तीन तलाक पर आखिर छह घंटे की बहस के बाद लोकसभा में इस विधेयक को सरकार पास करवाने में सफल रही। ‘द मुस्लिम वीमेन प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स इन मैरिज एक्ट’ के नाम से बनी यह विधेयक भारत में ऐतिहासिक बदलाव ला सकती है। इस विधेयक का प्रभाव आने वाले कर्नाटक और आगामी लोकसभा चुनाव में प्रत्यक्ष रूप से देखने को मिल सकता है।
तीन तलाक पर अगर कानून बना तो यह सिर्फ भारत की राजनीति को ही नहीं बल्कि समाजिक संरचना को भी प्रभावित करेगा। इस कानून के बनते ही किसी भी प्रकार का तीन तलाक या ट्रिपल तलाक कानूनी रूप से अवैध हो जाएगा और साथ ही तलाक का यह तरीका एक दंडनीय अपराध की श्रेणी में आएगा।
इस अपराध पर तलाकदाता को तीन साल की सजा के साथ ही जुर्माना भी हो सकता है। जुर्माने की राशि कितनी होगी इस बात पर फैसला मेजिस्ट्रेट करेगा। मुस्लिम महिलाओं से जुड़ा यह बिल क्या सच में उनका सशक्तिकरण कर पाएगा? क्या सच में महिलाओं को तीन तलाक पर बनने वाला यह कानून न्याय दे पाएगा ? महिलाओं के सामने तलाक के बाद किस तरह के विकल्प होंगे? तलाक के बाद बच्चो की देखभाल कौन करेगा? यह कुछ ऐसे सवाल है जो हर किसी के जहन में घूम रहे है। आइये समझते है आने वाला यह कानून किस तरह से हमारे समाज को बदल देगा।
महिलाओं के लिए कैसे उपयोगी होगा कानून
2011 जनगणना के अनुसार इस कानून से करीब 8.4 करोड़ मुस्लिम महिलाओं को फायदा होगा। तीन तलाक की स्थिति में महिलांए कानून का दरवाजा खटखटा सकती है। तीन तलाक को दंडनीय अपराध माना जाएगा और महिलाओं को वैधानिक रूप से मेजिस्ट्रेट के पास जाने की और अपने हक़ की गुहार लगाने की ताकत होगी।
गुजारा भत्ता के साथ ही पत्नी होगी नाबालिग बच्चों की अभिरक्षा की हकदार
यह कानुन महिलाओं को तलाक के बाद राहत प्रदान करेगा, साथ ही पीड़िता के बच्चो के भविष्य का भी ख्याल रखेगा। तीन तलाक पर पत्नी अपने गुजारा भत्ता की हकदार होगी, साथ ही तलाकदाता अपने नाबालिक बच्चों की अभिरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होगा। इस कानून के तहत किसी भी तरह से तीन तलाक देना जैसे बोलकर, लिखकर, सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम के सहारे अवैध होगा।
आंकड़ों के हिसाब से जरूरी है तीन तलाक
तीन तलाक कानून का होना इसलिए भी जरूरी है क्यूंकि पिछले कई सालों के आंकड़े यह बताते है कि महिलाओं की जिंदगी तीन तलाक के कारण प्रभावित हुई है। आंकड़ों के अनुसार 4 तलाकशुदा महिला की तुलना में सिर्फ एक पुरुष ही तलाकशुदा है और 2001 से 2011 तक के समय महिलाओं को तीन तलाक देने की घटनाए 40% तक बढ़ी है।
मामला सिर्फ तलाक का नहीं बल्कि महिलाओं के न्याय, गरिमा और स्वस्थ का भी है। आंकड़े बताते है कि करीब 50 % मुस्लिम लड़कियों की शादी 14 से 29 वर्ष की उम्र में हो जाती है। जबकि 13.5 % लड़कियां ऐसी भी जिनकी शादी 15 वर्ष से पहले ही हो जाती है।