पाकिस्तान ने तालिबान के प्रतिनिधियों को वार्ता के लिए इस्लामाबाद बुलवाया था और इस मेजबानी की अफगानिस्तान ने सख्त आलोचना की है। राष्ट्रपति अशरफ गनी के प्रवक्ता सैदिक सिद्दीकी ने पाकिस्तान की निंदा की और कहा कि “हमें नहीं पता कि क्यों तालिबान-पाकिस्तान की वार्ता हो रही है।”
उन्होंने कहा कि “सबसे महत्वपूर्ण अफगानिस्तान में शान्ति की स्थापना है। पाकिस्तान का इस तरीके से तालिबान की मेजबानी करना सिर्फ उन्हें प्रोत्साहन देना होगा और अफगान सरकार के खिलाफ उनकी हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देना होगा”
इस्लामबाद में वार्ता की स्थिति पर भारत ने पैनी निगाहें बनायीं हुई है। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार ने कहा कि “वैध चयनित सरकार सहित अफगान सरकार के सभी विभाग शान्ति प्रक्रिया का हिस्सा होने चाहिए। सभी प्रक्रियाओं को संवैधानिक विरासत और राजनीतिक जनमत का सम्मान करना होगा।”
उन्होंने स्पष्ट तौर पर रेखांकित कित्य कि अफगान शान्ति प्रक्रिया में काबुल की सरकार की अनदेखी को भारत स्वीकार नहीं करेगा।किसी भी गैर शासित इलाको पर आतंकवादी या उनके प्रॉक्सी हक़ नहीं जमा सकते हैं और भारत को निशाना बनाने वाले ठिकानों का निर्माण भी वार्ता का परिणाम होना चाहिए।
तालिबान का अफगानिस्तान पर नियंत्रण साल 1990 के दशक के अंत में था तब भारत के संबंध चरमपंथी समूह के साथ नहीं थे। पाकिस्तान उन चुनिंदा देशो में शामिल है जिसके तालिबान के नियंत्रण वाले अफगानिस्तान के साथ संबंध थे। भारत के विमान इंडियन एयरलाइन फ्लाइट 814 को पाकिस्तानी आतंकवादी ने हाईजैक किया था और साल 1999 में कंधार लेकर गया था।
भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अफगानिस्तान में अमेरिका के विशेष राजदूत ज़लमय खलीलजाद से मुलाकात की थी। यह अमेरिकी राष्ट्रपति की तालिबान के साथ बैठक को रद्द करने के बाद पहली मुलाकात थी।