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    लालकृष्ण आडवाणी

    लालकृष्ण आडवाणी, भारतीय जनता पार्टी का जाना माना एवं चर्चित चेहरा है। हम भारतीय जनता पार्टी को अटल विहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के बिना नहीं सोच सकते है। सबसे पहले भारतीय जनता पार्टी की नींव रखने में इन दो व्यक्तियों का विशेष योगदान रहा है। लालकृष्ण आडवाणी 1951 से अब तक भाजपा में एक सक्रिय नेता का किरदार निभा रहे है।

    राजनीतिक शुरुआत

    आडवाणी ने अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1942 में राष्ट्रीय संघसेवक के रूप में की। आरएसएस एक हिन्दू संगठन है। लालकृष्ण आडवाणी सबसे पहले करांची में ही आरएसएस के प्रचारक हुए और आरएसएस को अपनी सेवाएं देते हुए आरएसएस की कई शाखाएं स्थापित की। फिर भारत पाकिस्तान के बटवारें के बाद भारत आने पर उन्हें राजस्थान के मत्स्य अलवर भेजा गया। 1952 तक आडवाणी ने अलवर में काम करने के बाद राजस्थान के ही भरतपुर, कोटा, बूंदी, और झालावाड़ जिले में रह कर अपने कार्य को अंजाम दिया।

    भारतीय जनसंघ

    1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने आरएसएस के साथ मिलकर भारतीय जनसंघ की स्थापना की। आरएसएस का सदस्य होने के कारण एल के आडवाणी भी जनसंघ से जुड़ गए। उन्हें राजस्थान में जनसंघ के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया, वह एक कुशल राजनीतिज्ञ थे एवं उनके कुशल नेतृत्व के कारण जनसंघ में जनरल सेक्रेटरी का पद मिल गया। फिर राजनीति में अपने कदम आगे बढ़ाते हुए उन्होंने अपना रुख दिल्ली की ओर बढ़ाया वहां उन्हें दिल्ली जनसंघ के अध्यक्ष पद पर नियुक्त किया गया। 1967 में वह दिल्ली के महानगरीय परिषद का चुनाव लड़े और काउन्सिल के नेता बने। 1970 में राज्यसभा के सदस्य बने फिर जनसंघ के नेता के रूप में कई पद संभाले। फिर 1973 में कानपुर की कमेटी के अध्यक्ष रहे। उन्होंने भारतीय जनसंघ का नेतृत्व करते हुए अपने वशूलों को लेकर हमेशा सजग रहते थे। पार्टी में रहते हुए उन्होंने जनसंघ के नेता श्री बलराज माधव को उनके राजनितिक रवैये को देखते हुए निष्काषित कर दिया था। 1975 में इंदिरा गाँधी की केंद्र सरकार के दौरान आपातकालीन स्थिति में कई विरोधी दल भारतीय जनसंघ के साथ जुड़ गए और साथ मिलकर सरकार का विरोध करने लगे। इस विरोध के बाद भारतीय जनता पार्टी का उदय हुआ। आडवाणी 1976 से 1982 तक गुजरात से राज्यसभा के सदस्य रहे। 1977 में लालकृष्ण आडवाणी और अटल विहारी वाजपेयी ने साथ मिलकर लोकसभा का चुनाव लड़े।

    राम मंदिर का मुद्दा

    अटल विहारी वाजपेयी को अध्यक्ष पद से हटा कर लालकृष्ण आडवाणी को नया अध्यक्ष घोषित किया गया। आडवाणी के नेतृत्व में भाजपा ने राम मंदिर निर्माण का मुद्दा उठाया जो कि आज भी भाजपा का राजनीतिक मुद्दा है। 1980 में विश्व हिन्दू परिषद् ने राम मंदिर निर्माण की मुहिम शुरू की। भारतीय जनता पार्टी के नेताओ का कहना है कि आयोध्या श्री राम कि जन्मभूमि है। यहां स्थित बाबरी मस्जिद के पहले राम मंदिर था। लेकिन इस वाक्य के खिलाफ आडवाणी पार्टी का नेतृत्व करते हुए कोई टिप्पणी नहीं की जिससे कट्टर हिन्दूलोगो ने राम मंदिर मुद्दे को एक बड़ा रूप दे दिया।

    आडवाणी की रथ यात्रा

    देश की राजनीती में सर्वाधिक यात्राएं निकालने वाले आडवाणी एकमात्र नेता है। उनके नेतृत्व में 6 बड़ी बड़ी यात्राएं हुई जिन्होंने भाजपा की राजनीती में बहुत मदद की। आडवाणी जी ने अपनी सबसे पहली रथ यात्रा को नाम दिया “राम रथ यात्रा”। आडवाणी के नेतृत्व में यह यात्रा गुजरात के सोमनाथ मंदिर से 25 सितम्बर 1990 से प्रारम्भ हो कर 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंची। इस यात्रा का मुख्य मुद्दा राम मंदिर निर्माण था।

    जनादेश यात्रा– भारत के चार कोनो से सितम्बर 1993 में यह यात्रा शुरू हुई। आडवाणी जी ने मैसूर से इस यात्रा की अगुवाई की भारत के 14 राज्यों तथा 2 केंद्र शासित प्रदेश से होती हुई यह यात्रा 25 सितम्बर को भोपाल में मिली इस यात्रा का उदेश्य भारत के नागरिको को उनके धर्म के प्रति जागरूक करना एवं संसद में धर्म से सम्बंधित दो बिलों को पारित कराना था।
    स्वर्ण जयंती रथ यात्रा – भारत की 50वी सालगिरह के अवसर पर आडवाणी जी ने स्वर्ण जयंती रथ यात्रा का शुरुआत किया। इस यात्रा के द्वारा पूरे भारत में आजादी का जश्न मनाया गया। इस यात्रा को आडवाणी जी ने मई 1997 से जुलाई 1997 तक पूरी की। इस यात्रा का मुख्य उदेश्य भारतियों के दिल में देश भक्ति की भावना जगाना था।
    भारत उदय यात्रा – 1998-2004 में अटल विहारी वाजपेयी की सरकार के दौरान देश की कई क्षेत्रों में उन्नति हुई। भारत की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई इसी कारण आडवाणी जी ने उदय यात्रा निकलते हुए कहा कि भाजपा सरकार के समय में भारत का उदय हुआ है और इस यात्रा के द्वारा भारत के उन्नति का जश्न मनाया गया।
    भारत सुरक्षा यात्रा– मार्च 2006 में वाराणसी के काशी हिन्दू तीर्थ स्थान पर बम धमाके हुए थे। इससे भाजपा ने केंद्र में बैठी कांग्रेस को जिम्मेदार ठहराते हुए आरोप लगाए कि कांग्रेस सरकार देश की सुरक्षा पर ध्यान नहीं दे पा रही है। इसके विरोध में आडवाणी ने 6 अप्रैल 2006 से लेकर 10 मई 2006 तक भारत सुरक्षा यात्रा निकाली। इस यात्रा का मुख्य उदेश्य देश को आतंकवाद, भ्रष्टाचार, अल्पसंख्यक पर राजनीती और प्रजातंत्र की रक्षा के प्रति सजग करना था।
    जन चेतना यात्रा– भाजपा के नेता श्री जयप्रकाश नरायन की जन्मस्थली सिताब दियरा बिहार से शुरू हुई जान चेतना यात्रा की अगुवाई लालकृष्ण आडवाणी ने अक्टूबर 2011 से की। कांग्रेस सरकार में बढ़ रहे भ्रस्टाचार को लेकर यह यात्रा निकली गई।

    वर्तमान राजनीती
    लालकृष्ण आडवाणी ने 2009 चुनाव हार कर पार्टी के दूसरे नेताओ के लिए रास्ता साफ कर दिया, इसके बाद आडवाणी की सक्रियता पार्टी में धीरे धीरे कम होने लगी। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद आडवाणी की सक्रियता बिल्कुल खत्म हो गई। पार्टी में ही उनकी खिलाफ विरोध के सुर बजने लगे। 2014 के चुनाव खत्म होने के बाद आडवाणी ने भाजपा पर यह आरोप लगाए की यह पार्टी पहले जैसी नहीं रह गई। उन्होंने पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया लेकिन उनके इस्तीफे को पार्टी ने नामंजूर करते हुए पार्टी में बने रहने की गुजारिश की। पार्टी ने आडवाणी को यह आश्वासन देते हुए कहा कि आपकी भूमिका पार्टी में महत्वपूर्ण है। 2014 में लालकृष्ण आडवाणी को भाजपा के संसदीय बोर्ड से बाहर निकाल कर मार्गदर्शक मंडल में शामिल कर दिया गया। इससे पहले आडवाणी का नाम राष्ट्रपति के उमीदवारो में जोड़ा जा रहा था। लेकिन पार्टी ने उनकी उम्र और तबियत को देखते हुए उन्हें लायक नहीं समझा और उन्हें पार्टी में वरिष्ठ नेता का दर्जा देते हुए एक मानक के तौर पर बैठा दिया।

    लालकृष्ण आडवाणी भाजपा के वरिष्ठ नेता है, उन्होंने पूरी जिंदगी पार्टी को मजबूत पक्ष बनाने में लगा दी।