जबकि फिल्म इंडस्ट्री में अभिनेत्रियाँ समान वेतन और अच्छे किरदार के लिए लड़ती हैं, टीवी इंडस्ट्री में इसका बिलकुल उल्टा ही होता है। यहाँ अभिनेत्रियों को शो का मुख्य आकर्षण बनाकर पेश किया जाता है और हर संभव कोशिश की जाती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि दर्शको को ये किरदार दशको तक याद रहे। यहाँ तक कि शो की विलन पर भी बहुत ध्यान दिया जाता है और जब भी उनका कोई दृश्य होता है तो एक थीम सांग उनको समर्पित होता है।
पुरानी यादों में जाओ तो आपको उर्वशी ढोलकिया और सुधा चंद्रा की याद आ जाएगी। दोनों ही टीवी की सबसे लोकप्रिय वैम्प में से एक हैं लेकिन क्या आपको कोई मेल विलन याद है जिसने कोई यादगार किरदार निभाया हो? टीवी इंडस्ट्री में किसी मेल विलन की तरफ रचनात्मक रूप से कभी इतना ध्यान ही नहीं दिया गया। अब शो कसौटी ज़िन्दगी के’ ही देख लो, दर्शको को शो में केवल एक ही विलन याद है और वो है कोमोलिका। जबकि सच्चाई ये है कि मिस्टर बजाज ने भी विलन बनकर शो में प्रवेश किया था। हालांकि, दर्शको को उनका किरदार तब पसंद आया जब वह विलन से हीरो बन गए और उनके किरदार से गीत ‘क्या प्यार करोगी मुझसे’ जुड़ गया।
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चाहे वह रचनात्मकता की कमी हो या प्रयास या सिर्फ यह तथ्य कि खलनायिका हमेशा एक दशक से अधिक समय तक छोटे पर्दे पर एक मजबूत भूमिका निभाती आई है। लेकिन यह देखना शानदार होगा कि महिला की तुलना में पुरुष खलनायक की भी छोटे पर्दे पर शानदार एंट्री हो। चाहे किसी की ज़िन्दगी तबाह करनी हो या बदला लेना हो, मेल और फीमेल दोनों ही विलन शो में समान रूप से योगदान देते हैं इसलिए ये जरूरी है कि मेल विलन को भी लाइमलाइट दी जाए।
आप गौर करें तो आपको एक चीज़ समझ आएगी कि ज्यादातर शो में अगर कोई मेल विलन है भी तो उसके सारे काम जैसे किसी को धमकाना, पीटना या योजना बनाना, ये उस आदमी से जुड़ी एक महिला ही करती है। उदाहरण के तौर पर, किसी शो में पर,कोई क्रूर जमींदार है तो उसकी पत्नी भी किसी खलनायिका से कम नहीं निकलेगी जो लोगो पर अत्याचार करेगी और सारी लाइमलाइट ले जाएगी।
उनकी स्टाइलिंग भी अलग नहीं होती है। ज्यादातर मेल विलन सामान्य कपड़ो में ही नज़र आते हैं जबकि महिला वैम्प का एक स्टाइल स्टेटमेंट होता है जिसके कारण उनका किरदार यादगार बनता है। शायद ऐसे शोज ज्यादातर महिलाएं देखती हैं इसलिए महिलाओं पर ही ध्यान दिया जाता हो। लेकिन ऐसे में उनका ध्यान मेल विलन पर भी होता है इसलिए जरूरी है कि उनपर भी रचनात्मक रूप से ध्यान दिया जाये।