जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्रसंघ (जेएनयूएसयू) ने शुक्रवार को दिल्ली हाईकोर्ट को बताया कि ‘जिन छात्रों ने बढ़े हुए शुल्क का भुगतान किया था, उन्होंने डर के मारे ऐसा किया है।’ कोर्ट में छात्रसंघ के वकील अमित सिब्बल ने कहा, “छात्रों के एक समूह ने डर के मारे भुगतान किया, क्योंकि अगर वे भुगतान नहीं करते हैं, तो उनसे सुविधाएं वापस ले ली जाएंगी।”
उन्होंने अदालत में आगे कहा कि “ड्रॉफ्ट मैनुअल पर रोक लगाई जाए और जिन्होंने भुगतान किया है, उन्हें या तो वापस कर दिया जाए या राशि को समायोजित किया जाए।”
ये दलील तब दी गईं जब न्यायमूर्ति राजीव शंकर की अगुवाई वाली हाईकोर्ट की एक एकल पीठ जेएनयूएसयू की अध्यक्ष आइशी घोष और अन्य द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें विंटर सेमेस्टर-2020 में पंजीकरण के लिए छात्रों पर लेट फीस लगाने से जेएनयू प्रशासन को प्रतिबंधित करने के लिए अदालत के निर्देश की मांग की गई है।
याचिका में विश्वविद्यालय से किसी भी तरह की कार्रवाई करने पर रोक लगाने के लिए दिशानिर्देश मांगे गए, जो हॉस्टल मैनुअल के मसौदे को प्रभावित कर सकता है।
20 जनवरी को, विश्वविद्यालय में शीतकालीन सेमेस्टर के लिए पंजीकरण की समय सीमा समाप्त होने के तीन दिन बाद, प्रशासन ने दावा किया कि कुल 8,500 पंजीकृत छात्रों में से 82 प्रतिशत ने अपने छात्रावास की बकाया राशि को क्लीयर कर दिया है।
प्रशासन ने कहा कि उसे उम्मीद है कि संख्या आगे बढ़ेगी क्योंकि पंजीकरण अभी भी चल रहा है लेकिन लेट फीस के साथ।
16 जनवरी को, जेएनयू ने शीतकालीन सेमेस्टर के लिए पंजीकरण की अंतिम तिथि 17 जनवरी तक बढ़ा दी थी। पांच जनवरी की मूल समय सीमा के बाद तीसरी बार विस्तार की घोषणा की गई थी।