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    कंप्यूटर नेटवर्क में TCP in hindi

    विषय-सूचि

    TCP क्या है? (transmission protocol control in hindi)

    ट्रांसमिशन कण्ट्रोल प्रोटोकॉल यानी TCP, जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है ये डाटा के ट्रांसमिशन और नियंत्रण से सम्बन्धित कार्य करता है।

    एक से ज्यादा डिवाइस के बीच संचार की प्रक्रिया अभी के TCP/IP सूट मॉडल के अनुसार होती है (OSI रिफरेन्स मॉडल से निकाला हुआ एक अलग मॉडल)।

    एप्लीकेशन लेयर TCP/IP मॉडल के स्टैक का एक स्तम्भ है जहाँ नेटवर्क से रिफरेन्स होने वाले एप्लीकेशन जैसे कि क्लाइंट साइड के वेब ब्राउजर सर्वर साइड से कनेक्शन स्थापित करते हैं।

    एप्लीकेशन लेयर से सूचनाओं को ट्रांसपोर्ट लेयर में स्थनान्तरित किया जाता है जहां पर दो प्रमुख प्रोटोकॉल होते हैं- एक UDP और एक TCP.

    टीसीपी का प्रयोग इसीलिए ज्यादा होता है क्योंकि ये कनेक्शन के लिए भरोसा देता है और कनेक्ट होने की गारंटी भी। कुल मिला कर ये reliable है।

    TCP के फीचर (features of tcp in hindi)

    अब हम TCP के सभी प्रमुख फीचर की एक-एक कर के बात करते हैं जिसके बाद आपको इसके बारे में बहुत कुछ पता चल जायेगा:

    • ये एक भरोसेमंद प्रोटोकॉल है। इसका मतलब ये हुआ कि रिसीवर हमेशा सेंडर को डाटा पैकेट्स के बारे में या तो पॉजिटिव नहीं तो नेगेटिव acknowledgement भेजता ही भेजता है। इस कारण से सेंडर को हमेशा पता होता है कि डेस्टिनेशन तक उसके द्वारा भेजे गए डाटा पैकेट्स पहुंचे भी हैं या नहीं। अगर नहीं पहुंचे तो वो इसे सही समय पर दुबारा भेजता है।
    • TCP ये भी सुनिश्चित करता है कि डाटा डेस्टिनेशन पर उसी क्रम में पहुंचे जिस क्रम में उसे यहाँ से भेजा गया था।
    • ये एक कनेक्शन ओरिएंटेड प्रोटोकॉल है। असली डाटा को भेजने के लिए TCP को दोनों रिमोट पॉइंट्स के बीच कनेक्शन स्थापित करने की जरूरत पड़ती है।
    • ये एरूर की जांच करने और खोये हुए डाटा पैकेट्स को रिकवर करने के लिए भी मैकेनिज्म देता है।
    • टीसीपी एंड टू एंड कम्युनिकेशन की सुविधा देता है।
    • ये फ्लो नियंत्रण और सर्विस की गुणवत्ता भी देता है।
    • TCP क्लाइंट और सर्वर के पॉइंट टू पॉइंट मोड में काम करता है।
    • TCP फुल डुप्लेक्स सेवर की सुविधा देता है, जिसका अर्थ ये हुआ कि ये रिसीवर और सेंडर- दोनों के ही role में बखूबी फिट बैठता है।

    TCP का हेडर (tcp header in hindi)

    TCP का हेडर का न्यूनतम length 20 बाइट और अधिकतम 60 बाइट का होता है।

    अब हम विस्तृत तरीके से नीचे चित्र मर दिख रहे टीसीपी हेडर में उपस्थित एक-एक चीजों के बारे में जानेंगे। क्योंकि टीसीपी के हेडर को समझने के बाद आप इसे पूरे फॉर्मेट को आसानी से समझ जायेंगे।

    TCP Header

     

    • Source Port (16-बिट्स) – ये सेंडिंग डिवाइस में एप्लीकेशन प्रोसेस के सोर्स पोर्ट की पहचान करता है।
    • Destination Port (16-बिट्स) – ये रिसीविंग डिवाइस में एप्लीकेशन प्रोसेस के डेस्टिनेशन पोर्ट की पहचान करता है।
    • Sequence Number (32-बिट्स) – इसका अर्थ हुआ एक सेशन में किसी सेगमेंट के डाटा bytes की क्रम संख्या।
    • Acknowledgement Number (32-बिट्स) – जब acknowledgement फ्लैग सेट होता है तब ये एक्सपेक्टेड डाटा बाइट के अगले क्रम संख्या को रखता है। इसके साथ ही ये पिछले प्राप्त हुआ डाटा के acknowledgement या रिसिप्ट का काम भी करता है।
    • Data Offset (4-bits) – ये क्षेत्र दोनों चीजें दिखाता है: TCP हेडर का आकार (32-बिट शब्द) और पूरे TCP सेगमेंट में अभी के डाटा पैकेट का ओफ़्सेट।
    • Reserved (3-bitsबिट्स) – ये भविष्य के प्रयोग के लिए रिज़र्व रखा जाता है और डिफ़ॉल्ट में ये सारा जीरो सेट रहता है।
    • Flags (1-बिट प्रत्येक)
      • NS – Nonce Sum बिट का प्रयोग Explicit Congestion Notification signaling प्रक्रिया द्वारा किया जाता है।
      • CWR –  जब कोई होस्ट ऐसे पैकेट प्राप्त करता है जिसका ECE बिट सेट हो तो ये Congestion Windows Reducedको सेट कर देता है ताकि ये बता सके कि ECE प्राप्त हो गया है।
      • ECE – इसके दो अर्थ हो सकते हैं:अगर sign बिट 0 से क्लियर हो तब ECE का मतलब हुआ कि ECE के पास अपना CE (Congestion Experience) बिट सेट है। वहीं अगर 1 हो तो इसका मतलब हुआ कि डिवाइस ECT युक्त है।
      • URG – ये दिखता है कि अर्जेंट पॉइंटर फील्ड के पास महत्वपूर्ण डाटा है और उसे प्रोक्र्स किया जा सकता है।
      • ACK – ये यह दिखता है कि एकनॉलेज फील्ड का सिग्निफिकेंस है। अगर ये 0 है तो ये दिखता है कि पैकेट के पास कोई acknowledgement नहीं है।
      • PSH – जब इसे सेट किया जाता है तो इसे डाटा को पुश करने के लिए प्राप्तकर्ता स्टेशन को निवेदन करता है। ऐसा इसीलिए ताकि एप्लीकेशन डाटा को बिना बफर किये हुए प्राप्त कर सके।
      • RST – ये रिसेट फ्लैग है जिसके निम्नलिखित फीचर होते हैं:
        • किसी आ रहे कनेक्शन को अस्वीकार करने के लिए इसका प्रयोग होता है।
        • किसी सेगमेंट को रिजेक्ट करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
        • किसी कनेक्शन को फिर से शुरू करने के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता है।
      • SYN -इस फ्लैग को एक या एक्स से अधिक होस्ट के बीच कनेक्शन स्थापित करने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
      • FIN – This flag is used to release a connection and no more data is exchanged thereafter. Because packets with SYN and FIN flags have sequence numbers, they are processed in correct order. इस फ्लैग का प्रयोग होते ही कनेक्शन छूट जाता है और उसके बाद किसी भी तरह के डाटा का आदान-प्रदान नहीं होता । चूँकि SYN और FYN फ्लैग वाले पैकेट्स के पास क्रम संख्या होता है,उन्हें सही क्रम में प्रोसेस किया जाता है।

    TCP का कनेक्शन (tcp connection in hindi)

    जैसा कि हमने आपको बताया, ये सर्वर-क्लाइंट मोड में काम करता है। क्लाइंट कनेक्शन की शुरुआत करता है और अब ये सर्वर के उपर होता है कि वो इसे स्वीकार करे या फिर अस्वीकार करे।

    कनेक्शन के प्रबंधन के लिए थ्री वे हैण्डशेक का प्रयोग किया जाता है।

    TCP Handshake

    क्लाइंट कनेक्शन की शुरुआत करते हुए क्रम संख्या के साथ एक सेगमेंट को भेजता है। फिर सर्वर इसे अपने क्रम संख्या के साथ एकनॉलेज करता है।

    ACK का सीक्वेंस नम्बर क्लाइंट के सेगमेंट के नम्बर से एक ज्यादा होता है। जब क्लाइंट अपने सेगमेंट का ack प्राप्त करता है तो फिर सर्वर के रिस्पांस के तौर पर एक ack भेजता है।

    सर्वर और क्लाइंट- दोनों में से कोई भी TCP सेगमेंट भेज सकता है जिसका FIN फ्लैग 1 पर सेट हो। जैसे ही रिसीवर उ फ्लैग को ack करता है तभी TCP के कनेक्शन का वो डायरेक्शन बंद हो जाता है और संचार को स्थगित कर दिया जाता है।

    इस लेख से सम्बंधित यदि आपका कोई भी सवाल या सुझाव है, तो आप उसे नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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