छत्तीसगढ़ चुनाव से कुछ महीने पहले की बात है जब कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी से गठबंधन करने की कोशिश कर रही थी लेकिन तभी मायावती ने अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस से गठबंधन का ऐलान कर राज्य में नए समीकरण बना कर कांग्रेस को जबरदस्त झटका दे दिया था।
क्या ये गठबंधन जनजातीय वोटों को हासिल कर बाकी पार्टियों के समीकरण बिगाड़ेगा? क्या ये गठबंधन किंगमेकर बन कर उभरेगा? क्या ये वाकई में एक गठबंधन या बस एक चुनावी खेल है? और क्या यह बीजेपी के खिलाफ बनने वाले महागठबंधन की तरह में एक रोड़ा है ?
अटकलें काफी ज्यादा लगाईं जा रही है लेकिन एक बात ये भी है कि ये गठबंधन इन अटकलों से खूब चर्चा पा रहा है और लोगों का ध्यान खींच रहा। लेकिन क्या सिर्फ ये बात ही काफी है या ये गठबंधन वोट भी खींचेगा ?
बसपा -जनता कांग्रेस के इस गठबंधन में कप्म्यूनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (सीपीआई) भी शामिल है और ये सब मिलकर सभी 90 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं। मायावती और अजीत जोगी का वोटबैंक अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित 10 सीटों के नतीजे प्रभावित कर सकता है और अगर ऐसा हुआ तो ये गठबंधन चुनाव बाद किंगमेकर के तौर पर उभर सकता है।
2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने इस आरक्षित श्रेणी में 10 सीटों में से 9 सीटों पर कब्ज़ा किया था। जबकि कांग्रेस सिर्फ एक सीट हासिल कर पाई थी। निष्कर्ष ये कि कुल मिलाकर बीजेपी (49 सीटों) और कांग्रेस (39 सीटों) को 10 सीटों से अलग कर दिया जाए तो ये पता चलता है कि ये सीटें रमन सिंह के लिए क्या मायने रखती है।
पिछले चुनाव में भाजपा ने न सिर्फ 10 में से 9 सीटें जीती बल्कि 10 में से 8 सीटों पर जीत का अंतर 6.5 फीसदी से ज्यादा रहा।
2013 में मायावती को कुल वोटों का 4.27 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि 2008 में पार्टी ने 6.1 फीसदी वोट हासिल किये थे। ये वोट सीटों में भले ही न बदल पाए लेकिन भाजपा और कांग्रेस के वोट शेयर को नुक्सान पहुंचा समीकरण बदल सकता है।