देश में यातायात नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों को काबू करने की कवायद में इतने ज्यादा कानून लिख-बना डाले गए हैं कि इन्हें पढ़ते-पढ़ते आगे बढ़ता हुआ इंसान पीछे पढ़े सब ‘नियम-कायदे’ भूल जाता है।
ट्रैफिक के ‘नियम-कानून’ की इस भरमार-भीड़ का ही नतीजा है कि जो बना भी डाले गए हैं, उनके बीच तुलना की जाए तो कई नियम-कायदे-दंड बेहद हास्यास्पद और चौंकाने वाले निकल कर सामने आते हैं। बस जरूरत है तो हमें-आपको हिंदुस्तानी ‘ट्रैफिक-नियम’ की इस मोटी किताब को एक बार फुर्सत से पढ़ने और समझने भर की।
ऐसा नहीं है कि देश की सड़कों पर सुरक्षित जीवन की दुहाई की आड़ लेकर बनाए गए ये यातायात नियम कम हैं। इनकी संख्या इतनी ज्यादा है कि अधिकांश भारतीयों को इन कायदे-कानूनों में से शायद ही मोटा-माटी 5 से 10 फीसदी के बारे में जानकारी होगी। देश में मौजूद इन भारी-भरकम ट्रैफिक कानून की मोटी किताबों का ही नतीजा है कि आए दिन पुलिस और परिवहन विभाग की टीमों से देश का वाहन चालक जूझता हुआ सड़क पर कहीं भी दिखाई दे जाएगा। वजह वही, कानून इतने ज्यादा हैं कि उन्हें पढ़कर, रटकर याद रख पाना हर किसी के बूते की बात नहीं।
मतलब, इंसान की खुद की सुरक्षा के लिए देश की सरकार द्वारा बनाए गए ट्रैफिक के नियम-कानूनों की जानकारी भी वाहन चालकों को सड़क पर ही होती है, न कि खुद-ब-खुद।
आईएएनएस ने ट्रैफिक के नियम-कायदे और आर्थिक दंडों से संबंधित कुछ बिंदुओं को ध्यान से पढ़ा तो हकीकत सामने आई। लगा कि आखिर क्यों देश के यातायात बंदोबस्त सड़कों पर आते ही तितर-बितर होकर फैल जाते हैं। इनमें से कई नियम कानून सही तो लगे मगर उनके बीच आर्थिक दंड की जुर्माना राशि के बीच मौजूद उल्टा-पुल्टा अंतर देखकर किसी की भी हंसी छूट जाना लाजिमी है।
मसलन, अगर कोई कॉमर्शियल चालक बिना बैज लगाए और वर्दी पहने सड़क पर वाहन चलाता मिला तो, उस पर 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। जबकि वाहन चलाते हुए मोबाइल का इस्तेमाल और खतरनाक श्रेणी की घोषित ड्राइविंग के मामले में जुर्माना राशि (अर्थ-दंड) केवल 500 से 1500 रुपये ही है। ऐसे में देश में ट्रैफिक के कायदे-कानून बनाने वालों पर यहां हंसी आना लाजिमी है। वजह मोबाइल इस्तेमाल करते हुए वाहन चलाने को खतरनाक श्रेणी में रखे जाने पर भी जुर्माना केवल 500 से 1500 है। जबकि बिना वर्दी-बैज पहने कॉमर्शियल वाहन चलाने वाले पर जुर्माना 10 हजार!
आखिर यह किस नजरिये से बनाया गया कानून है? पूछे जाने पर दिल्ली के रिटायर्ड एडिशनल पुलिस कमिश्नर (ट्रैफिक) भैरों सिंह गुर्जर ने आईएएनएस से कहा, “दरअसल, बिना बैज-यूनिफार्म के कॉमर्शियल वाहन चालकों पर जुर्माना राशि इसलिए ज्यादा रखी गई है, ताकि उनकी भीड़ में भी अलग पहचान हो सके। कोई असामाजिक या संदिग्ध समाज को नुकसान पहुंचाने से पहले ही पहचाना जा सके।”
यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भैरो सिंह गुर्जर कई साल पहले बनी उस कमेटी में बहैसियत सदस्य भी शामिल रहे थे, जिसके कंधों पर ट्रैफिक नियम-कायदे कानून बनाने की जिम्मेदारी थी।
वर्ष 2000 के दशक में दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महिला की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया था, “राजधानी की सड़कों पर किसी भी चार-पहिया वाहन पर काले शीशे मौजूद न रहें, क्योंकि काले शीशे और खिड़कियों पर परदे पड़े होने वाले वाहनों में ही संदिग्ध गतिविधियों को अंजाम दिए जाने की घटनाएं अमूमन सामने आ रही हैं।”
इस आदेश के अनुपालन में दिल्ली के तत्कालीन पुलिस कमिश्नर के.के. पॉल ने सबसे पहले दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के उस वक्त संयुक्त आयुक्त रहे आईपीएस कमर अहमद की सरकारी एंबेसडर कार की खिड़कियों पर लगे काले शीशे साफ करवा डाले थे। अब कमर अहमद रिटायर हो चुके हैं। धीरे-धीरे दिल्ली पुलिस के बाकी बचे हजारों वाहनों से भी काले शीशे साफ करा दिए गए थे।
सोचिए कि जिन काले शीशे वाली कारों को लेकर किसी राज्य का हाईकोर्ट इस कदर गंभीर हो, ऐसे वाहनों पर आर्थिक दंड तो और भी कई गुना ज्यादा भारी-भरकम होना चाहिए। मगर हकीकत इससे कोसों दूर है। काले शीशे का वाहन पकड़े जाने पर महज 500 से 1500 रुपये तक का ही आर्थिक दंड है।
इन ट्रैफिक कानूनों को बनाने वालों के अल्पज्ञान पर हंसी यह देखकर आती है कि जिन कारणों से काले शीशे के वाहनों पर देश की राजधानी में कोहराम मच गया था, उन पर जुर्माना महज 500 से 1500 रुपये, जबकि ‘प्रेशर-हॉर्न’ के इस्तेमाल पर जुर्माना राशि है पांच से 10 हजार रुपये तक। कोई भी खुद ही सोच-समझ सकता है कि सड़क पर चलते वक्त इन दोनों में से समाज के लिए सीधे तौर पर खतरनाक और बड़ा जुर्म पहले कौन सा है?
हुक्मरानों ने, बिना प्रदूषण नियंत्रण के वाहन चलाते पकड़े गए चालकों से 10 हजार तक जुर्माना वसूलने का प्रावधान किया है, जबकि सड़क पर खुलेआम धुआं छोड़ने वाले वाहनों से इसकी तुलना में सिर्फ और सिर्फ 500 से लेकर 1500 तक की ही जुर्माना राशि वसूली जाएगी।
सवाल यह पैदा होता है कि आखिर सड़क पर धुआं छोड़ने वाले वाहनों पर सिर्फ 500 से 1500 रुपये का ही आर्थिक दंड क्यों? इनके ऊपर भी आर्थिक दंड की वो राशि क्यों नहीं, जिससे कानून की धज्जियां सड़क पर धुआं उड़ाने से पहले ऐसे वाहन चालक सौ बार सोचने को मजबूर हों।
लालबत्ती पर जबरिया भीड़ में घुसकर वाहन को निकालने की कोशिश करते पकड़े जाने पर जुर्माने की राशि 1000 से 5000 (कंपाउंडिंग) है, जबकि नॉन-कंपाउंडिंग कैटेगरी में यह राशि 2000 से 10 हजार के बीच है। जबकि इस तरह की ड्राइविंग को ट्रैफिक कानून की किताबों में खतरनाक ड्राइविंग (डेंजर ड्राइविंग) की श्रेणी में शामिल किया गया है।
भले ही देश की राजधानी और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र प्रदूषण की मार से बेहाल हो, मगर ध्वनि प्रदूषण फैलाने के जिम्मेदार बिना साइलेंसर वाले वाहनों पर आर्थिक दंड महज 500 से 1500 रुपये ही निर्धारित किया गया है। क्या इस श्रेणी के ट्रैफिक कानून उल्लंघन पर 500 से 1500 की जुर्माना राशि इतनी है, जिसके डर के चलते सड़क पर ध्वनि प्रदूषण फैलाने वाला वाहन चालक सौ बार आगे-पीछे की सोचेगा?
हां, देश के गांव-देहात क्षेत्रों में खुलेआम गैर-कानूनी तरीके से चलने वाले ‘जुगाड़ू’ वाहनों को काबू करने के लिए जरूर पांच से 10 हजार रुपये का आर्थिक दंड रखा गया है। यह अलग बात है कि राज्य सरकारों से अगर इन जुगाड़ुओं पर डाले गए अर्थदंड की धनराशि का आंकड़ा पूछ लिया जाए तो शायद जबाब ‘जीरो’ मिलेगा।
रात में हाईबीम लाइट के इस्तेमाल पर महज 500 (कंपाउंडिंग) और 1500 (नॉन कंपाउंडिंग) रुपये का आर्थिक दंड तय किया गया है, जबकि रात के वक्त सड़क हादसों के लिए हाईबीम लाइट्स का इस्तेमाल ही सबसे ज्यादा घातक साबित होता है। फिर भी जुर्माना राशि महज 500 से 1500 रुपये ही क्यों? यही मजाकिया हाल रात में बिना लाइट के वाहन चलाने की श्रेणी के जुर्माने का है। इस कैटेगरी में 500 से 1500 रुपये ही अर्थदंड का कानून है, जबकि बिना लाइट रात में वाहन चलाना स्वयं और सामने वाले की जान को कितना बड़ा खतरा होता है, किसी से छिपा नहीं है।
देश के ट्रैफिक कानून-कायदे की किताबों में सबसे मजाकिया है बीड़ी-सिगरेट पीते हुए वाहन चलाने के मामले में निर्धारित अर्थदंड महज 500 से 1500 रुपये। जबकि यही धुआं वाहन चालक और लालबत्ती या भीड़ भरे बाजार-चौराहे पर उसके आसपास मौजूद अन्य लोगों के लिए सबसे ज्यादा घातक होता है।
इन अजीबो-गरीब ट्रैफिक नियमों के बारे में पूछे जाने पर किसी जमाने में ये नियम-कायदे बनाने वाले और दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के पूर्व एडिशनल कमिश्नर भैरों सिंह गुर्जर ने आईएएनएस से कहा, “ऐसा नहीं है कि एक बार जो नियम-कानून बन गया वो हमेशा के लिए होता है। कायदे-कानून मौजूदा हालात और भविष्य के कुछ आने वाले वर्षो के हालात को मद्देनजर रखकर बनाए जाते हैं। इनमें समय-समय पर सुधार भी होता रहता है।”