आम तौर पर कृषि का क्षेत्र पुरुषों का माना जाता है, लेकिन झारखंड के गुमला के घाघरा प्रखंड की रहने वाली क्रांति ने कृषि क्षेत्र में प्रवेश क्या किया, कृषि क्षेत्र में ही ‘क्रांति’ ला दी।
गुमला जिला के घाघरा प्रखंड के बदरी पंचायत के कोतरी गांव की महिला कृषक क्रांति देवी ने प्रारंभ में अपनी माली हालत में सुधार लाने के लिए घर की चौखट लांघने का काम किया था और लोक लज्जा के घेरे को तोड़ खेतों में उतरी थी। उसे क्या पता था यही काम उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर प्रसिद्धि देगा।
साहस का परिचय देकर खेतों में उतरी क्रांति आज कृषि के क्षेत्र में जाना पहचाना नाम बन गई हैं। आज स्थिति है कि क्रांति अब पुरुषों को भी बेहतर कृषि का पाठ पढ़ाने का काम कर रही हैं। क्रांति देवी मात्र आठवीं पास हैं परंतु उन्होंने किसान का क्षेत्र चुना और अपने पति वीरेंद्र उरांव के साथ श्री विधि से धान की खेती कर असाधारण उत्पादन प्राप्त की।
क्रांति देवी आईएएनएस को बताती हैं, “मेरे पास कृषि योग्य कुल दो एकड़ तीस डिसमिल भूमि उपलब्ध है, जिससे मेरे परिवार का जीवन यापन चल रहा है। खेती के साथ-साथ पशुपालन का भी कार्य करती हूं, जो आजीविका का एक प्रमुख साधन है एवं इसके कम्पोस्ट का उपयोग कर अपने खेतों को कृत्रिम उर्वरक एवं कीटनाशकों से बचाव करती हैं।”
क्रांति देवी को तीन जनवरी को बेंगलुरू में आयोजित कार्यक्रम में कृषि कर्मण पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
क्रांति देवी की शादी वीरेंद्र उरांव के साथ हुई थी और ससुराल में आने के बाद घर की माली हालत देखकर क्रांति ने किसान बनने की ठानी।
क्रांति बताती हैं कि पहले खरीफ के मौसम में वे धान की खेती परंपरागत तरीके से देसी प्रजाति के बीज से करती थी एवं रबी के मौसम में सब्जी की खेती करते थे। इससे उत्पादन बहुत ही कम होता था, क्योंकि खेती करने की आधुनिक तकनीक की जानकारी तब प्राप्त नहीं थी। उन्होंने उत्पादन बढ़ाने के लिए काफी प्रयास किए, लेकिन सफल नहीं हुई।
इसके बाद उन्होंने स्वयंसेवी संस्था विकास भारती में कृषि का प्रशिक्षण पाया और खेती करना आरंभ किया, जिसके बाद खेती में क्रांति की भाग्य चमक गई।
वे कहती हैं कि कोतरी गांव में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के अंतर्गत धान संकुल प्रत्यक्षण के अंर्तगत वित्तीय वर्ष 2016-17 में 52 महिला कृषकों को धान की वैज्ञानिक तरीके से खेती का प्रशिक्षण देते हुए बीज का वितरण किया गया। उसी समय क्रांति ने इस बात को गांठ बांध ली और तब से इस क्षेत्र में नए प्रयोग करना शुरू कर दिया।
वे कहती हैं कि उस क्रम में बिचड़ा तैयार करने के लिए भी तकनीकी जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया गया। मिट्टी जांचोपरांत उसका उपचार करवाया गया, जिसके कारण किसी भी प्रकार की कोई बीमारी एवं कीट का प्रकोप बिचड़े की नर्सरी में नहीं देखा गया।
क्रांति कहती हैं कि जहां पहले परंपरागत खेती से औसतन 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता था, वहीं अब औसतन 70 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन पाया गया, जिसके कारण प्रति हेक्टेयर 30,000 रुपये की अतिरिक्त आमदनी हुई। उन्हें इस कारण परिवार का भरण-पोषण करने में बहुत मदद मिली।
कृषि कर्मण पुरस्कार पाने के बाद खुश क्रांति आज कई महिलाओं को भी कृषि के क्षेत्र के लिए प्रेरित कर रही हैं।
गुमला के जिला कृषि पदाधिकारी रमेश चंद्र सिन्हा आईएएनएस से कहते हैं कि उत्तम खेती की प्रतिस्पर्धा में महिलाएं सम्मान भी पाने लगी हैं। स्थानीय स्तर पर महिलाएं प्रशिक्षण पाती हैं और वहां सीखी गई बातों को अपने खेतों पर उतारने का काम करती है, जिसका नतीजा यह है कि बड़ी संख्या में महिलाएं सफल किसान के रूप में उभरने लगी हैं।