देश की राजधानी में व्यापक विरोध प्रदर्शन के एक दिन बाद, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) ने 18 नवंबर को ‘काला दिवस’ बताया, जब आम छात्र एक सस्ती सार्वजनिक शिक्षा के बचाव में उठ खड़ा हुए और उनके साथ पुलिस ने दुर्व्यवहार, मारपीट किया, फिर भी उनकी हार नहीं हुई।
जेएनयूएसयू ने जारी एक बयान में कहा है कि 18 नवंबर को इस देश के सभी छात्रों और युवाओं के लिए एक ऐतिहासिक दिन के रूप में याद किया जाएगा और सीधे गृह मंत्रालय द्वारा नियंत्रित दिल्ली पुलिस और उसकी कार्रवाई अत्यंत निंदनीय है।
बयान में कहा गया है, “जिस दिन भारत की संसद शीतकालीन सत्र के साथ अपने 250वें सत्र के लिए बैठी थी, उसी दिन राष्ट्रीय राजधानी में छात्रों पर एक क्रूर कार्रवाई हुई। राष्ट्रीय राजधानी की सड़कों पर खून बिखरा हुआ था।”
आंदोलनकारी छात्रों द्वारा सोमवार को संसद तक मार्च निकालने की कोशिश के बाद दिल्ली पुलिस ने कम से कम 50 छात्रों को हिरासत में ले लिया।
बयान में कहा गया है कि जेएनयू के छात्र सार्वजनिक शिक्षा की सुरक्षा के लिए दिल्ली की सड़कों पर उतरे।
बयान में आगे कहा गया है, “जब जेएनयू सड़कों पर उतरा, तो इसकी भावना और आवाज उन लाखों युवा छात्रों की थी, जो विविध और सर्वाधिक हाशिए वाली पृष्ठभूमि से आते हैं, जो भारत भर के विश्वविद्यालयों/कॉलेजों में प्रवेश कर चुके हैं या उनमें से एक में शामिल होने की इच्छा रखते हैं। जेएनयू में जो कुछ हुआ है, वह हमारे समय की हमारी लड़ाई का निर्धारण कर रहा है। यह लड़ाई विश्वविद्यालयों को सस्ता और सुलभ बनाए रखने के लिए है। भेदभाव और अलगाव नहीं चाहिए। विश्वविद्यालय खुले रहेंगे, यह असली नए भारत का उद्गम स्थल बनेंगे।”
जेएनयूएसयू ने कहा है कि वे मानव संसाधन विकास मंत्रालय के सचिव से मिले, और जेएनयू समुदाय और जनता के सभी संबंधित सदस्यों को सूचित किया कि सभी प्रयासों के बावजूद एमएचआरडी और विशेष रूप से जेएनयू के वाइस चांसलर (वीसी) छात्रों की मांगों का कोई संज्ञान नहीं ले रहे हैं।
बयान में अवैध रूप से पारित ड्राफ्ट मैनुअल और शुल्क संरचना को फौरन वापस लेने की मांग दोहराई गई है और साथ ही 28 अक्टूबर को हुए इंटर-हॉल एडमिनिस्ट्रेशन (आईएचए) बैठक को अप्रभावी बताया गया है।
जेएनयूएसयू ने जेएनयू प्रशासन और छात्र समुदाय के बीच फिर से बातचीत शुरू किए जाने की मांग भी की।