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    केंद्र सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि 2011 की सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (एसईसीसी) में शामिल जाति के आंकड़े “अनुपयोगी” है। लेकिन भारत के महापंजीयक और जनगणना आयुक्त संसद की ग्रामीण विकास पर स्थायी समिति को पहले भी सूचित कर चूके हैं कि व्यक्तिगत जाति और धर्म के आंकड़े 98.87% “त्रुटि मुक्त” है।

    अपनी रिपोर्ट “बीपीएल सर्वेक्षण वर्तमान में सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी), 2011” पर समिति द्वारा की गई सिफारिशों पर सरकार द्वारा की गई कार्रवाई का विश्लेषण करते हुए, भारत के रजिस्ट्रार-जनरल और जनगणना आयुक्त, गृह मंत्रालय, ने यह कहते हुए उद्धृत किया गया है कि “इस डेटा की जांच की गई है और व्यक्तियों की जाति और धर्म पर 98.87% डेटा त्रुटि मुक्त है।”

    भारत के महापंजीयक के कार्यालय ने कहा कि 118 करोड़ की कुल सर्वेक्षण की गई आबादी में से लगभग 1.34 करोड़ व्यक्तियों के डेटा में त्रुटियां देखी गई हैं।
    एक बिल्कुल ही अलग रुख अपनाते हुए सरकार ने पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में कई कारणों का हवाला दिया कि डेटा “अनुपयोगी” क्यों है। इसमें सरकार ने कहा था कि 1931 में सर्वेक्षण की गई कुल जातियों की संख्या 4,147 थी, जबकि एसईसीसी के आंकड़े बताते हैं कि देश में 46 लाख से अधिक विभिन्न जातियाँ हैं। हलफनामे में कहा गया है कि, “यह मानते हुए कि कुछ जातियां उप-जातियों में विभाजित हो सकती हैं, कुल संख्या इतनी अधिक नहीं हो सकती है कि इनकी गणना करना बहुत मुश्किल है।”

    इसमें कहा गया है कि यह पूरी प्रक्रिया गलत थी क्योंकि गणनाकारों ने एक ही जाति के लिए अलग-अलग वर्तनी का इस्तेमाल किया था। सरकार ने कहा कि कई मामलों में उत्तरदाताओं ने अपनी जातियों का खुलासा करने से इनकार कर दिया था। वहीं राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सदस्य मनोज के झा ने कहा कि त्रुटि आंकड़ों में नहीं, बल्कि सरकार के फैसले में है।

    पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री और लोकसभा सदस्य मनीष तिवारी ने कहा कि अगर 98 फीसदी डेटा त्रुटि रहित है जैसा कि आरजीआई ने स्वीकार किया है, तो एसईसीसी के संचालन में करदाताओं के पैसे खर्च किए जाने के बाद सरकार के पास इसे रोकने का कोई कारण नहीं है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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