भारत में लघु उद्योग सेक्टर सबसे ज्यादा नौकरियाँ उपलब्ध करवाता है। भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका हमेशा से ही घहरा प्रभाव रहा है। देश में लघु उद्योगों के चलते ही करीब 6 करोड़ लोगों को नौकरियाँ उपलब्ध हैं। इसी के साथ लघु उद्योग देश के निर्यात में भी बड़ा हिस्सा शेयर करते हैं।
लेकिन पिछले कुछ समय से यही लघु उद्योग सरकार द्वारा लागू की गयी नयी कर प्रणाली (जीएसटी) को लेकर परेशान है। एक ओर जीएसटी ने देश की मुख्य धारा के बाज़ार को एकदम से बदल कर रख दिया है, वहीं यही जीएसटी लघु उद्योगों की गले की फाँस बन गया है।
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इसके पहले पुरानी कर प्रणाली के तहत लघु उद्योगों के लिए कैश व मैनुअल तरीकों को करों का हिसाब-किताब करना आसान था, लेकिन जीएसटी आने के साथ ही लघु उद्योगों को न सिर्फ अपना बही खाता संभालने में परेशानी हो रही है, बल्कि इसके लिए उनपर अतिरिक्त आर्थिक बोझ भी पड़ रहा है।
इस समय जीएसटी के तहत करीब 16 लाख लघु उद्योग पंजीकृत हैं। वहीं जीएसटी के तहत जिन उद्योग का वार्षिक टर्नोवर 1.5 करोड़ से अधिक है, वही उद्योग इसके प्रणाली के तहत कम्पाउण्डिंग योजना में भाग ले सकते हैं, ऐसे में लघु उद्योगों को जीएसटी के तहत मिलने वाले इनपुट टैक्स क्रेडिट (ITC) से भी वंचित रहना पड़ता है।
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इसी के चलते लघु उद्योगों को इन सब के बीच दोहरी मार झेलनी पड़ रही है। अपनी सीमित आय के बाद अब जीएसटी प्रबंधन को लेकर अधिक खर्च व आंकड़ों के रख रखाओ में भी अधिक मेहनत करनी पड़ रही है, ऐसे में लघु उद्योगों के उत्पादन में सीधे तौर पर प्रभाव पड़ना लाज़मी है।
सरकार को भी ये बात समझनी होगी कि देश सिर्फ बड़े उद्योगों के बल पर नहीं चल सकता है, ऐसे में छोटे उद्योगों पर इस तरह के कर के बोझ तले दबा कर उन्हे छोड़ देना देश की अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक हो सकता है।
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