श्रीलंका में अभी राजनीतिक गतिरोध जारी है, वहीँ शीर्ष अदालत के सैन्याधिकारी के गिरफ्तारी के आदेश से पड़ोसी देश में सियासी भूचाल आना लाजिमी है। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत ने तमिल सिविल वॉर के दौरान देश के सैन्याधिकारी के 11 लोगों की हत्या और अपहरण करने के जुर्म में गिरफ्तार करने का हुकुम सुनाया है।
कोलोंबो की अदालत ने कहा कि पिछले आदेश के मुताबिक पुलिस जांचकर्ता आरोपी एडमिरल रविन्द्र विजेगुरुरत्ने को नज़रबंद रखने में विफल रही है। अदालत ने आदेश दिया कि 9 नवम्बर से पूर्व आरोपी को गिरफ्तार कर लिया जाए। उन्होंने कहा अगर पुलिस अधिकारी फिर विफल होते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी।
श्रीलंका के राष्ट्रपति मैत्रिपाला सिरिसेना ने नाटकीय अंदाज़ में रानिल विक्रमसिंघे की पार्टी से नाता तोड़कर, पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे का दामन थाम लिया था। पूर्व राष्ट्रपति राजपक्षे साल 2005-15 तक सत्ता पर आसीन थे, उसी दौरान दशकों से चल रहे तमिलों के आन्दोलन को दबाने के लिए क्रूरता अपनाई गयी थी। हालांकि महिंदा राजपक्षे के दामन पर इस हिंसा के दौरान हुई हत्याओं का कोई दाग नहीं है।
न्यायधीशों ने पुलिस से रक्षा विभाग के प्रमुख विजेगुरुरत्ने को गिरफ्तार करने का हुकूम सुनाया था। पुलिस ने अदालत को बताया कि एडमिरल को नौसेना के एक अधिकारी ने पनाह दे रखी है। उन्होंने बताया कि नौसेना अधिकारी 2008-09 में हुए इस हत्याकांड का मुख्य संदिग्ध है।
पुलिस ने बताया कि इस हत्याकांड के दौरान नेवी ने गैर कानूनी तरीके से 11 लोगों की हत्याएं की थी। मृतकों के शव अभी तक बरामद नहीं हुए हैं, हालांकि नौसेना के अधिकारी को बीते अगस्त में गिरफ्तार किया गया था।
श्रीलंका के अपराधी जांच विभाग ने अदालत में बताया कि उनके पास एडमिरल विजेगुरुरत्ने के खिलाफ सबूत है, कि उन्होंने 11 तमिल लोगों को गिरफ्तार करने की अनुमति दी थी। पुलिस ने बताया कि नौसेना अधिकारी का साल 2006 में हुए तमिल कानून निर्माता नादाराजाह रविराज की हत्या से भी नाता था।
महिंदा राजपक्षे के कार्यकाल में कार्यरत कई सैन्य अधिकारी एक अखबार के संपादक की हत्या और अन्य पत्रकारों पर हमले के जुर्म में अभियोजन का सामना कर रहे हैं। महिंदा राजपक्षे और उनके परिवार पर उनके कार्यकाल के दौरान हत्या और धोखादड़ी के आरोपों की जांच चल रही है। हालांकि उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद इस जांच का संभव होना नामुमकिन लगता है।
साल 2009 में दशकों से चल रहे तमिल विरोध को श्रीलंकाई सैनिकों ने क्रूरता से रोकने का प्रयास किया था। यूएन के मुताबिक इस जंग के अंत तक 40000 नागरिकों की हत्या की गयी थी।