मद्रास उच्च न्यायालय द्वारा की गई टिप्पणी कि आयोग के खिलाफ राजनीतिक अभियानों के दौरान भीड़ को रोकने में असफल रहने के लिए हत्या का मामला दर्ज किया जाना चाहिए, जिसके परिणाम स्वरूप कोविड -19 मामलों में तेजी आई है। चुनाव आयोग ने शुक्रवार को इस मुद्दे पर कहा कि मीडिया ने इस रिपोर्ट के माध्यम से चुनाव आयोग की एक ‘खराब छवि’ दर्शाई है और “मीडिया को न्यायालय की मौखिक टिप्पणियों की रिपोर्ट करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए”।
आयोग ने अदालत को एक एफिडेविट दिया है, जिसमें उन्होंने लिखा है कि यह “मीडिया द्वारा अदालत की मौखिक टिप्पणियों छापने की वजह से चुनाव आयोग को एक गंभीर पूर्वधारणा का कारण बना दिया है”।
“इन रिपोर्टों ने भारत के चुनाव आयोग जिसे चुनाव संचालन की संवैधानिक जिम्मेदारी सौंपी गई है, उसकी छवि को एक स्वतंत्र संवैधानिक एजेंसी के रूप में धूमिल कर दिया है”- चुनाव आयोग।
रुक सकती है 2 मई को मतगणना
मद्रास उच्च न्यायालय ने सोमवार को टिप्पणी करते हुए कहा था कि कोरोना वायरस की वजह से देश वर्तमान में जूझ रहा है, के लिए चुनाव आयोग को “अकेले जिम्मेदार” ठहराया जाना चाहिए। मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की बेंच ने चुनाव आयोग को चेतावनी दी है कि अदालत 2 मई को मतगणना को भी रोक सकती है, अगर अदालत को 30 अप्रैल तक मतगणना केंद्रों पर कोविड -19 प्रोटोकॉल का ब्लूप्रिंट नहीं दिखाया जाता।
“किसी भी कीमत पर मतगणना की वजह से कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी नहीं आनी चाहिए, राजनीति हो या ना हो, लेकिन मतगणना कोविड-19 प्रोटोकॉल के सख्त पालन में होगी या फिर निलंबित कर दी जाएगी” – मद्रास उच्च न्यायालय ।
इसके अलावा चुनाव आयोग ने मद्रास कोर्ट से आग्रह किया है कि “पुलिस को इन मौखिक टिप्पणियों के आधार पर हत्या के अपराध के लिए कोई एफआईआर दर्ज न करने का आदेश दिया जाए”।
चुनाव आयोग को इतनी शर्मनाक टिप्पणियों का सामना इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, केरल, असम और पुडुचेरी में राजनीतिक दलों द्वारा की गई चुनावी रैलियों को आसानी से चुनाव आयोग की अनुमति मिल गई थी। जहां समर्थक भारी संख्या में उमड़ पड़े।