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    kota factory review

    “माँ-बाप के निर्णय गलत हो सकते हैं पर उनकी नीयत नहीं” टीवीएफ की नई वेबसीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ का यह डायलॉग सच ही है। सभी माँ-बाप चाहते हैं कि उनका बच्चा खूब आगे बढ़े, अच्छे से पढ़ाई करे ताकि उनका उज्ज्वल भविष्य सुनिश्चित हो सके और इसी सिक्योरिटी की कड़ी में आती है आईआईटी और मेडिकल एंट्रेंस की तैयारी।

    भारत में बीते कुछ वर्षों से कुछ इस तरह का चलन है कि लोगों को इस बात का पूरा विश्वास है कि सबसे अच्छी नौकरी सिर्फ और सिर्फ डॉक्टर्स या फिर इंजीनियर की ही है और इसकी पढ़ाई करके फ्यूचर सिक्योर हो जाता है और इसी के चलते माँ-बाप अपने बच्चों को आईआईटी या फिर मेडिकल की तैयारी कराने की ख्वाहिश रखते हैं।

    हर साल लाखों बच्चे अपने और अपने माँ-बाप के इसी सपने को लेकर कोटा आते हैं क्योंकि इन तैयारियों के लिए कोटा को बेस्ट माना जाता है।

    इन लाखों में से कुछ हज़ार के ही चयन होते हैं बाकी के बारे में शायद ही कभी कोई बात करता है। आगे चल कर उन बच्चों का क्या हुआ जिनका चयन नहीं हो पाया था? जो चयनित अभ्यार्थी थे क्या उनमें से सभी के भविष्य आज उतने ही उज्ज्वल हैं जितनी उनके माँ-बाप ने कामना की थी? क्या जो चयनित नहीं हुए थे वे अपना भविष्य नहीं बना पाए?

    लेकिन सच ही है कि “स्टूडेंट कोटा से निकल जाता है लेकिन कोटा स्टूडेंट्स से नहीं निकल पाता”, आईआईटी और मेडिकल में चयनित होने के बाद भी कई बच्चे आत्महत्या कर लेते हैं और कुछ इसकी तैयारी के दौरान ही और कुछ सेलेक्ट नहीं हुए इसलिए।

    अंतिम लिस्ट में नाम आने से हम किसी भी बच्चे को बेस्ट का खिताब थमा देते हैं और जिनका नहीं हुआ उन्हें निकम्मा घोषित कर देते हैं लेकिन इस तरह की तैयारी में शामिल हुए सभी बच्चों ने अपनी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी में कितना स्ट्रगल किया है इसके बारे में शायद ही कोई बात करता है।

    ‘कोटा फैक्ट्री’ का पहला सीजन इन्ही अनछुए पहलुओं को उजागर करता है। वैभव (मयूर मोरे) जो एक ब्राइट स्टूडेंट है, के पिता उसका एडमिशन कोटा की बेस्ट कोचिंग में कराने का सपना लेकर यहाँ आते हैं लेकिन सीट्स पहले से ही भरी होती हैं और वैभव को एडमिशन नहीं मिल पाता है, जिसके चलते उसे प्रोडिजी क्लासेज में एडमिशन लेना पड़ता है।

    इस कोचिंग में भी वैभव को ए10 बैच मिलता है क्योंकि उसने देर से एडमिशन लिया और दसवीं कक्षा में 90 प्रतिशत अंक हासिल करने वाले वैभव को यह गवारा नहीं है कि वह सबसे ख़राब बैच में पढ़े। इसी कड़ी में वह कोटा के सबसे कूल टीचर जीतू भैया से मिलता है जो वैभव को रियलिटी चेक कराता है। क्या वैभव ए10 से ए1 में जा पाएगा?

    क्या वह कोटा में टिक कर अपनी तैयारी पूरी कर पाएगा? अभी उसे और किन मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा? यह वेब सीरीज इसी कहानी को आगे बढ़ाती है।

    अभिनय की बात करें तो सारे किरदार कन्विंसिंग लगते हैं और जिसको जो भी भूमिका दी गई थी उसके साथ उन्होंने न्याय करने की कोशिश की है। मयूर मोरे के दिन-प्रतिदिन के स्ट्रगल देखकर बरबस ही हमें अपनी कहानी याद आ जाती है। सच में ही हम सभी कहीं न कहीं-कभी न कभी इन परिस्थितियों से गुज़र चुके हैं।

    मयूर ने जिस तरह से सभी भावनाओं को कैमरे के सामने अच्छे से प्रस्तुत किया है, किस तरह लाइफ में क्रश के आते ही उनके हाव-भाव बदल जाते हैं वह वाकई काफी रीयलिस्टिक और काबिल-ए-तारीफ़ है।

    एक और किरदार जो याद रह जाता है वह है मीना का। मीना इनको प्यार से बुलाते हैं पर पूरा नाम है बालमुकुंद मीना। इस किरदार में जिस तरह की बारीकियां और पेचीदगी है उसे कोई अच्छा अभिनेता ही निभा सकता है और यह काम रंजन राज ने बखूबी किया है।

    उनके किरदार से और उसकी शुद्ध हिंदी से आपको बरबस ही प्यार और संवेदना हो जाती है। और अपने कॉलेज का कोई दोस्त याद आ जाता है। सच में ऐसा लगता है कि मीना को हम हमेशा से जानते हैं।

    तीसरा किरदार जो वाकई में ‘फैन बनने लायक है” वह है जीतू भैया अथवा जीतेन्द्र कुमार का। इतना कूल टीचर तो शायद ख्वाबों में ही होता है। अगर असल में होता भी होगा तो हम इतने भाग्यशाली नहीं हैं शायद कि इस तरह का कोई मेंटर हमें मिला हो। जीतू भैया टीचर नहीं सुपरहीरो हैं; हर मर्ज़ की दवा।

    लेकिन यह बात बिलकुल सच है कि आज के दौर में जब शिक्षा को कोचिंग संस्थानों ने महज़ एक व्यवसाय बना के रख दिया है, उसमें भी कुछ ऐसे टीचर्स हैं जो सच में बच्चों के बारे में सोचते हैं और दिल से चाहते हैं कि मेहनती बच्चों का भला हो।

    जीतेन्द्र कुमार ने इस किरदार को बखूबी निभाया है और वह काफी रियल लगने वाले अभिनेता भी हैं जिनका अभिनय भी उनके जितना ही रियल लगता है। इसके साथ ही एहसास चन्ना, उर्वी सिंह और रेवती पिल्लई ने शो में जान फूंक दी है। इनकी भूमिकाएं लम्बी नहीं हैं पर बड़ी हैं।

    निर्देशन की बात करें तो राघव सुब्बू को अपने काम की समझ है और उन्होंने जिस तरह से छोटी-छोटी बारीकियों को ध्यान में रखते हुए इसका निर्माण किया है वह वाकई में दर्शकों के लिए एक ट्रीट है।

    सौरभ खन्ना, अभिषेक यादव, हिमांशु चौहान और संदीप जैन ने मिलकर बहुत खुबसूरत कहानी लिखी है जो बिलकुल अपनी सी लगती है। एक-एक किरदार ढंग से लिखे गए हैं जो दिल को छू जाते हैं। कहानी में सबकुछ है; हंसी, दुःख, रोमांस।

    इस वेब सीरीज की खूबसूरती यह है कि दुनिया की कड़वी सच्चाई से हमारा सामना कराने के साथ ही यह हमें मोटिवेट भी करती है। कहानी बहुत ही संतुलित है और यह किसी भी चीज़ को सही यह गलत बताने की जगह वह चीज़ अपने आप में कैसी है उससे हमें रूबरू कराती है।

    वेब सीरीज में टीनएज के बच्चों की भावनाओं और विचारों को खूबसूरती से फिल्माया गया है। भले रिजल्ट्स अच्छे न हों लेकिन उसकी परवाह किये बिना उनका मेहनत करते रहना। जिनसे मेहनत नहीं हो पा रही है उनकी अपने-आप से ही जद्दोजहद और अपने माँ-बाप के बारे में सोचकर वापस न जा पाना।

    उनपर सामाजिक और मनोवैज्ञानिक दबाव का असर। टीनएज रोमांस और पहले-पहले प्यार के उन खुबसूरत लम्हों को इस तरह उकेरा गया है कि सीधे दिल तक जाते हैं। दोस्तों से बिछड़ने का ग़म, प्यार से दूर हो जाने का डर, इनसबके बावजूद अपने एग्जाम की तैयारी में मन लगाए रखना और इस तरह की परीक्षाओं का असल मायने में ज्ञान पर आधारित नहीं होना। इस वेब सीरीज में यह सब बड़ी ही सच्चाई से दिखाया गया है।

    यदि आप बोरिंग youtube कंटेंट से पक चुके हैं तो टीवीएफ आपके लिए कुछ फ्रेश लेकर आया है और इसको देखने का आपका अनुभव वाकई शानदार रहेगा।

    रेटिंग- 3/5

    यह भी पढ़ें: ‘दे दे प्यार दे’ बॉक्स ऑफिस कलेक्शन: फिल्म बनी अजय देवगन की टॉप 10 ओपनर में से एक

    By साक्षी सिंह

    Writer, Theatre Artist and Bellydancer

    2 thoughts on “टीवीएफ ‘कोटा फैक्ट्री’ रिव्यु: दुनिया की कड़वी सच्चाई से हमारा सामना कराने के साथ ही हमें मोटिवेट भी करती है यह वेब सीरीज”
    1. Wow, well written mam, was waiting for your review only. I love the way you review these online web series. Please do more and more such types of reviews.

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