नरेन्द्र मोदी की सरकार ने गुरूवार को संसद में तीन तलाक के खिलाफ बिल पेश कर दिया है। मोदी सरकार में कानून मंत्री पद पर स्थापित रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में बिल पेश किया। इस बिल में सजा के खिलाफ कई पार्टियों और दलों ने विरोध किया है। लेकिन वहीं देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ने सरकार के समर्थन में हाथ उठाया है। कांग्रेस ने कहा कि पार्टी इस बिल का समर्थन करेगी। कांग्रेस की तरफ से कोई संसोधन भी नहीं होगा, लेकिन इस सन्दर्भ में पार्टी नें तीन सुझाव देने की बात कही है।
कांग्रेस की तरफ से पार्टी के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस ने तीन तलाक या तलाक ए बिद्दत के मुद्दे को हमेशा इस मापदंड पर आंका है कि महिला अधिकारों की सुरक्षा हो और महिलाओं की बराबरी संविधान सम्मत तरीके से हो। सुरजेवाला ने कहा कि ट्रिपल तलाक के सम्बन्ध में इससे पहले आए उच्चतम न्यायालय के फैसले का कांग्रेस ने स्वागत किया था। उन्होंने कहा कि ट्रिपल तलाक को रोकने वाले कानून का कांग्रेस समर्थन करती है। महिला संगठन के अनुसार इस मामले में उनकी राय लेकर इसको और मजबूत बनाने की जरुरत है।
वहीं महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देवी ने कहा कि सरकार पीड़ित महिलाओ को भत्ता देने की बात कर रही है लेकिन किस प्रकार का भत्ता इसकी व्याख्या नहीं कर रह है। सुष्मिता ने कहा कि 1986 के मुस्लिम महिला संबंधी एक कानून के तहत तलाक पाने वाली महिलाओं को गुजारा भत्ता मिल रहा है। कहीं नए कानून के कारण उन्हें यह गुजारा भत्ता मिलना बंद न हो जाए।
सूत्रों की माने तो पार्टी अध्यक्ष राहुल गाँधी की अगुवाई में बुधवार रात कोंग्रेसियों ने ट्रिपल तलाक मामले में बैठक की। सूत्रों के मुताबिक ट्रिपल तलाक के पक्ष में कांग्रेस वर्तमान सरकार के साथ खड़ी है। कांग्रेस के इस कदम को देखते हुए सरकार को इस बिल को पास करवाने कोई दिक्कत नहीं होगी। लेकिन वहीं कुछ पार्टियों ने इसका विरोध भी किया है।
किस किस ने क्या कहा?
राष्ट्रिय जनता दल के सांसद जयप्रकाश यादव ने कहा कि इस विधेयक को पास कराने से पहले मुस्लिम पर्सनल बोर्ड से सलाह मशविरा और सहमति की पहल की जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा नहीं हुआ तो पति जेल में, पत्नी घर में फिर बच्चे की परवरिश कौन करेगा।
हैदराबाद से एआईएमआईएम के सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि सरकार को इस मामले में कोई क़ानूनी बदलाव करने का क़ानूनी हक़ नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर ऐसा होता है तो यह हमारे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। ये संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट ने पहले ही तलाक-ए-बिद्दत को रद्द कर दिया है। इस बिल में विरोधाभास हैं। ये बिल कहता है कि जब पति को जेल भेज दिया जाएगा, तब भी सहवास का अधिकार बना रहेगा। उसे भत्ता देना होगा। ओवैसी ने कहा कि देश में 20 लाख ऐसी महिलाएं हैं, जिन्हें उनके पतियों ने छोड़ दिया है और वो मुसलमान नहीं हैं। उनके लिए क़ानून बनाए जाने की ज़रूरत है। इनमें गुजरात में हमारी भाभी भी है। उन्हें इंसाफ़ दिलाए जाने की ज़रूरत है। ये सरकार ऐसा नहीं कर रही है।
केरल के मुस्लिम लीग के सांसद मोहम्मद बशीर ने कहा कि यह बिल सविधान के अनुच्छेद 25 का उलंघन कर रहा है। यह विधेयक मुस्लिम पर्सनल बोर्ड के लिए बेहद नकारात्मक साबित होगा।
बीजू जनता दल के सासंद भृतहरि महताब ने कहा, इस बिल में कमियां हैं। इस बिल में कई विरोधाभास हैं।
इस विधेयक में मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने तथा उनके पतियों द्वारा तलाक की उद्घोषणा द्वारा विवाह विच्छेद का निषेध करने का प्रावधान किया गया है।