मालदीव की नवनिर्वाचित सरकार ने शपथ ग्रहण करते ही चीन के खिलाफ अपनी रणनीति को अमल में लाने की कवायद शुरू कर दी है। मालदीव की सरकार चीन के साथ की गयी मुक्त व्यापार समझौते को तोड़ना चाहती है क्योंकि विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के साथ समझौता एक बेवकूफी थी।
मालदीव डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने कहा कि मालदीव को चीन के मध्य व्यापार असंतुलन की खाई बहुत गहरी है और कोई भी इसे पाटने के बाबत कोई सोच भी नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि चीन मालदीव से कुछ नहीं खरीदता है, यह एक तरफ़ा समझौता है।
प्रधानमंत्री पद पर आसीन होने के तुरंत बाद ही इब्राहीम सोलिह ने कहा कि मालदीव की खजाने को लूटा गया है और चीनी कर्ज से मालदीव को बुरे आर्थिक दौर से गुजरा है। पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन ने बीते दिसम्बर में मुक्त व्यापार डील पर बीजिंग दौरे के दौरान हस्ताक्षर किये थे। अब्दुल्ला यामीन ने उसी माह सदन ने समझौते का प्रस्ताव रखा और 1000 पृष्ठों के समझौते को एक घंटे में पढ़कर पारित कर दिया था।
मोहम्मद नशीद ने कहा कि संसद मुक्त व्यापार के कानून को पारित नहीं करती लेकिन उस वक्त हालात कुछ और थे। चीनी विदेश विभाग ने कहा था कि मालदीव की नई सरकार के साथ संबंधों को मज़बूत करने में चीन हर संभव प्रयास करेगा। मालदीव उन छोटे देशों में से एक है जहां चीन अपनी बेल्ट एंड रोड परियोजना को संभव बनाने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण करवा रहा था।
मालदीव के आलोचकों ने कहा कि चीनी कर्ज के कारण मालदीव के 40 हज़ार लोग कर्ज तले दबे हुए हैं और मुक्त व्यापार पैक्ट इस हालातों को बदतर बना देगा। मालदीव के आंकड़ों के मुताबिक इस साल जनवरी से अगस्त के बीच मालदीव ने चीन से 342 मिलियन डॉलर का आयात किया था और चीन ने 265270 डॉलर का ही आयात किया था।
मालदीव का किसी अन्य देश के साथ मुक्त व्यापार समझौता नहीं किया है। अगर मालदीव इस समझौते को खारिज कर देता है तो यह चीन की नीति के लिए एक बहुत बड़ा झटका होगा। मलेशिया, नेपाल और चीन का पक्का दोस्त पाकिस्तान भी अब चीनी कर्ज से घबराने लगा है।