ताइवान की आज़ादी की मांगों को दबाने के लिए चीन एक नया पैंतरा आजमा रहा है। दशकों के लम्बे संघर्ष के बावजूद ताइवान चीन से स्वंतंत्र होने की जुगत में हैं वहीँ चीन बलपूर्वक ताइवान को अपनी मुट्ठी में रखना चाहता है।
एल साल्वाडोर के राष्ट्रपति साल्वाडोर सांचेज़ सेरेन ने गुरूवार को चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी। हाल ही में मध्य अमेरिकी राष्ट्रों ने ताइवान से कूटनीतिक समझौते तोड़ दिए थे। डोमिनिकन रिपब्लिक के राष्ट्रपति भी चीन के दौरे पर आयेंगे।
एल सेल्वाडोर और डोमिनिकन रिपब्लिक उन राष्ट्रों में से है जिन्होंने चीन के साथ समझौतों को मज़बूत करने के लिए ताइवान के साथ कूटनीतिक रिश्तों को तोड़ दिया है। चीन ताइवान को अपना आधिकारिक इलाका मानता है। ताइवान के साथ अब मात्र 17 छोटे और विकासशील देशों का रणनीतिक सम्बन्ध शेष है।
साल 1949 में गृह युद्ध के दौरान ताइवान चीन से अलग हो गया था। ताइवान के राष्ट्रपति त्सी विंग यें के साल 2016 में राष्ट्रपति कार्यभार संभालने के बाद से बीजिंग कूटनीतिक और आर्थिक दबाव बनाकर ताइवान को चीन में शामिल करने की कोशिश करता रहा है।
चीन और अमेरिका के मध्य ताइवान एक बहस का मुद्दा रहा है। अमेरिका के चीन के मध्य अधिकारिक समझौते हैं लेकिन अमेरिका के ताइवान के साथ अनाधिकारी सैन्य और कूटनीतिक सम्बन्ध है। ताइवान में नियुक्त अमेरिकी राजदूत ने कहा कि अमेरिका ताइवान में चीनी सैन्य गतिविधियों को बढाने का विरोध करेगा।
अमेरिका के ताइवान को समर्थन देने के कारण चीनी तायपेई के साझेदारों को बरगला रहा है। पिछले माह अमेरिका ने ताइवान से कूटनीतिक सम्बन्ध तोड़ने वाले मध्य अमेरिकी देशों एल साल्वाडोर, पनामा और डोमिनिकन रिपब्लिक से अपने राजदूतों को वापस बुला लिया था।
बीते माह वांशिगटन में आयोजित सम्मेलन में एल साल्वाडोर के उपराष्ट्रपति के साथ अमेरिका के उपराष्ट्रपति ने मुलाकात की थी। अमेरिका के उपराष्ट्रपति माइक पेन्स ने कहा कि एल साल्वाडोर समेत अन्य मध्य अमेरिकी देशों को चीन जैसे देशों के मुकाबले अमेरिका के साथ सम्बन्ध मज़बूत करने चाहिए।