अमेरिका के राष्ट्रपति ने इस वर्ष की शुरुआत पाकिस्तान की सैन्य सहायता बंद करने के ऐलान से की थी। अमेरिका को डर था कि पाकिस्तान की सेना अमेरिकी सहयोगियों के साथ बेहतर सहयोग करेगी। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान के समक्ष अमेरिका की जगह किसी अन्य को देने का विकल्प मौजूद है।
हाल ही में पाकिस्तानी वायु सेना और चीनी अधिकारियों ने एक गोपनीय प्रस्ताव को अमलीजामा पहनाया था, जिसके तहत पाकिस्तान की सेना के हथियारों मसलन, जेट, हथियार और अन्य उपकरण मुहैया करना था। इस गोपनीय समझौते की समीक्षा द न्यूयॉर्क टाइम्स ने की थी और कहा की इससे पाकिस्तान और चीन के मध्य रिश्ते अधिक प्रगाढ़ हो गए हैं।
यह सभी सैन्य परियोजनायें चीन की एक ट्रिलियन डॉलर की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के तहत किया जा रहा है। इस विकास परियोजना का निर्माण 70 देशों में किया जायेगा, जिसका निर्माण और उसके लिए वित्तीय मदद चीन करेगा। साल 2013 में बीआरआई की शुरुआत में पाकिस्तान में 62 अरब डॉलर की चीन-पाक आर्थिक गलियारे की शुरुआत की थी। पाकिस्तान की आर्थिक जरूरतों की पूर्ती के लिए चीन पाकिस्तान को वित्तीय सहायता देता गया और इससे दोनों राष्ट्रों अधिक करीब हो गए हैं।
पाकिस्तानी अधिकारियों को भय है कि कही वह अपनी एशियाई साझेदार के समक्ष अपनी संप्रभुता न गँवा दें। पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह पर चीनी निर्मात समुद्रीतट और विशेष आर्थिक इलाके से चीन के उत्पाद अरबी समुद्र तक पंहुचते हैं। इसे चीन ने भारत और अमेरिका के खिलाफ भी इस्तेमाल किया है, तनाव बढ़ने पर दोनों राष्ट्र समुंद्री विवाद में फ़ांस सकते हैं।
पाकिस्तान के रूप में चीन को एक ऐसा साथी मिल गया है, जो इतिहास से सहयोगी है और भारत के खिलाफ एक महत्वपूर्ण हथियार है, हथियारों बेचने का एक बड़ा बाज़ार और संसाधनों का धनी है।
समुन्द्र एक पूँजी
चीन-पाकिस्तान के सुरक्षा गठबंधन अरबी समुन्द्र में गति को बढ़ाने में फायदेमंद होगा। बीआरआई परियोजना के तहत ग्वादर के परियोजना निर्माण का कार्य होगा। इस विकास योजना की कीमत तक़रीबन 80 करोड़ डॉलर होगी। चीन के पश्चिमी बंदरगाह को हाईवे और रेल नेटवर्क के माध्यम से पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत से होते हुए ग्वादर तक जोड़ा जायेगा।
बीते कुछ वर्षों में चीनी अधिकृत कंपनियों ने श्रीलंका, बांग्लादेश और मलेशिया में रणनीतिक इलाकों पर समुंद्री तटो का निर्माण किया है। चीनी अधिकारियों ने भरोसा दिलाया कि इस बंदरगाहों का इस्तेमाल सेना के लिए नहीं होगा। विशेषज्ञों के मुताबिक चीन दक्षिणी चीनी सागर में अपने विस्तार के लिए इस बंदरगाह का इस्तेमाल करेगा।
श्रीलंका चीन के विशाल कर्ज को चुकता करने में असमर्थ रहा था, इसलिए उसे अपना हबंटोटा बंदरगाह 99 वर्षों के लिए चीन के हवाले कर दिया था।
इमरान खान ने प्रधानमन्त्री बनने के बाद सीपीईसी परियोजना की दोबारा समीक्षा करने की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि उन्हें यह कर्ज विरासत में मिला था। सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस से मुलाकात के बाद इमरान खान ने ऐलान किया कि वह सीपीईसी परियोजना में निवेश के लिए तैयार हैं। हालांकि बाद म एपकिस्तान सरकार ने इस फैसले से यू टर्न ले लिया था। पाकिस्तान की आर्थिक हालात ख़राब होने के कारण इमरान खान अंतर्राष्ट्रीय संघठन से मदद की गुहार काढ़े हैं, यह चीन के लिए चुनौती हो सकती है।
नवम्बर की शुरुआत में इमरान खान ने चीन की यात्रा की थी, इस यात्रा के दौरान उन्होंने पाकिस्तान को आर्थिक संकट से उभारने के लिए चीनी राष्ट्रपति की सहायता मांगी थी। हालांकि चीन से इमरान खान को आश्वासन लेकर खाली हाथ वापस लौटना पड़ा था।