6 अगस्त 1945, यह वही तारीख है जब किसी देश ने पहली बार किसी परमाणु बम का प्रयोग युद्ध के दौरान किया था। विश्व के इतिहास में कभी ना भुलाए आने वाला यह दिन आज भी जब याद किया जाता है, तो लोग सहम जाते हैं। आज भी जब कोई इस बमबारी का सामना करने वाले लोगों की जुबानी सुनता है तो सिहर सा जाता है।
द्वितीय विश्व युद्ध खत्म होने के कगार पर था जब 6 अगस्त 1945 और 9 अगस्त 1945 को संयुक्त राज्य अमेरिका ने जापान के हिरोशिमा नागासाकी पर परमाणु हमला कर दिया था।
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान संपूर्ण विश्व दो गुटों में बट गया था। एक तरफ से जर्मनी, जापान और इटली थे, तो दूसरी तरफ मुख्यतः ब्रिटेन, चीन, रूस, अमेरिका आदि थे। ब्रिटेन की सहमति के बाद अमेरिका द्वारा किए गए इस बमबारी में लगभग 129,000 से भी ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। उससे भी ज्यादा दुख दायक यह था कि उसमें ज्यादातर लोग आम नागरिक थे।
अमेरिका का जापान पर परमाणु हमला करना कितना जायज था, इस बात पर तो अब भी बहस का मुद्दा है लेकिन हम आपको विश्व युद्ध के उन परिस्थितियों के बारे में बताते हैं जिनमें अमेरिका ने यह विघटनकारी कदम उठाया था।
दरअसल प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के साथ ही द्वितीय विश्व युद्ध की पार्टी का निर्माण होना शुरू हो गया था।
प्रथम विश्व युद्ध खत्म होने के बाद कई ऐसे देशों, जिनको युद्ध का जिम्मेदार माना जा रहा था, पर कई सारे कड़े प्रतिबंध के साथ-साथ करोड़ों रूपए का जुर्माना लगाया गया था। जिसके परिणाम स्वरुप उन देशों को अपनी जमीन तो गँवानी ही पड़ी थी, साथ में देश की सारी दौलत भी चली गयी थी।
जर्मनी की हालत इतनी बिगड़ गई थी कि उसको अमेरिका से कर्जा लेना पड़ गया था। अब सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था लेकिन 1929 में अमेरिका का शेयर बाजार अचानक क्रैश हो गया। जिससे पूरे अमेरिका में मंदी छा गई। ‘ग्रेट डिप्रेशन’ के नाम से भी जाना जाने वाले इस मंदी का असर धीरे-धीरे सम्पूर्ण विश्व भर में व्याप्त होने लगा।
अमेरिका ने अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए जर्मनी को दिया उधार वापस मांगना शुरु कर दिया था। जिससे जर्मनी की आर्थिक स्थिति को गहरा धक्का लगा। यहीं से द्वितीय विश्व युद्ध की परिपाटी का निर्माण होना शुरू हो गया।
जर्मनी के तानाशाह हिटलर की विस्तारवादी और आक्रमणकारी नीतियों से परेशान होकर फ्रांस और ब्रिटेन ने अंततः 1 सितंबर 1939 को जर्मनी के खिलाफ युद्ध की घोषणा कर दी। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और 10 मई 1940 को जर्मनी ने ब्रिटेन पर भी हमला कर दिया।
इधर जापान ने थाईलैंड और बैंकॉक समेत चीन के पूरे मंचूरिया इलाके पर भयानक तबाही मचाते हुए कब्जा कर लिया था। इतना सब कुछ होने के बाद भी अमेरिका परोक्ष रूप से युद्ध में कुदा नहीं था।
लेकिन इसी बीच जापान ने अमेरिका के पर्ल हार्बर नामक बंदरगाह पर हमला कर दिया जिसमें अमेरिका की सैकड़ों जहाजों सहित 2000 से भी ज्यादा सैनिक मारे गए थे। इस हमले के बाद अमेरिका युद्ध में प्रत्यक्ष रूप से शामिल हो गया। 1945 के शुरुआत होने के साथ ही अमेरिका परमाणु बम विकसित करने की दिशा में आगे बढ़ चुका था।
इसी के साथ ही मित्र राष्ट्रों में कुछ ऐसा तय किया जो जापान के लिए बहुत ही विनाशकारी होने वाला था। 8 मई 1945 को जर्मनी के द्वारा आत्म समर्पण किए जाने के बाद अमेरिका के मित्र राष्ट्रों ने अपनी पूरी ताकत को प्रशांत महासागर में लगा दिया था।
26 जुलाई 1945 को अमेरिका ने जापान को बिना शर्त आत्मसमर्पण करने के लिए कहा लेकिन जापान ने कोई ध्यान नहीं दिया।
इस दौरान मैनहट्टन प्रोजेक्ट के तहत अमेरिका ने परमाणु बम के सफल परिक्षण में सफ़लता हांसिल कर ली थी। इसके बाद मरीन यूनाइटेड स्टेट आर्मी एयर फोर्सेज के एक ग्रुप के बोइंग बी-29 लड़ाकू विमान को परमाणु बम से लैस किया गया।
25 जुलाई को जापान के चार शहरों पर परमाणु हथियारों से हमला करने का आदेश भी आ गया। आखिरकार 6 अगस्त 1945 को ‘लिटिल बॉय’ नाम के परमाणु हथियार को जापान के हिरोशिमा पर छोड़ दिया गया और उसके ठीक 3 दिन बाद यानी 9 अगस्त 1945 को दूसरे शहर नागासाकी पर फैटमैन नाम का दूसरा परमाणु हमला हो गया।
हमले के चार महीने के अंदर हिरोशिमा में 90,000-160,000 लोग और 39,000-80,000 लोग नागासाकी में उसके दुष्प्रभाव से मारे गए थे। इनमें से आधे लोग हमले के दिन ही मर गए थे। उस बमबारी का असर इतना ज्यादा था कि अगले कई सालों तक जल जाने और रेडियोएक्टिव पदार्थ के हवा में मिल जाने से हजारों लोग मरते रहे।
अंततः जापान ने 15 अगस्त 1945 को आत्म समर्पण कर दिया। जापान के आत्म समर्पण के साथ द्वितीय विश्व युद्ध तो खत्म हो गया लेकिन विश्व के पटल पर एक नया घमासान शुरू हो गया, और ये घमासान था- परमाणु शक्ति पाने का घमासान।
विश्व के तमाम देश इस शक्ति को पाने के लिए पूरी ताकत से लग गए। नए-नए प्रयोग होना शुरू हो हुए, इन प्रयोगों ने विश्व के तमाम देशों को शक्तिशाली से महाशक्तिशाली तो बना दिया लेकिन उन तमाम छोटे-छोटे देशों जिनके पास कोई परमाणु शक्ति नही है उनके लिए असुरक्षा की भावना भी पैदा कर दी।