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    छत्तीसगढ़ के बड़े हिस्से में आज भी जड़ी-बूटी के सहारे मरीजों का इलाज किया जाता है, क्योंकि यहां आदिवासी बहुतायत में हैं। राज्य में वैद्यों से रोग उपचार की परंपरा को बढ़ावा मिले और उनके ज्ञान का हस्तांतरण अगली पीढ़ी तक हो, इसके लिए कवायद तेज हो गई है। इसके लिए राज्य में परंपरागत औषधि मंडल (ट्रेडिशनल मेडिसिन बोर्ड) का गठन किया जाएगा।

    छत्तीसगढ़ में हजारों वर्षो से वैद्य द्वारा जड़ी-बूटियों से परंपरागत ढंग से इलाज किया जा रहा है, लेकिन यह परंपरा आज पिछड़ गई है, क्योंकि वैद्यज्ञान का दस्तावेजीकरण नहीं किया गया और ज्ञान बांटा नहीं गया। यही वजह है कि वैद्यों के साथ ही उनका ज्ञान भी लगभग समाप्त हो गया। इससे राज्य सरकार चिंतित है। सरकार ने इस ज्ञान और परंपरा को आगे बढ़ाने की मंशा जाहिर की है।

    मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने रविवार को राजधानी में ‘राज्यस्तरीय परंपरागत वैद्य सम्मेलन सह प्रशिक्षण’ कार्यक्रम में हिस्सा लिया था। इस मौके पर उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के परंपरागत वैद्यों के ज्ञान को लिपिबद्ध करने, जड़ी-बूटियों के संरक्षण-संवर्धन तथा वैद्यों के ज्ञान का लाभ पूरे समाज तक पहुंचाने के लिए छत्तीसगढ़ में ट्रेडिशनल मेडिसिन बोर्ड का गठन किया जाएगा।

    बताया गया है कि यह परंपरागत औषधि बोर्ड वैद्यों के ज्ञान को लिपिबद्ध करेगा। ऐसा होने पर परंपरागत उपचार की विधि और ज्ञान का हस्तांतरण अगली पीढ़ी तक तो होगा ही, साथ में आम लोगों के लिए इसे जानना सहज और सुलभ भी होगा।

    बघेल का कहना है कि छत्तीसगढ़ वन संपदा से परिपूर्ण है और हमारे वनों में वनौषधियों का विशाल भंडार है। ग्रामीण बहुमूल्य जड़ी-बूटियों को हाट-बाजारों में औने-पौने दाम पर बेच देते हैं। राज्य सरकार का यह भी प्रयास है कि लोगों को जड़ी-बूटियों का सही मूल्य मिले।

    बघेल ने कहा कि एलोपैथिक डॉक्टर एमबीबीएस के बाद मेडिसिन में एमडी या सर्जरी में एमएस कर विशेषज्ञता हासिल करते हैं, ठीक इसी तरह कौन से वैद्य किस विशेष बीमारी का इलाज करने में दक्ष है, इसकी भी जानकारी संकलित की जानी चाहिए। छत्तीसगढ़ के महत्वपूर्ण ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल सिरपुर में सुप्रसिद्ध रसायनज्ञ नागार्जुन रहते थे। यहां दवा कैसे बनाई जाती थी, इसके भी प्रमाण मिले हैं।

    मुख्यमंत्री ने इस बात पर जोर दिया है कि वैद्यों के ज्ञान और जड़ी-बूटियों के संरक्षण और संवर्धित करने की जरूरत है। छत्तीसगढ़ के किस क्षेत्र में कौन सी जड़ी-बूटी प्रमुखता से मिलती है, यह जानकारी भी संकलित की जानी चाहिए। हो सकता है, अमरकंटक में जो वनौषधि मिलती है, वह बस्तर में नहीं मिलती हो।

    राज्य के वनमंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा कि वैद्य के अनुभव का लाभ जन-जन तक पहुंचे, इसका प्रयास हो रहा है। मुख्यमंत्री बघेल ने छत्तीसगढ़ के गौरवशाली और समृद्ध परंपराओं को पुनर्जीवित करने की दिशा में कदम उठाया है।

    राजधानी में आयोजित राज्यस्तरीय परंपरागत वैद्य सम्मेलन सह प्रशिक्षण कार्यक्रम में वनों में पाए जाने वाले औषधीय पौधों का महत्व तथा उपयोगिता और ‘लोक स्वास्थ्य परंपराओं का 21वीं सदी की स्वास्थ्य व्यवस्था में स्थान’ विषय पर विस्तार से चर्चा हुई। साथ ही औषधीय पौधों पर वर्तमान में हो रहे शोध कार्यो पर विचार-विमर्श किया गया।

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