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    सेवानिवृत लेफ्टिनेंट जनरल डीएस हूडा जो सितम्बर, 2016 में हुए उरी में हुए सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान उत्तरी सेना कमांडर थे, उन्होंने कहा कि हमलों के ‘अतिप्रचार’ ने मदद नहीं की और ऐसा अच्छा नहीं होता जब सैन्य अभियान राजनीतिक हो जाते हैं।

    सैन्य साहित्य समारोह के दौरान ‘क्रॉस-बॉर्डर ऑपरेशंस और सर्जिकल स्ट्राइक्स की भूमिका’ पर चर्चा करते वक़्त हूडा ने कहा-“क्या अतिप्रचार ने मदद की? मेरे हिसाब से नहीं। अगर आप सैन्य अभियानों में भी राजनीतिक अनुनाद डालेंगे तो वो अच्छी बात नहीं हैं। दोनों तरफ से, राजनीतिक मज़ाक चल रहा था, और जब सैन्य अभियान राजनीतिक हो जाते हैं तो वो अच्छी बात नहीं होती।”

    जब उनसे सवाल पूछा गया कि क्या हमलों की संभावना, भविष्य में होने वाले अभियानों के फैसले पर असर डालेगी तो उन्होंने कहा कि अगर एक कामयाब अभियान का इतना प्रचार कर दोगे तो सफलता भी एक बोझ लगने लगेगी।

    उनके मुताबिक, “अगर हम मारे गए तो हम अगली बार क्या सोचेंगे? क्योंकि इसका इतना प्रचार कर दिया गया है, क्या यह नेतृत्व पर सावधानी बरत पाएगा? क्या होगा अगर उसे इतने ही बड़े स्तर पर कामयाबी नहीं मिली तो? ये भविष्य में कुछ सावधानी बरत सकता है। अगर हमने ये शांति से किया होता तो बेहतर होता।”

    जब पैनेलिस्ट ने उनसे सवाल किया कि हमले केवल कुछ समय के लिए ही फायदेमंद थे और पाकिस्तान को भविष्य में और आतंकी हमले से रोकने के लिए कोई रणनीतिक मूल्य नहीं था तो उन्होंने जवाब में कहा-“जब हम ये योजना बना रहे थे तो हमारे दिमाग में बिलकुल भी ऐसी बात नहीं थी कि पाकिस्तान ‘उरी’ जैसे हमले करना छोड़ देगा। कम से कम उत्तरी कमान में तो इरादा सादगी का ही था। हमारे लिए, ये बिलकुल आसान था।”

    पाकिस्तानी हमलो पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि “जुलाई 2016 के वक़्त से, बुरहान वानी की मौत के कारण सेना विरोध के दबाव में थी। सेना प्रमुख चीफ और हम उरी गए। हम शिविर की तीन इंच की गहराई में चले गए जिस पर हमला किया गया था। हमारे दिमाग में कोई संदेह नहीं था कि हमें कुछ करना पड़ेगा और हमें एलओसी में पाकिस्तान शिविरों को मारना पड़ेगा। आप इसे बदला कह सकते हैं लेकिन हमारे दिमाग में यह था कि हमे ये करना ही होगा।”

    उन्होंने कहा कि हमले का मकसद तोपखाने की आग के माध्यम से पूरा नहीं हो सका। उनके अनुसार, “हमारे पास बड़े तोपखाने द्वंद्वयुद्ध थे लेकिन यह मदद नहीं कर रहा था। योजना पहले से चल रही थी। हमने अपनी पुरानी योजनाओं को वापस लिया, उन्हें थोड़ा सा नवीनीकृत किया और विशेष बल भेज दिया। क्या इसे प्रचारित किया जाना चाहिए था? कोई विकल्प नहीं था। बहुत सारे प्रश्न पूछे जा रहे थे। मीडिया और हमारे अपने सेना के सैनिक पूछ रहे थे, ‘हम सैनिकों की इतनी सारी मौतों के बारे में क्या कर रहे हैं’।”

    उन्होंने आगे कहा कि इस हमले के बाद ऐसा देखा गया कि पाकिस्तान की तरफ काफी तनाव है। “उनकी छुट्टियाँ रद्द कर दी गयी थी। हमने उन्हें रेडियो पर बात करते हुए भी सुना। वो ऐसा कह रहे थे कि हम दूसरे छेत्रों में भी ऐसा हमला कर सकते हैं। वो काफी असमंजस में थे कि इन लोगो ने कैसे आकर ये अभियान को अंजाम पहुंचा दिया। इसकी वजह से कुछ मायनो में उन लोगो ने भी सावधानी बरतनी शुरू कर दी।”

    उन्होंने अपनी बात ख़तम करते हुए कहा कि ये अच्छा होता अगर ये सर्जिकल स्ट्राइक उन लोगो ने गुप्त रूप से किया होता तो।

    By साक्षी बंसल

    पत्रकारिता की छात्रा जिसे ख़बरों की दुनिया में रूचि है।

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