चीन आर्थिक और सामरिक दृष्टि से विश्व की सबसे बड़ी उभरती हुई अर्थव्यवस्था है। अगर चीन किसी देश से सबसे अधिक खतरा महसूस करता है तो वह भारत है। ऐसा इसलिए क्योंकि एशिया में दो महाशक्तियों का उदय हो रहा है। जिसमें एक चीन और दूसरा भारत है।
भारत और चीन दोनों एक दूसरे से आगे निकलने के लिए अपने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत और विश्व में अपनी धाक जमाने की कोशिश कर रहे हैं। चीन और पाकिस्तान के बीच आपसी समझौते और पाकिस्तान को रक्षा तकनीकी में लगातार सहयोग कहीं ना कहीं भारत के लिए सामरिक दृष्टि से घातक है। जाहिर है, भारत और पाकिस्तान के संबंध बटवारे के बाद से नकारात्मक रहे है। जिसके परिणामस्वरुप भारत और पाकिस्तान के बीच तीन युद्ध हो चुके हैं जिसमें 1971 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध में एक नए देश बांग्लादेश को जन्म दिया। इस मायने में यह विश्व का एक बड़ा युद्ध माना जाता है।
ड्रैगन (चीन) की विदेश नीति हमेशा से ही साम्राज्यवादी रही है और वह अपनी तकनीकी और सस्ते उत्पादन के दम पर पूरी दुनिया पर राज करना चाहता है। चीन और पाकिस्तान के आपसी संबंध लगातार बढ़ते जा रहे हैं। पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश के समय तक अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को आर्थिक सहायता उपलब्ध करायी जाती था। लेकिन अमेरिका में 9/11 के हमले के बाद अमेरिका का रवैया पाकिस्तान के खिलाफ बदल गया। बराक ओबामा की सरकार ने आंशिक रूप से आतंकवाद को खत्म करने की मुहिम चलाई और 2011 में ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद में मारे जाने के बाद अमेरिका और पाकिस्तान के संबंधों पर बहुत गहरा नकारात्मक असर पड़ा। चीन ने जिसका सीधा फायदा उठाना शुरु कर दिया, यहीं से विश्व की राजनीति में एक नया मोड़ देखने को मिला।
अमेरिका ने पाकिस्तान को आर्थिक मदद पर प्रतिबंध लगाना शुरु कर दिया और चीन ने पाकिस्तान को आर्थिक मदद देना शुरू कर दिया। चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान का अप्रत्यक्ष रुप से साथ देने लगा। चीन और पाकिस्तान के बीच तमाम प्रकार के सैन्य समझौते भी हुए। हालांकि पाकिस्तान और चीन के संबंधों की नीव तो 1950 के दशक में ही पड़ गई थी। जब भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों में गिरावट शुरुआत हुई। चीन, पाकिस्तान को आर्थिक और सामरिक रूप से मजबूत बनाने के लिए पाकिस्तान में अधिक से अधिक निवेश कर रहा है। जिसका उद्देश्य पाकिस्तान के साथ रिश्ते को मजबूत करना है। ताकि भारत को सामरिक दृष्टि से घेरा जा सके। दुनिया की सबसे बड़ी उभरती हुई आर्थिक महाशक्ति चीन सड़क और जल मार्गों दोनों पर अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है।
चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने वर्ष 2013 में कजाकिस्तान में एक भाषण के दौरान प्राचीन सिल्क रोड के आर्थिक बेल्ट की एक रूपरेखा प्रस्तुत की थी। जिसे वन बेल्ट वन रोड के नाम से जाना जाता है। वन बेल्ट वन रूट चीन की एक महत्वाकांक्षी योजना है, जो विश्व के तीन महाद्वीपों एशिया, अफ्रीका और यूरोप को एक सड़क मार्ग से जोड़ने का काम करेगी। जिसका उद्देश्य आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को बढ़ावा देना है। इस प्रोजेक्ट से 65 देशों की 4.4 अरब आबादी और वैश्विक जीडीपी की 2.1 प्रतिशत हिस्सा जुड़ा हुआ है।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या चीन विश्व के कई देशों के बीच कनेक्टिविटी चाहता है या फिर ग्लोबल राजनीति में अपनी हैसियत बढ़ाकर भारत को कूटनीतिक दृष्टि से कमजोर करना चाहता है। ‘वन बेल्ट वन रूट’ का एक अहम् हिस्सा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के गिलगिट से होकर गुजरता है। जो कि भारत का अहम हिस्सा माना जाता है। हालांकि यह हिस्सा 1948 से ही पाकिस्तान के कब्जे में है।
इस योजना के तहत चीन पाकिस्तान में विकास गलियारा (इकोनॉमिक कॉरिडोर) के निर्माण में जुटा हुआ है।
वन बेल्ट वन रोड के तहत चीन पाकिस्तान आर्थिक कॉरिडोर का निर्माण भी शामिल है, जिसमें 46 अरब डॉलर का निवेश होना है। निवेश की योजना सफल होती है तो भारत के लिए आर्थिक और सामरिक दोनो ही दृष्टि से चिंता का विषय है। 1963 में पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर का कुछ हिस्सा चीन को देकर भारत की संप्रभुता की जड़ों को हिला कर रख दिया। कश्मीर का कुछ हिस्सा चीन के पास होने से भारत को सामरिक दृष्टि से भारी नुकसान हुआ। इस इलाके में अभी चीन ने अपनी सेना तैनात कर रखी है।
पाकिस्तान के दक्षिण में स्थिति करांची बंदरगाह व्यापार सैन्य दोनों दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। वहां पर हाल ही में चीन पेट्रोल केमिकल परिसर के निर्माण की योजना बना रहा है। दुनिया के सबसे ऊंचे दर्रे से होकर गुजरने वाले काराकोरम हाईवे के निर्माण के बाद चीन और पाकिस्तान के रिस्तों में काफी मजबूती आई है। काराकोरम हाईवे 13 किलोमीटर लंबा है जो कि गिलगित से होकर गुजरता है। इसे पाकिस्तान के साथ चीन की दोस्ती को मजबूती का प्रतीक माना जा रहा है।
2013 में चीन पाकिस्तान के बीच चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा का निर्माण करके चीन से पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत को जोड़ने की योजना बनाई जा रही है। साथ ही काराकोरम हाईवे को अपग्रेड करने की बात हो रही है। लेकिन जानकारों का मानना है कि पाकिस्तान के बीच बन रहे आर्थिक कॉरिडोर से केवल चीन को ही फायदा होगा क्योंकि चीन भारत पर अपनी सामरिक स्थिति को मजबूत करने के लिए पाकिस्तान का सहारा ले रहा है।
चीन और पाकिस्तान दोनों ही भारत के चिर प्रतिद्वंदी रहे हैं। जिस कारण दोनों की दोस्ती बढ़ रही है। हालांकि चीन लगातार पाकिस्तान में निवेश कर रहा और ग्वादर जैसे बंदरगाहो को विकसित कर के पाकिस्तान के इंफ्रास्ट्रक्चर का विकास कर रहा है। लेकिन यह केवल पाकिस्तान के हित के लिए ही नहीं है उससे ज्यादा चीन खुद का हित देख रहा है।
पाक की अर्थव्यवस्था कृषि आधारित है जहां औद्योगिक विकास बहुत कम है और सामाजिक विकास पर आतंक का साया है साथ ही राजनीतिक अस्थिरता का माहौल हमेशा बना रहता है। चीन इसका सीधा लाभ उठा रहा है और पाक को भारत के खिलाफ तैयार कर रहा है। अजहर मसूद को आतंकवादी घोषित करने के मुद्दे पर वीटो लगाकर चीन ने पाकिस्तान का खुलकर साथ दिया। यह पहला मौका था जब चीन ने पाकिस्तान का अंतराष्ट्रीय मंच पर खुले तौर पर सर्मथन किया। इससे स्पष्ट होता है कि पाकिस्तान भी बीटो पॉवर के साथ मिलकर भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों को जारी रखना चाहता है।
चीन विश्व का दूसरा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था वाला देश है साथ ही उस का उत्पादन बहुत अधिक है उसे बाजार की आवश्यकता भी है तो वह पाक को अपने आर्थिक आगोश में ले कर उसके बाजार पर कब्जा करना चाहता है। ताकि चीन पाकिस्तान के राजनीतिक गतिविधियों में भी हस्तक्षेप कर सके। चीन, पाकिस्तान को सैन्य और परमाणु तकनीकी देकर भारत के खिलाफ तैयार कर रहा है। ताकि भविष्य में इसका लाभ उठा सके। इसी प्रकार मिसाइल टेक्नोलॉजी पर दोनों देश मिलकर काम कर रहे हैं। चीन और भारत एशिया की दो महाशक्तियां है। चीन को पता है कि अगर भारत को परास्त करना है तो पाक को साथ लेकर चलना होगा। भारत को चारो तरफ से घरने के लिए चीन ने म्यानमार, बांग्लादेश, श्रीलंका तक अपना प्रभुत्व बना रखा है। म्यांमार के सितवे और श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को भी चीन विकसित कर रहा है, ताकि भारत को सामरिक दृष्टि से घेर सके।
आर्थिक और तकनीकी दृष्टि से पाकिस्तान चीन से बहुत पीछे है। चीन पाकिस्तान को एक प्लेटफार्म की तरह प्रयोग करके आपने हितो को साध रहा है। साथ ही चीन की मंशा यह है कि वह पाकिस्तान पर पहुंच जमा कर मध्य एशिया में अपनी पकड़ को मजबूत कर सके और विश्व में अपने बाजार को स्थापित कर सकें।