झारखंड के मुख्यमंत्री रघुवर दास की कार्यशैली से हुए कथित असंतोष और सरकार चलाने में लालू प्रसाद की नकल करने की बात से जाहिर तौर पर झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हार हुई।
हालांकि, दास ने अपने नाम कई रिकॉर्ड बनाए। उनमें से एक वह राज्य के पहले ऐसे गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री बने हैं, जिन्होंने अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा किया है। खासकर के ऐसे राज्य में जिसने वर्ष 2000 में अपने बनने के बाद से 19 सालों में आठ मुख्यमंत्री देखें है। दास 2014 से 2019 तक का अपना पांच वर्षो का कार्यकाल पूरा कर पाए हैं।
पदभार ग्रहण करने के बाद से दास ने राज्य स्तर के नेताओं को किनारे कर दिया। सबसे पहले उन्होंने पार्टी के आदिवासी चेहरे अर्जुन मुंडा को किनारे किया। 2019 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने सभी मुंडा समर्थकों को टिकट देने से इनकार कर दिया। सभी 11 विधायकों के टिकट काट दिए गए। यह सभी या तो अर्जुन मुंडा के समर्थक थे या फिर इनकी मुख्यमंत्री से बनती नहीं थी।
अपनी पार्टी के भीतर नेताओं को दरकिनार करने के अलावा मुख्यमंत्री रघुवर दास सहयोगी गठबंधन ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) के अध्यक्ष सुदेश महतो को भी साइडलाइन करने के जिम्मेदार हैं। गठबंधन में रहते हुए आजसू अध्यक्ष सुदेश महतो ने एक प्रकार से राज्य की रघुवर दास सरकार के लिए विपक्ष के तौर पर काम किया।
भाजपा के बाहर और भितर उनके विरोधियों की मानें तो भाजपा-आजसू का सहयोग सिर्फ दास की जिद के चलते नहीं हो सका।
आजसू के सूत्रों के अनुसार, पार्टी चुनाव के लिए आम एजेंडा चाहती थी। पार्टी गठबंधन में बड़े रोल तलाशने के साथ-साथ मुख्यमंत्री पद के लिए एक नए चहरे की मांग कर रही थी। केंद्रीय भाजपा ने आजसू की शर्तो को नहीं माना।
महत्वपूर्ण मुद्दों, जैसे भूमि कानूनों में संशोधन करने और अधिवास नीति लाने में आजसू को विश्वास में नहीं लिया गया, इसपर भी पार्टी नाखुश रही।
दास सरकार के दो कानूनों छोटानागपुर टेनेंसी एक्ट (सीएनटी) और संथाल परगना अधिनियम में संशोधन करने का कदम राज्य के आदिवासी लोगों को अच्छा नहीं लगा। जब विभिन्न संगठनों ने रांची में विरोध प्रदर्शन का आह्वान किया, तो दास ने बलपूर्वक आंदोलन को खत्म करने के लिए बल प्रयोग की अनुमति दी। प्रदर्शनकारियों को उन बसों से वंचित रखा गया, जिन्हें रांची के बाहर रोका गया था।
सरकारी सूत्रों ने कहा कि दास की कार्यशैली ने कई सरकारी अधिकारियों को हतोत्साहित किया। वह सरकारी कर्मचारियों, पार्टी कार्यकर्ताओं और मीडिया कर्मियों पर भी गुस्सा कर अपना आपा खो बढ़ते थे। ऐसे ही कुछ उनके जनसंवाद कार्यक्रमों में देखने को मिलता था।
उनके विरोधियों की मानें तो दास ने अधिकारियों के साथ व्यवहार करते हुए केवल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) प्रमुख लालू प्रसाद की नकल करने की कोशिश की। उन्होंने आरोप लगाया कि अधिकारियों को अपमानित करते हुए लोगों की समस्याओं को नहीं सुलझाया गया।