटों में से 16 सीटें मिल सकती है। जो वर्तमान में टीआरएस और अन्य पार्टियों के कब्जे में है।

    ये 16 सीट हैं अचम्पेट, असिफाबाद, असवरापेटा, भद्रचलम, भोंगिर, बोथ, बोधन, देवकर्द्र, गजवेल (केसीआर की सीट), महाबूबबाद, मेडचल (जहां सोनिया गांधी ने 23 नवंबर को एक रैली आयोजित की), मुलुग, पतंचेरू, सूर्यपेट, थुंगथुरथी और व्यारा। इन सीटों पर महागठबंधन के वोट शेयर पिछले साल के विजयी उम्मीदवारों से ज्यादा होंगे।

    सीट शेयरिंग फ़ॉर्मूले के तहत कांग्रेस 97 सीटों पर उम्मीदवार खड़े कर रही है जबकि टीडीपी 13, सीपीआई 3 और तेलंगाना जन समिति के हिस्से में 6 सीटें आई है।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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