झारखंड विधानसभा चुनाव में अच्छे परिणाम पाने के लिए सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) कोई कोर-कसर नहीं छोड़ना चाहती। यही कारण है कि बिहार भाजपा की टीम के अलावा पार्टी की केंद्रीय टीम भी यहां पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में उतरी है।
कहा भी जा रहा है कि भाजपा को अपनी ‘विजेता छवि’ बरकरार रखने और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) की मजबूती कायम रखने के लिए झारखंड विधानसभा चुनाव उसके लिए बेहद अहम है। अगर यहां के चुनाव परिणाम भाजपा के पक्ष में नहीं आए तो विपक्ष बिना देर किए आंख तरेरना शुरू कर देगा।
हरियाणा और महाराष्ट्र में आशातीत चुनाव परिणाम नहीं आने पर सहयोगी दलों ने जिस तरह अपने व्यवहार में बदलाव लाया है, उससे भाजपा भी सचेत है। भाजपा के एक नेता भी मानते हैं कि झारखंड का चुनाव परिणाम पार्टी के लिए अहम है। वह कहते हैं कि कोई भी चुनाव किसी भी पार्टी के लिए अहम होता है, लेकिन झारखंड का चुनाव पार्टी और राजग दोनों के लिए अहम है।
गौरतलब है कि महाराष्ट्र में चुनाव परिणाम आने के बाद ’50-50 फॉर्मूला’ लागू करने पर अड़ी शिवसेना ने भाजपा से गठबंधन तोड़ अपना अलग रास्ता अख्तियार कर लिया है, जबकि जद (यू) और लोक जनशक्ति पाार्टी (लोजपा) भी समन्वय समिति के जरिए भाजपा पर दबाव बना रही है।
झारखंड के राजनीतिक समीक्षक मधुकर ने आईएएनएस से कहा कि अपेक्षित चुनाव परिणाम नहीं आना भाजपा के लिए नुकसानदेह तो होगा ही, छोटे दलों की बांछें भी खिल जाएंगी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उनकी पार्टी जद (यू) खुद को ‘कम्फर्ट जोन’ में महसूस करने लगेंगे, वहीं उनका दबाव भाजपा पर बढ़ जाएगा। झारखंड में आजसू जैसे छोटे दलों का कुनबा भी बड़ा हो जाएगा।
उन्होंने यह भी कहा, आशातीत परिणाम के बाद भाजपा फिर से ‘फ्रंटफुट’ पर पहुंच जाएगी और हो सकता है कि महाराष्ट्र में कर्नाटक की तरह बदलाव नजर आने लगे।
सूत्रों का कहना है कि झारखंड में भाजपा सधे कदम से आगे बढ़ रही है, मगर भाजपा को सबसे ज्यादा नुकसान पार्टी से बगावत कर अलग राह पकड़ चुके ‘बागी’ से है। झारखंड के खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रहे सरयू राय तो बगावत कर जमशेदपुर (पूर्वी) से मुख्यमंत्री रघुवर दास के खिलाफ ही चुनावी मैदान में उतर आए हैं।
इसके अलावा, लातेहार में चुनाव के कुछ समय पहले भाजपा में आए प्रकाश राम को टिकट दिए जाने के बाद भाजपा के नेता और राज्य के शिक्षा मंत्री रहे बैद्यनाथ राम चुनावी अखाड़े में अब झामुमो के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इतना ही नहीं, और भी कई सीटें हैं, जहां भीतरघात की आंशका से इनकार नहीं किया जा सकता। आजसू से भी भाजपा तालमेल नहीं कर सकी है।
राजनीतिक विश्लेषक बैजनाथ मिश्र भी कहते हैं, “झारखंड में सत्ता बरकरार रखने में नाकाम रहने पर दूसरे सहयोगी दल भी भाजपा पर दबाव बनाने से नहीं चूकेंगे। इसका प्रतिकूल असर भाजपा की छवि पर भी पड़ेगी।”
उन्होंने आईएएनएस से कहा, “अगर भाजपा झारखंड में दोबारा सत्ता पाने से चूक गई तो धारा 370, तीन तलाक जैसे कोर राष्ट्रीय मुद्दों पर जद(यू) के विरोध के बावजूद भाजपा बिना किसी की परवाह किए जिस तरह आगे बढ़ी, उसके लिए अन्य मुद्दों पर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा। इसके अलावा राजग में समन्वय समिति बनाने की मांग भी जोर पकड़ेगी।”
वर्ष 2014 में झारखंड में छोटे-छोटे दलों को साधकर भाजपा ने बड़ी सफलता हासिल की थी और झारखंड में रघुबर दास पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गए जो लगातार पांच साल तक मुख्यमंत्री पद पर बने रहे। लेकिन यह तय है कि इस चुनाव में अगर भाजपा को आशातीत सफलता हाथ नहीं लगती है तो ना केवल प्रदेश भाजपा में विवाद शुरू हो जाएगा, बल्कि राजग में छोटे दलों की दखलअंदाजी भी बढ़ जाएगी।