शुक्रवार के दिन, जस्टिस कुरियन जोसफ ने अपने घर पर पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपना सारा कीमती वक़्त गैर मुद्दों पर बर्बाद कर रही है वजाय बड़े मुद्दों के। उनके मुताबिक, “सुप्रीम कोर्ट को ऐसे मुद्दों पर ध्यान देना चाहिए वो देशवासियो के हित में हो और बाकी सब को छोड़ देना चाहिए।”
जनवरी में की गयी प्रेस कांफ्रेंस के ऊपर उन्होंने कहा कि पहले ज्यादा पारदर्शिता थी और चीज़ो को काफी ध्यान से किया जाता था। मगर वे संस्थागत संकट था और इतने सालो से सिस्टम में चल रही चीज़ो और प्रथाओं में बदलाव आने में वक़्त लगता है।
जोसफ ने आगे कहा कि रोस्टर सिस्टम ही एक ऐसा मुद्दा था जिसे उस प्रेस कांफ्रेंस में काफी दर्शाया गया और ऐसे कई सिस्टम और प्रथाएं हैं जिसमे सुधार की जरुरत है। उन्होंने ये भी कहा कि चीफ जस्टिस को मुख्य और जरूरी फैसले लेने के लिए एक कमिटी की मदद भी लेनी चाहिए।
मेमोरेंडम ऑफ़ प्रैक्टिस(एमओपी) पर अपने विचार रखते हुए जोसफ ने कहा-“मुझे सरकार और न्यायपालिका के बीच में चल रही अनबन के बारे में नहीं पता। ये किसी को भी स्पष्ट नहीं हैं। संसद में सरकार यही कहती रहती है कि ये अभी तक तय नहीं हुआ है। एमओपी का ड्राफ्ट तैयार है मगर ये पक्का हुआ या नहीं हमे नहीं पता।”
राजनीतिक पार्टियों पर भी उन्होंने बात करते हुए कहा कि एक बार कोर्ट कोई फैसला दे दे तो उसे पूरी आवाम को मानना होता है और अगर उसे कोई राजनीतिक पार्टी मानने के लिए तैयार नहीं होती है तो उसे कोर्ट के पास वापस जाना चाहिए और उनसे सफाई मांगनी चाहिए।
उन्होंने मुख्य न्यायालय में कुछ बदलावों के सुझाव भी दिए। उन्होंने कहा, कोर्ट में इतने बड़े बड़े केस सँभालने के लिए बड़े बड़े कोर्टरूम होने चाहिए। एक और सुझाव में उन्होंने बताया, बेल और शादी से जुड़े मुद्दों को सँभालने के लिए सिंगल-जज की बेंच काफी रहेगी।
साढ़े पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद जोसफ, 29 नवंबर को रिटायर हो गए थे।