भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बुधवार को कहा कि “अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी से पूर्व जम्मू कश्मीर की स्थिति बिगड़ी हुई थी। राज्य में पाबंदियां विशेष राज्य का दर्जा हटाने के बाद जन हानियों से बचाने के लिए लागू की गयी है। भारत सरकार की पहली चिंता यह सुनिश्चित करना था कि अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के बाद इलाके में प्रदर्शन और हिंसा की वजह से किसी की भी जिंदगी को नुकसान न हो।”
उन्होंने कहा कि “हमें साल 2016 का अनुभव याद है जब आतंकवादी बुरहान वानी की हत्या की गयी थी और उसके बाद हिंसा में तीव्र वृद्धि हुई थी। हमारा इरादा बगैर किसी भी जिंदगी जाया किये स्थिति को संभालना था और पाबंदियां लागू करने का मकसद यही था।”
मंत्री ने कहा कि “बीते 30 सालो में 42000 लोगो की हत्या की गयी है। पानी तो तब सिर से ऊपर हो गया जब श्रीनगर की गलियों में आला पुलिस अफसरों को भीड़ द्वारा मारा जाने लगा था। अलगाववाद के खिलाफ लिखने वाले पत्रकारों की हत्या कर दी जाती थी। ईद के लिए घर लौट रहे एक सैनिक का अपहरण कर लिया और उसकी हत्या कर दी। इसलिए 5 अगस्त से पहले सब गड़बड़ था। कश्मीर में मुश्किलें 5 अगस्त से शुरू नहीं हुई है बल्कि यह इन चुनौतियों से निपटने का एक तरीका है।”
जयशंकर ने कहा कि “राज्य की स्थिति अब स्थिर है और कई पाबंदियो को हटा लिया गया है जैसे लैंडलाइन और मोबाइल टावर को शुरू कर दिया है और आर्थिक गतिविधियों को बहाल कर दिया है।” साल 1947 में आज़ादी के बाद जम्मू कश्मीर का भारत में विलय के बाबत जयशंकर ने समझाया।
जम्मू कश्मीर की स्थिति कई कारणों से विचित्र थी, सीमा पर राज्य का होना है। शेष भारत की तरह उनकी भी इच्छा थी कि वहां कानूनों को लागू लिया जाए। उस समय संवैधानिक असेंबली ने इसे एक विशेष मामला करार दिया था। भारत के संविधान में एक ही अस्थायी अनुच्छेद था वो 370 था।”
उन्होंने कहा कि “जम्मू कश्मीर अनुच्छेद 370 को अपनाने के बाद समस्याओं का सामना कर रहा है। आपके समक्ष शेष भारत की तरह आर्थिक गतिविधियाँ नहीं थी, वहां रोजगार का सृजन नहो हो रहा था और वहां अलगाववाद की भावनाये काफी ज्यादा थी। सीमा पार आतंकवाद का माहौल था राज्य सामाजिक-आर्थिक लिहाज से भारत के साथ कम जुड़ा हुआ था। भारत के 100 महत्वपूर्ण प्रगतिशील कानून जम्मू कश्मीर पर लागू नहीं होते हैं।”
उन्होंने कहा कि “उन्होंने अलगावाद की भावनाओं को जीवित रखने के लिए हितो को कुर्बान कर दिया। आपके समक्ष ऐसी स्थिति थी जहाँ अलगाववादी राजनीतिक दल खुले आम आतंकवादियो के साथ रिश्ता बनाते थे।”