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    ताम्र-पाषाणयुग

    भारतीय पुरातत्व विभाग(आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया) ने ताम्रपाषाण युग के रथ के अवशेषों को खोज निकला हैं। पुरातत्व विभाग के अनुसार यह रथ ताम्र युग का हैं(इसापूर्व 2000 साल) और इस रथ को उत्तर प्रदेश के बाघपथ जिले के सिनौली गाँव में खोजा गया हैं। इस रथ के खोजे जाने के बाद उस युग की सभ्यता, लोगों के दिनचर्या के बारें में महत्वपूर्ण जानकारी मिल सकती हैं।

    आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया की टीम पिछले तीन महीनों से सिनौली गाँव में खुदाई का काम कर रही हैं, मार्च में खुदाई की शुरुवात होने के बाद पुरातत्व विभाग ने आठ स्मशानों को खोज निकाला हैं। इन स्मशानों ने विभाग को तीन शव पेटिकाए, तलवार, खंजर, कंगी, आभूषण और अन्य रोजमर्रा की चीजे प्राप्त हुई हैं। पुरातत्व विभाग को अब तक तीन रथों के अवशेष मिले हैं और इन अवशेषों के पास शवों को दफनाए जाने के साबुत मिले हैं, उनके आधार पर वे शव तत्कालीन राज परिवार के होने की संभावना जताई जा रही हैं। पास ही मिले अन्य चीजों से इस बात की पुष्टि होती हैं की वे योद्धा थे।

     

    पुरातत्व विभाग द्वारा खोजे गए इस रथ और ग्रीस और मेसोपोटामिया में मिले रथ के आकार में साम्यता हैं। पुरातत्व विभाग के इंस्टिट्यूट ऑफ़ आर्कियोलॉजी के को-डायरेक्टर एस के मंजुल के अनुसार,

    हमें मिले रथों के अवशेषों और ग्रीस में मिले रथों के अवशेषों में समानता देखि जा सकती हैं, इन रथों से पता चलता हैं, की उस काल में रथों का अधिक उपयोग किया जाता था।

    उन्होंने कहा, “रथों के अवशेष जहाँ प्राप्त हुए है, वही मुकुटों के भी अवशेष प्राप्त हुए हैं। मुकुटों का मिलना इन रथों के राज परिवार द्वारा इस्तेमाल किए जाने का सीधा संकेत देते हैं। उपमहाद्वीप में पहली बार हमें आत्यंतिक आभूषित शव पेटिका मिली हैं, इस शव पेटिका को अनेक रत्नों से और मानवाकृति आभूषणों से अलंकृत किया गया हैं।”

    “आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया द्वारा हरप्पा संस्कृति से संबंधित धोलावीरा में की गयी खुदाई में प्राप्त शव पेटिकाए इन शव पेटीयों (बाघपथ में प्राप्त) जैसी विभूषित नहीं थी।”

    आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के अनुसार खुदाई में प्राप्त तलवार, खंजर, ढाल, भाले, मशाल, हेल्मेट और अन्य सामग्री के आधारपर तत्कालीन योद्धा आबादी की पुष्टि की जा चुकी हैं। मिट्टी और ताम्बे से बने बर्तन, जटिल आभूषण, कंगी, ताम्बे से बना आइना तत्कालीन सभ्यता के उच्च रहन सहन और जीवनशैली की ओर इशारा करता हैं।

    पुरातत्व विभाग के इंस्टिट्यूट ऑफ़ आर्कियोलॉजी के को-डायरेक्टर एस के मंजुल के अनुसार, “प्राप्त अवशेषों के आधार पर यह कहना कठिन हैं, प्राप्त अवशेष तत्कालीन भारतीयों के हैं या विदेशी आक्रमण कर्ताओं के हैं। लेकिन यह तो निश्चित हैं को यह अवशेष हरप्पा संस्कृति से संबंधित नहीं हैं।”

    By प्रशांत पंद्री

    प्रशांत, पुणे विश्वविद्यालय में बीबीए(कंप्यूटर एप्लीकेशन्स) के तृतीय वर्ष के छात्र हैं। वे अन्तर्राष्ट्रीय राजनीती, रक्षा और प्रोग्रामिंग लैंग्वेजेज में रूचि रखते हैं।

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