आतंकी समूह तालिबान के साथ सुलह प्रक्रिया के लिए रूस ने एक बैठक का आयोजन किया था। रूस ने तालिबान के साथ अफगानिस्तान के भविष्य से संबंधित बातचीत की थी। भारत के लिए अफगान नीति के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण थी। भारत ने साफ कर दिया था कि इस बैठक में गैर आधिकारिक स्तर के प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे। इस बैठक में नई दिल्ली की सरकार ने पूर्व कूटनीतिज्ञ को भेज था।
रूस के विदेश मंत्री सेर्गेई लावरोव ने कहा कि राजनीतिक तरीके से ही अफगानिस्तान के मसले का हल निकल सकता है। जब इस बैठक में विवादों से जुड़ी सभी पार्टियां एकत्रित होंगी। उन्होंने कहा कि उम्मीद है कि जिम्मेदार राजनीतिज्ञ किसी समूह की पैरवी न करते हुए अफगानिस्तान की जनता के हित मे सोचेंगे।
अफगानिस्तान में रूस पाकिस्तान की नीति को।दरकिनार करते हुए दिखाई दे रहा था। इससे पूर्व आयोजित बैठक को रूस ने अफगान सरकार के शामिल होने पर मना करने के बाद रदद् कर दी थी। अफगानिस्तान ने इस सम्मेलन में आधिकारिक रूप से शामिल होने से इनकार कर दिया था।
अमेरिका और भारत के प्रतिनिधि इस बैठक में शांत रहे लेकिन रूस ने भारत को हिदायत दी कि तालिबान के साथ अगली बैठक में सक्रिय भूमिका निभाये। अफगानिस्तान में पिछले 17 सालों के युद्ध को समाप्त करने के लिए मॉस्को ने इस बैठक का आयोजन किया था। इस बैठक के बाद अफगान सरकार ने रूस से दूरी बनाने की कोशिश की और कहा कि शांति प्रतिनिधि इस बैठक में अपनी जिम्मेदारी से शरीक हुए थे, इससे सरकार का कोई वास्ता नहीं है।
इस आयोजन कर दौरान तालिबान के प्रतिनोधियों ने विदेशी सैनिकों को अफगान सरजमीं छोड़ने को कहा था। उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान में शांति की स्थापना के लिए विदेशी फौजों को मुल्क छोड़कर जाना होगा।