साल 2018 के मुकाबले इनमे 600 परमाणु हथियारों की कमी आयी है। बहरहाल सभी परमाणु हथियार वाले देश अपने हथियारों का आधुनिकरण कर रहे हैं। इसमें चीन, भारत और पाकिस्तान भी अपने आर्सेनल के साइज में बढ़ोतरी कर रहे हैं। सीपरी के डायरेक्टर और रिपोर्ट के लेखकों में से एक शान्नोन किले ने बताया कि “विश्व में कम हथियार लेकिन नए हथियार दिख रहे हैं।
अमेरिका और रूस के योगदान के कारण हालिया वर्षों में हथियारों की वृद्धि में कमी हुई है। जिसके आर्सेनल को एकजुट कर दे तो वह विश्व के 90 प्रतिशत परमाणु हथियारों के बराबर हो जायेगा। इसका कारण विश्व कर्तव्यों का स्टार्ट संधि के तहत निर्वाह करना है।
इस संधि पर अमेरिका और रूस ने साल 2010 में हस्ताक्षर किये थे और इसने शीत युद्ध युग के दौरान जंग से बचाया था। स्टार्ट संधि साल 2021 में खत्म हो जाएगी। किले ने कहा कि “वह चिंतित है कि इस संधि को बढ़ाने के बाबत अभी तक कोई गंभीर चर्चा होती नहीं दिख रही है।”
परमाणु हथियारों के अप्रसार पर निर्मित संधि को अगले साल 50 वर्ष पूरे हो जायेंगे। 1980 के दशक के बाद परमाणु हथियारों में निरंतरता से कमी आयी है और उस दौरान विश्व के समक्ष करीब 70000 परमाणु हथियार थे।
किले ने कहा कि प्रगति को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। साथ ही उन्होंने भारत और पाकिस्तान द्वारा परमाणु हथियारों की क्षमता को बढ़ाने की संख्या पर चिंता व्यक्त की है। यहां परमाणु हथियारों की संख्या को प्रमुखता से बढ़ाने का सामान्य ट्रेंड और भी है। परमाणु हथियार की भूमिका सैन्य अभियानों और राष्ट्रीय सुरक्षा वार्ता दोनों में को बढ़ाया गया है।
उन्होंने कहा कि “जहां हम पांच साल पहले थे, चलन आज उससे दूर हो रहा है। विश्व के परमाणु हथियार हाशिये पर हैं।” यूएन के पूर्व प्रमुख बान की मून ने हाल ही परमाणु ताकतों से निरस्त्रीकरण के लिए गंभीर हो जाने का आग्रह किया था। साथ ही आगाह किया कि यहां बेहद जोखिम है जिससे दशकों से कार्य हो रहे अंतरराष्ट्रीय हथियार नियंत्रण नष्ट हो सकता है इसमें ईरान की परमाणु संधि से अमेरिका की वापसी है जिसने उत्तर कोरिया को गलत सन्देश भेजा हैं।”
वैश्विक निरस्त्रीकरण प्रयास अमेरिका द्वारा फरवरी में इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेज ट्रीटी से बाहर निकलने का ऐलान पर काफी जूझे थे। इसने रूस को यह ऐलान करने पर मज़बूर कर दिया कि वह अपने भागीदारी कोई रद्द करते हैं।