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    महात्मा गाँधी

    नई दिल्ली, 8 मई (आईएएनएस)| जलियांवाला बाग नरसंहार के बाद पहली बार पंजाब गए महात्मा गांधी को इस नरसंहार ने ब्रिटिश सरकार के वफादार से उसके कट्टर विरोधी में बदल दिया था। जलियांवाला बाग की 100वीं बरसी के मौके प्रकाशित एक किताब में यह दावा किया गया है।

    ट्रिब्यून के संपादक राजेश रामचंद्रन द्वारा संपादित किताब ‘मार्टरडम टू फ्रीडम’ में कई अध्याय हैं, जिन्हें विद्वानों, इतिहासकारों और एक पूर्व राजनयिक द्वारा लिखा गया है।

    एक अध्याय में इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं कि गांधी स्तब्ध रह गए थे कि उनकी सिफारिश करने के बावजूद नरसंहार के मुख्य दोषियों -जनरल डायर और तत्कालीन लेफ्टिनेंट गवर्नर सर माइकल ओडायर को दंडित नहीं किया गया था। उन्होंने मांग की थी कि दोनों अधिकारियों को उनके पदों से हटा दिया जाए।

    हालांकि वायसराय ने ब्रिगेडियर जनरल डायर की कार्रवाई को गलत नहीं बताया और ओडायर को शानदार चरित्र प्रमाण पत्र दे दिया।

    गुहा लिखते हैं, “पंजाब सरकार के अहंकारपूर्व रवैये ने गांधी के ब्रिटिश सरकार के प्रति विश्वास पर काफी नकारात्मक प्रभाव डाला।”

    इसके बाद इसके विरोध में गांधी को नए तरीके से आंदोलन शुरू करना पड़ा और उन्हें विश्वास था कि अहिंसक संघर्ष के दवाब में ब्रिटिश सरकार को झुकाया जा सकता है।

    गुहा ने तर्क देते हुए कहा, “वर्ष 1919 से पहले, गांधी कभी पंजाब नहीं गए थे। लेकिन वहां जो उन्होंने उस वर्ष देखा और किया, उसने उन्हें बिल्कुल बदल दिया। राजनीतिक पटल पर, इस घटना ने उन्हें ब्रिटिश सरकार के वफादार से धुर विरोधी में बदल दिया।”

    उनका कहना है कि ‘गदर आंदोलन’ का केंद्र बन रहे और राजनीतिक रूप से सक्रिय हो रहे प्रांत पंजाब और पूर्व में 1905-07 के दौरान ‘स्वदेशी आंदोलन’ में इसकी सहभागिता के कारण गांधी इसका दौरा करने के लिए बहुत उत्साहित थे।

    गांधी आठ अप्रैल, 1919 को मुंबई से दिल्ली के लिए रवाना हुए, जहां से वह पंजाब जाने के बारे में सोच रहे थे। हालांकि उन्हें पुलिस ने रोक लिया और उन्हें वापस अहमदाबाद जाना पड़ा।

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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