सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार को चुनौती दी कि वह ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल, 2021 को संसद में पेश करने के अपने कारणों को दर्शाने वाली सामग्री पेश करे। यह अधिनियम 9 अपीलीय न्यायाधिकरणों को समाप्त करने का प्रावधान करता है। मालूम हो कि संसद में पेश होने से पहले एक अध्यादेश के रूप में इन प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट पहले ही गैर-कानूनी घोषित कर चूका था।
भारत के मुख्य न्यायाधीश एन.वी. रमना की अगुवाई वाली तीन-न्यायाधीशों की पीठ ने विधेयक को सही ठहराने वाली सामग्री की पूर्ण अनुपस्थिति और संसद में उचित बहस की कमी पर में सरकार को कटघरे में खड़ा किया।
बिल ने ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स (रेशनलाइजेशन एंड कंडीशंस ऑफ सर्विस) ऑर्डिनेंस, 2021 की जगह ली है। इस अध्यादेश में ट्रिब्यूनल के सदस्यों और चेयरपर्सन की सेवा की शर्तों और कार्यकाल के प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट ने रद्द कर दिया था। हालांकि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा 2 अगस्त को लोकसभा में पेश किए गए ट्रिब्यूनल रिफॉर्म्स बिल में प्रावधान फिर से मौजूद थे।
पेगासस विवाद और अन्य कानूनों पर विपक्षी दलों के विरोध के बीच विधेयक को लोकसभा में बिना किसी बहस के ध्वनि मत से पारित कर दिया गया। राज्यसभा ने भी 9 अगस्त को विधेयक को मंजूरी दी थी।
मुख्य न्यायाधीश रमना ने कहा कि, “अदालत द्वारा अध्यादेश को रद्द किए जाने के बावजूद विधेयक पारित किया गया है। कोई बहस नहीं हुई। हमने कोई नहीं बहस होते नहीं देखा। हम संसद की बुद्धिमत्ता पर सवाल नहीं उठा रहे हैं। ना ही हम संसद की शक्ति के बारे में कुछ नहीं कह रहे हैं। लेकिन कम से कम हमें यह जानना चाहिए कि विधेयक को पेश करने में सरकार का क्या कारण है। कृपया हमें वह बहस दिखाएँ जो बिल पर हुई थी। यह एक गंभीर मुद्दा है।”
सॉलिसिटर-जनरल तुषार मेहता ने यह दृष्टिकोड़ प्रस्तुत किया कि यह विधेयक अब एक अधिनियम में परिपक्व हो गया है। इसे संसद ने अपने विवेक से पारित किया है। इस पर मुख्य न्यायाधीश रमना ने पुछा कि, ”क्या आप हमें वह रिकॉर्ड दिखा सकते हैं जिसके कारण विधेयक को संसद में पेश किया गया? क्या आप हमें दिखा सकते हैं कि पारित होने से पहले विधेयक के बारे में क्या चर्चा हुई थी।”
मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि 6 अगस्त की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों और प्रमुख न्यायाधिकरणों में 240 से अधिक रिक्तियों को दर्शाने वाले एक नोट को पेश करने के बावजूद एक भी नियुक्ति नहीं की गई थी। इन न्यायाधिकरणों में हजारों मामले लंबित हैं।