जम्मू और कश्मीर के कठुआ जिले की पारंपरिक बसोहली पश्मीना को भौगोलिक संकेत (GI) टैग मिला है जो अपने कोमलता, महीनता, हल्कापन और इन्सुलेट गुणों के लिए जानी जाती है। यह पश्मीना बकरी के ऊन से बनाई जाती है, जो हिमालय की ऊंची ऊंचाईयों में पाई जाती है। पश्मीना ऊन को कुशल कारीगरों द्वारा हाथ से काता और हाथ से बुना जाता है।
GI टैग एक ऐसा चिन्ह है जो उन उत्पादों पर लगाया जाता है जिनकी एक विशिष्ट भौगोलिक उत्पत्ति होती है और जिनकी गुणवत्ता और विशेषताएं उस उत्पत्ति के कारण होती हैं। यह पारंपरिक उत्पादों की प्रामाणिकता और गुणवत्ता की रक्षा करने का एक तरीका है।
बसोहली पश्मीना के लिए GI टैग जम्मू और कश्मीर के कारीगरों और बुनकरों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह शिल्प की अखंडता की रक्षा करने और इसे एक व्यापक दर्शकों के लिए बढ़ावा देने में मदद करेगा। यह कारीगरों और बुनकरों की आय बढ़ाने में भी मदद करेगा।
बसोहली पश्मीना के लिए GI टैग जम्मू और कश्मीर के कारीगरों की अनूठी कौशल और शिल्प कौशल की मान्यता है। यह क्षेत्र की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का भी प्रमाण है।
क्या है GI टैग मिलने के लाभ?
प्रामाणिकता की रक्षा: GI टैग यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि बसोहली पश्मीना केवल उस क्षेत्र में उत्पादित की जाए जहां यह उत्पन्न होती है। इससे उत्पाद की प्रामाणिकता की रक्षा होती है और उपभोक्ताओं को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि वे वास्तविक बसोहली पश्मीना खरीद रहे हैं।
गुणवत्ता का आश्वासन: GI टैग यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि बसोहली पश्मीना को एक विशिष्ट मानक के अनुसार उत्पादित किया जाए। इससे उत्पाद की गुणवत्ता सुनिश्चित होती है और उपभोक्ताओं को यह सुनिश्चित करने में मदद मिलती है कि वे एक अच्छी गुणवत्ता वाली उत्पाद खरीद रहे हैं।
प्रचार और विपणन: GI टैग बसोहली पश्मीना को बढ़ावा देने और इसे एक व्यापक दर्शकों के लिए उपलब्ध कराने में मदद करेगा। इससे उत्पाद की बिक्री में वृद्धि होगी और कारीगरों और बुनकरों की आय बढ़ेगी।