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    चीन अपनी नेशनल डिजिटल करेंसी (ई-आरएमबी) विकसित करने पर तेजी से काम कर रहा है। डिजिटल मुद्रा भुगतान की वह विधि है जो केवल इलेक्ट्रॉनिक रूप में मौजूद है। यह मुद्रा का वह रूप है जो केवल डिजिटल या इलेक्ट्रॉनिक रूप में उपलब्ध है, न कि भौतिक रूप में। चीन की डिजिटल मुद्रा का प्रयोग अपने दौर में सफल रहा है। चीन का लक्ष्य है कि वह इस डिजिटल मुद्रा को 2022 में बीजिंग में होने वाले शीत ओलंपिक्स से पहले बाजार में पूरी तरह से उतार दे।

    चीन डिजिटल मुद्रा का पायलट प्रोजेक्ट शुरू करने वाले देशों के एक छोटे समूह का हिस्सा है। चीन के साथ इस समूह में थाईलैंड, दक्षिण कोरिया और स्वीडन भी शामिल हैं।

    इस डिजिटल मुद्रा या डिजिटल युआन को आधिकारिक तौर पर डिजिटल मुद्रा या इलेक्ट्रॉनिक भुगतान परियोजना के रूप में जाना जा रहा है। चीन के केंद्रीय बैंक पीपुल्स बैंक ऑफ चाइना के अनुसार, चीन की आधिकारिक डिजिटल मुद्रा का अनुसंधान और विकास कार्य तेज़ी से आगे बढ़ रहा है, और चीन के चार शहरों (शेन्झेन, सुज़हौ, चेंगदू और शिंजियांग) में इसका परीक्षण किया जा रहा है।

    इस परियोजना में सरकारी कर्मचारियों के वेतन का कुछ हिस्सा डिजिटल युआन में दिया जाएगा। इसके अलावा लगभग 20 निजी व्यवसायों, जैसे स्टारबक्स और मैकडॉनल्ड, ने भी इस प्रयोग में हिस्सा लिया है।अगर ये कामयाब रहा, तो चीन सरकार 2022 में इसे शीत ओलंपिक्स के समय सारे देश में जारी कर देगी।

    रिपोर्ट्स के अनुसार, चीन का केंद्रीय बैंक वर्ष 2014 से ही अपनी डिजिटल मुद्रा पर अनुसंधान कर रहा है। चीन की यह डिजिटल मुद्रा काफी हद तक बिटकॉइन और फेसबुक की डिजिटल मुद्रा लिब्रा के समान ही है। अन्य डिजिटल मुद्राओं की तरह चीन की इस नई मुद्रा को भी डिजिटल वॉलेट में संग्रहित किया जा सकेगा। चीन की नई डिजिटल मुद्रा और वर्तमान में प्रचलित अन्य डिजिटल मुद्राओं में सबसे प्रमुख अंतर यह है कि चीन की मुद्रा चीन की सरकार और उसके केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित की जाएगी, किंतु मौजूदा डिजिटल मुद्राओं को किसी भी बैंक अथवा सरकार द्वारा नियंत्रित नहीं किया जाता है। विदित हो कि चीन ने अभी तक इस संबंध में कोई आधिकारिक घोषणा नहीं की है और न ही अपनी मुद्रा को लेकर कोई विशेष विवरण जारी किया है।

    डिजिटल युआन को लाना एक ऐसी बात मानी जा रही है जिससे वैश्विक संतुलन में बदलाव आ सकता है। ये चीन की उन महत्वाकांक्षी परियोजनाओं का हिस्सा है जिनका उद्देश्य अमरीका के प्रभाव को ख़त्म करना और 21वीं सदी का एक शक्तिशाली देश बन कर उभरना ह।. विशेषज्ञों का कहना है कि इसके सफल प्रयोग से 10-15 वर्षों में एक नयी सियासी और आर्थिक व्यवस्था जन्म ले सकती है।

    भारत और अमरीका भी क्रमशः “लक्ष्मी “और “डिजिटल डॉलर” नाम की अपनी डिजिटल मुद्राओं पर काम कर रहे हैं। लेकिन अभी तक ये वास्तविकता से काफ़ी दूर हैं।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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