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    चीनी राष्ट्रपति और भारतीय प्रधानमन्त्री

    चीन ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह में भारत के प्रवेश के प्रस्ताव पर कई बार वीटो किया है। चीन ने बुधवार को संकेत दिए कि वह एनएसजी में भारत के प्रवेश की राह का रोड़ा बनता रहेगा। हालांकि अफवाहों के अनुसार नरेन्द्र मोदी और शी जिनपिंग के मध्य वुहान वार्ता के दौरान चीन ने भारतीय प्रवेश को रजामंदी दी थी। दोनों नेताओं के मध्य इसके बाद तीन मुलाकात हो चुकी है।

    चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता गेंग शुआंग ने कहा कि परमाणु अप्रसार संधि के आवेदन में दो मानदंड नहीं होने चाहिए। चीन को महसूस होता है कि भारत जैसे देश जिन्होंने परमाणु हथियार अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये है, एनएसजी में प्रवेश के योग्य नहीं है।

    भारत ने नॉन-प्रोलिफेराशन ऑफ़ न्यूक्लियर वेपन की संधि पर हस्ताक्षर नहीं किये हैं लेकिन एक स्पष्ट अप्रसार रिकॉर्ड के कारण एनएसजी में प्रवेश को अपना अधिकार मानता है। चीनी प्रवक्ता ने भारत का नाम लिए बगैर कहा कि “इस संधि में दोहरे मानदंडों को दरकिनार करते हुए, हमें लगता है कि व्यापक मशविरा होना चाहिए और व्यवहारिक तथ्यों को देखना चाहिए।

    बीजिंग में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के पांच स्थायी सदस्यों की परमाणु निरस्त्रीकरण से सम्बंधित बैठक की शुरुआत होने वाली है। चीनी प्रवक्ता ने कहा कि “हमें लगता है कि उसे अपने अधिकार, प्रभावशीलता और सार्वभौमिकता को बढ़ाना चाहिए और परमाणु निरस्त्रीकरण के लिए बेहतर कार्य करना चाहिए। हमारे ख्याल से अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को बहुपक्षीय पर थम जाना चाहिए और परमाणु ऊर्जा के तीन स्तंभों अप्रसार, निरस्त्रीकरण और शांतिपूर्ण का प्रचार करना चाहिए।

    जानकारी के मुताबिक चीन भारत को एनएसजी में प्रवेश करने में तब तक अड़ंगा लगाता रहेगा, जब तक उसका नदिकी यार पक्सितन एनएसजी की सदस्यता के लिए अयोग्य है। एनएसजी परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों का समूह है।

    By कविता

    कविता ने राजनीति विज्ञान में स्नातक और पत्रकारिता में डिप्लोमा किया है। वर्तमान में कविता द इंडियन वायर के लिए विदेशी मुद्दों से सम्बंधित लेख लिखती हैं।

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