टाइटैनिक जहाज (titanic) की त्रासदी इतिहास में पिछले करीबन 100 सालों से विश्व भर में चर्चित है। 1912 में जहाज के साथ दुर्घटना हुई थी, और आज भी लोग इसके बारे में बातें करते थकते नहीं है।
टाइटैनिक जहाज को ब्रिटेन नें बनाया था। उस समय का यह सबसे बड़ा यात्री जहाज था। इसके अलावा इसके बनाने वाले लोगों नें यह कहा था कि यह जहाज कभी डूब नहीं सकता है। टाइटैनिक को ब्रिटेन से न्यू यॉर्क (अमेरिका) तक का सफ़र तय करना था।
इस टाइटैनिक जहाज का रूट एकदम तय था। 10 अप्रैल 1912 को साउथ हैम्पटन (इंग्लैंड) से चलने के बाद इससे पहले की वो न्यूयॉर्क के दक्षिणी छोर में प्रवेश करे, उससे पहले फ्रांस के चेरबर्ग और आयरलैण्ड के क्वीन्सडाउन में रुकना था। लेकिन विधाता को शायद ये मंजूर नही था। 14 अप्रैल को 4 दिन में 375 मील( 600) किलोमीटर की यात्रा तय करके टाइटैनिक न्यूफाउंडलैंड पहुंचा था।
इसके बाद वो काली रात आई जब जहाज के समयानुसार रात को 11 बजकर 40 मिनट पर जहाज ने एक बड़े से हिम खंड को टक्कर मार दी। टक्कर इतनी जोरदार थी कि जहाज के पतवार की पत्तियां अंदर, स्टारबोर्ड की तरफ आ गईं। इस दुघर्टना से 16 जलरोधी दरवाजों में से 5 दरवाजे समुद्र की तरफ खुल गए। पानी तेजी से जहाज में समाने लगा।
इस वीडियो में टाइटैनिक के टकराने और डूबने को एनिमेटेड तरीके से दिखाया गया है।
अब समय बहुत कम बचा था। स्थिति को ज्यादा बिगड़ते देख, आनन-फानन में जीवन रक्षा नौकाओं को पानी में उतारने की प्रक्रिया शुरू की गई। इस प्रकार की नौकाओं में चढ़ने का भी एक प्रोटोकॉल होता है। जिसके अनुसार इस प्रकार की नौकाओं पर चढ़ने के लिए बच्चों और महिलाओं को प्राथमिकता दी जाती है। और उस प्रोटोकॉल के चलते बहुत से पुरुषों को चढ़ने ही नही दिया गया। 2:20 बजे तक नाव का एक भाग टूट कर पूरी तरह से पानी में समा गया। अब भी उसमें 1000 से ज्यादा लोग सवार थे।
हालांकि टाइटैनिक के डूबने के सिर्फ 2 घंटे के अंदर ही आर.एम.एस. करपतिया नाम की एक दूसरा यात्री पोत घटना वाली जगह पर पहुंच गया था, लेकिन वह सिर्फ 705 लोगों को ही बचा पाया।
आरएमएस टाइटैनिक, एक विशालकाय और सम्पूर्ण सुख-सुविधाओं से लैस ऐसा जहाज था, जिसका डूबना सम्पूर्ण विश्व में शोक व्याप्त कर गया था। 15 अप्रैल 1912 को जब दुनिया वालों को पता चला कि अपनी पहली यात्रा में ही ब्रिटेन से न्यूयॉर्क जा रहा ‘टाइटैनिक’ आज सुबह एक बड़े से बर्फ के पहाड़ से टकराकर दक्षिण अटलांटिक महासागर में डूब गया तो दुनिया में हलचल पैदा हो गयी।
होती भी क्यों न, टाइटैनिक पानी में उतरने वाला अब तक का सबसे बड़ा जहाज जो था। ऊपर से व्हाइट स्टार लाइन कंपनी द्वारा चलाये गए तीन ओलंपिक-क्लास यात्री पोतों में से दूसरे नंबर का यह यात्री पोत जब डूबा तो 1500 से ज्यादा लोगों की जिंदगियों को भी ले के डूबा था।
एक अनुमान के मुताबिक जहाज के डूबते वक्त चालक दल के अलावा उसमें 2224 यात्री सवार थे, जिनमें से 1500 से भी ज्यादा लोगों की जान चली गयी थी। यहाँ तक कि बेलाफस्ट में हरलैंड एन्ड वोल्फ कंपनी द्वारा निर्मित इस जहाज के मुख्य वास्तुकार यानी आर्किटेक्ट थॉमस एंड्रूज और मुख्य संचालन अधिकारी एडवर्ड स्मिथ भी इस त्रासदी में डूब गए थे।
इस महासागरीय यात्री पोत में दुनिया के कुछ बहुत अमीर लोगों के साथ-साथ ग्रेट ब्रिटेन, आयरलैंड और सकैंडिनाविया तथा सम्पूर्ण यूरोप के ऐसे हजारों लोग सवार थे जो अमेरिका में एक नई जिंदगी की तलाश में जा रहे थे।
इस जहाज का फर्स्ट क्लास वाला हिस्सा विलासिता यानी लग्जीरियस की सम्पूर्ण सुविधाओं को ध्यान में रखकर बनाया गया था। उसमें महंगे रेस्टोरेंट, जिमखाना, स्विमिंग पूल, पुस्तकालय और रईशी से परिपूर्ण कमरे आदि थे। शिप के संचालन में चालकों के साथ संपर्क करने तथा यात्रियों को सूचनाएं देने के लिए उसमें एक उच्चतम तकनीकी का रेडियो टेलीग्राफ ट्रांसमीटर लगाया गया था।
हालांकि अगर सुरक्षा के दृष्टिकोण से देखें तो टाइटैनिक में जलरोधी कंपार्टमेंट, रिमोट कंट्रोल से खुलने और बंद होने वाले दरवाजों सहित कई चीजें अब तक की सबसे आधुनिक थीं लेकिन शायद पुराने समुद्री सुरक्षा के नियमों के कारण टाइटैनिक में पर्याप्त लेगों के लिए जीवन रक्षा नौकाएं नही थीं। इसमें 1178 लोगों, यानी कुल यात्रियों में से आधे से बस थोड़े ज्यादा यात्रियों के लिये ही जीवन रक्षक नौकाओं का इंतजाम था।
हालांकि उसमें जीवन रक्षक नौकाओं के लिए 16 डेविट थे। प्रत्येक में 3 नौकाएं आती थीं और इस हिसाब से उनके पास 48 जीवन रक्षक नौकाएं रखने की जगह थी लेकिन उसमें इस प्रकार की सिर्फ 20 नौकाएं ही थीं। उसमें से भी 4 नौकाएं ऐसी थीं जो एकदम टूटने के कगार पर थीं, जिन्हें पानी में उतारने में बेहद मुश्किलों का सामना करना पड़ा था।
इस त्रासदी से विश्व भर के लोगों में इतनी ज्यादा जानें गवां देने से गम तो था ही साथ में संचालन की इतनी बड़ी चूक पर उनमें रोष भी उमड़ पड़ा था। उस घटना से सबक लेते हुए ब्रिटेन और संयुक्त राज्य में समुद्री सुरक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण सुधार किए गए। उससे भी बड़ा और उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण जो कदम था वह था 14 साल 1914 को समुद्री सुरक्षा के लिए अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन की स्थापना। जो आज भी समुद्री सुरक्षा को नियंत्रित करता है इसके अलावा अपनी पिछली गलतियों से सीख लेते हुए बेतार संचार के संबंध में नए नियम लागू किए गए। ऐसे नियम, जो अगर पहले से लागू होते तो शायद इतनी ज्यादा जाने न जातीं।
टाइटैनिक के मलबे को खोजना, वैज्ञानिकों के लिए हमेशा से एक रुचिकर विषय रहा था। अंततः इसके डूबने के लगभग 70 सालों बाद 1985 में पहली बार उसका मलबा खोजा गया। अब भी उसका मलबा समुद्र की सतह पर पड़ा हुआ है अनुमान है कि जहाज दो हिस्सों में टूटने के बाद धीरे-धीरे समुद्र की गहराई में बढ़ता चला गया और अंततः 12415 की फीट की गहराई पर जाकर समुद्र तल पर बैठ गया।
1985 में उसके मलबे की खोज होने के बाद से उससे जुड़े तमाम कलाकृतियों और वस्तुओं को विश्व भर में कई कई प्रदर्शनियों में दिखाया गया। टाइटैनिक अब तक का सबसे प्रसिद्ध जहाज बन चुका है। उसकी छाप हर जगह दिखाई देने लगी है फिर चाहे वह फिल्म हो किताबें हों लोकगीत हो या फिर कोई प्रदर्शनी।
इस वीडियो में आप देख सकते हैं, जब टाइटैनिक के डूबने के करीबन 100 साल बाद इसके अवशेष पानी में मिले थे।
समुद्र में समाने वाले बड़े जहाजों में दूसरे नंबर पर टाइटैनिक का नाम आता है। इससे पहले नंबर पर उसका ही एक भाई बी.एच.एम.एस ब्रीटैनिक का नाम आता है। टाइटैनिक से लौटी अंतिम जीवित महिला मिलविना डीन थीं, जिनकी 97 साल की उम्र में 2009 में मृत्यु हो गई।
आई एम एस Titanic के डूबने का मुख्य कारण क्या था?