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    भारत खेती निवेश संयुक्त राष्ट्र

    लखनऊ, 2 जुलाई (आईएएनएस)| उत्तर प्रदेश में धान की खेती करने वाले किसानों की जमीन ऊसर हो, इलाका सूखाग्रस्त हो या ज्यादा बारिश वाला, अब उन्हें कम उपज की शिकायत नहीं रहेगी। उन्हें राहत देने के लिए फैजाबाद के कुमारगंज स्थित आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय ने शोध कार्य शुरू करवाया है।

    विश्वविद्यालय के कृषि वैज्ञानिकों ने एक साथ 300 नई प्रजातियों पर शोध कार्य शुरू किया है। इनमें देसी प्रजातियां तो हैं ही, फिलीपींस की 240 प्रजातियों को भी शामिल किया गया है। शोध के दायरे में 21 नई प्रजातियां नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय की, 18 उत्तर प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों की और 11 बिहार के ग्रामीण इलाकों से एकत्रित प्रजातियों को भी शामिल किया गया है।

    शोध के लिए लाई गई नई प्रजातियों में सबसे ज्यादा फिलीपींस की हैं। देसी के साथ विदेशी धान की इन प्रजातियों की उत्पादकता पूर्वाचल के मौसम व मिट्टी में परखी जाएगी। भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में बाढ़, सूखा, ऊसर भूमि व अनियमित वर्षा के सापेक्ष भी धान के उत्पादन पर शोध होगा और उन्नत प्रजातियां किसानों को प्राकृतिक आपदा आने पर भी मायूस नहीं करेंगी।

    विश्वविद्यालय के सहायक अन्वेषक डॉ़ आलोक सिंह ने आईएएनएस से कहा, “उत्तर प्रदेश सरकार ने धान की प्रजातियों को संरक्षित करने और यहां पर आने वाली आपदा, जैसे बाढ़, सूखा और अन्य विषम परिस्थितियों में धान की खेती को बचाने की दिशा में कदम उठाया है। सरकार ने विभिन्न फसलों को उन्नत बनाने की जिम्मेदारी अलग-अलग सेंटर फॉर एक्सीलेंस को दी है।”

    उन्होंने बताया कि आचार्य नरेंद्र देव विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एक्सीलेंस को धान की जिम्मेदारी मिली है। इस सेंटर को धान की उत्पादकता के साथ-साथ गुणवत्ता की नई किस्मों की खोज भी करनी है। पहले चरण में देश के विभिन्न भागों से धान की प्रजातियां जुटाई गई हैं।

    डॉ़ सिंह ने कहा, “देश के विभिन्न हिस्सों से कुछ किस्में लाई जाती हैं और कुछ बीडर हजारों की संख्या में लाकर एक प्रजाति से विभिन्न प्रजातियां पैदा की जाती हैं। इसके बाद इन प्रजातियों को ईको सिस्टम में लाया जाता है।”

    उन्होंने बताया कि प्रथम चरण में सूखा सहन करने वाली प्रजातियों का चयन कर उनमें होने वाली क्रियाओं का अध्ययन किया जाएगा और उसकी जानकारी पादप प्रजनक को दी जाएगी, ताकि पादप प्रजनक नई प्रजातियों का विकास कर सकें।

    डॉ़ सिंह ने कहा, “बाढ़ की स्थिति में होने वाली क्रियाओं के अध्ययन के लिए धान को 10 दिन तक पानी में डुबोकर रखा जाएगा। हम इसका अध्ययन करके देखेंगे कि कौन-सी प्रजाति कम पानी में अच्छी उपज दे सकती है और कौन सी प्रजाति ज्यादा पानी में उगाई जा सकती है। इसके बाद हम ब्रीडिंग टीम को सूचना देंगे। वह इस पर आगे कार्य करेंगे। फिलीपींस की प्रजाति भी जांच के लिए यहां लाई गई हैं।”

    उन्होंने बताया कि कुछ प्रजातियां मनीला (फिलीपींस) स्थित अंतर्राष्ट्रीय धान अनुसंधान केंद्र के सहयोग से प्राप्त हुई हैं। शोध का यह बहुवर्षीय कार्यक्रम है।

    डॉ़ सिंह ने कहा कि शोध के दौरान यह चिह्न्ति किया जाएगा कि अनियमित वर्षा की स्थिति में कौन-सी प्रजाति ज्यादा उत्पादन दे सकती है।

    उन्होंने कहा, “अगर हमारे प्रयोग सफल रहे तो हम पूर्वाचल सहित पूरे प्रदेश के किसानों को उन्नत किस्मों के बीज देंगे। किसानों को जागरूक कर उन्हें मौसम के अनुकूल खेती करने के लिए कहेंगे। अभी शुरुआती दौर है। हमारे शोध कार्य आगे और बृहद रूप लेंगे।”

    डॉ़ सिंह के मुताबिक, “धान की सभी प्रजातियों पर आचार्य नरेंद्र देव कृषि विश्वविद्यालय के अलावा मसौधा, बहराइच व गाजीपुर जिलों के कृषि विज्ञान केंद्रों पर अलग-अलग चरणों में शोध होगा। परियोजना के अंतर्गत बाढ़ग्रस्त व ऊसर भूमि के लिए अलग से शोध हो रहा है।”

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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