केंद्रीय कैबिनेट द्वारा जम्मू-कश्मीर में सवर्ण आरक्षण लागू करने को लेकर अध्यादेश पास किए जाने के एक दिन बाद ही हुर्रियत नेताओं ने इस अध्यादेश के खिलाफ आवाज उठाना शुरु कर दिया है। नेशनल कॉफ्रेंस और पीडीपी के वरिष्ठ नेताओं ने शुक्रवार को कहा कि वे इस अध्यादेश का समर्थन नहीं करते हैं। वे इसके खिलाफ कोर्ट में अपील करेंगे।
नेशनल कॉफ्रेंस ने एक ओर जहां इसे ‘जम्मू-कश्मीर के स्वराज्य पर हमला’ कहा तो वहीं पीडीपी इसे ‘सवैंधानिक बर्बरता’ मानता है। गुरुवार को कैबिनेट मंत्रियों ने जम्मू-कश्मीर आरक्षण (संशोधन) अध्यादेश 2019 को सर्वसम्मति से मंजूरी दे दी। इसके तहत जम्मू-कश्मीर में रह रहे अल्पसंख्यक जो कि आर्थिक रुप से कमजोर हैं उन्हें शिक्षा, रोजगार के क्षेत्र में अतिरिक्त 10 फीसद का आरक्षण देने की बात कही गई है।
इस अध्यादेश को लाने के लिए संविधान की धारा 370 में संशोधन किए गए हैं लेकिन केंद्र ने यह बात भी साफ की है कि इससे अनुच्छेद 35ए पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। एनसी व पीडीपी दोनों दलों का मानना है कि केंद्र धारा 370 को हटाना चाह रहा है। बदलाव करके वह “असंवैधानिक” कदम उठ रहा है। उनका दावा है कि,”जम्मू-कश्मीर में जनता द्वारा चयनित सरकार के बगैर गवर्नर सत्यपाल मल्लिक इस तरह के संशोधन को कैसे पारित कर सकते हैं। उन्हें इस अध्यादेश को लाने का अधिकार नहीं है।”
पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा कि,”सरकार को बिना उनकी अनुमति के इस अध्यादेश को लाने का कोई हक नहीं है। वे केंद्र व जम्मू-कश्मीर के बीच के रिश्ते को खराब कर रहे हैं। हम इसके खिलाफ कोर्ट में अपील करेंगे।”
वहीं एनसी के नेता उमर अब्दुल्लाह ने कहा कि,”गवर्नर के समर्थन से इस अध्यादेश को लाया गया है और गवर्नर का चयन तो खुद केंद्र सरकार ने ही किया है। ऐसे में वे उसका विरोध कैसे कर सकते हैं लेकिन यह अध्यादेश जम्मू-कश्मीर के लोगों के लिए मुसीबत बन सकता है। हम इसके खिलाफ कोर्ट से मदद मांगेंगे।”
जम्मू-कश्मीर के पूर्व एडवोकेट जनरल जहांगीर इकबाल गिनई ने इंडियन एक्सप्रेस को कहा कि,”यदि हम संविधान की धारा 370 को ठीक से पढ़ें तो पताा चलता है कि इस तरह के किसी भी संसोधन या अध्यादेश को राज्य में लागू करने का अधिकार केवल जनता द्वारा चुने गए सरकार को है, केंद्र द्वारा तय किए गए व्यक्ति को नहीं।”